कड़वा शब्द
कभी कभी मैं सोचती हूँ कि पुरुषों के लिए यह समझना कितना मुश्किल रहा है सदा से ही । सत्य है पुरूष कभी भी उस स्त्री के दुख का सहभागी नहीं बन सकता जो स्त्री सिर्फ पत्नी बनी ,, प्रेमिका नहीं ,, ।यह जानने के बाद भी उनके पति उनसे कभी प्रेम किए ही नहीं या कर भी नहीं पाएंगे । कैसे रह लेती है उनके साथ । कैसे सो लेती है उनके बिस्तर में ,,,??? क्या सिर्फ सिर पर एक छत और खाने को भरपेट मिल रहा ,,,यही काफी होता है ??? अपनी इच्छाएं अपनी आकांक्षाएं नहीं होती ,,,,??? उनका पति पैसा कमा कर दे रहा है और वह घर चला ले रही है । इतना ही बहुत है क्या ,,,,, ?? बच्चों को पाल रही उनको पढ़ा रही ,,,, घर को सजा रही ,,,, इससे ज्यादा उन्हें नहीं चाहिए क्या ,,,,, ?? क्या एक स्त्री का पत्नी हो जाना खुद को भूल जाना होता है ,,, ???? स्त्री प्रकृति की सुंदरता व सर्वश्रेष्ठ रचना है । कोई भी पुरुष बिना स्त्री के सहयोग के सफल नहीं हो सकता चाहे वह पत्नी रूप हो या मां के रूप में । वह स्त्री है खिलौना नहीं वह नारी है उसके पर काटना नहीं क्योंकि वह मजबूर है मजदूर नहीं खामोश है बेहोश नहीं । न म