मेरी पीड़ा
मेरी पीड़ा ... किसी ने कहा आज,,, पत्थर हो गई हो तुम ... शायद .... नहीं मैं पत्थर नहीं हूं मेरे पास भी वही आंखे जो रोना चाहती है रो नही पाती और बात है... मेरे पास भी वही हृदय जो धड़कना चाहता है... फिर धड़कता क्यों नहीं .. हां...ज़रूर पत्थर हूं मैं। मुझे प्रेम नहीं..सम्मान चाहिए । दे पाओगे तुम मुझे सम्मान ...?? अब मन उस अवस्था मे है जहाँ हर चीजो को देखने का नजरिया बदल गया है,पहले जिन चीजों को देखकर डर लगता था अब वो डर खत्म हो गया और अब सिर्फ लोगों से डर लगता है,भूतों से नही....! ~ डॉ नीतू शर्मा