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मेरी पीड़ा

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मेरी पीड़ा ...  किसी ने कहा आज,,, पत्थर हो गई हो तुम ... शायद .... नहीं मैं पत्थर नहीं हूं  मेरे पास भी वही आंखे जो रोना चाहती है  रो नही पाती और बात है... मेरे पास भी वही हृदय जो धड़कना चाहता है... फिर धड़कता क्यों नहीं .. हां...ज़रूर पत्थर हूं मैं। मुझे प्रेम नहीं..सम्मान चाहिए । दे पाओगे तुम मुझे सम्मान ...?? अब मन उस अवस्था मे है जहाँ हर चीजो को देखने का नजरिया बदल गया है,पहले जिन चीजों को देखकर डर लगता था अब वो डर खत्म हो गया और अब सिर्फ लोगों से डर लगता है,भूतों से नही....! ~ डॉ नीतू शर्मा

स्त्री

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दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया। भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।। भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था। धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका। दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्

वेदों में स्त्री

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सनातन धर्म ऐसा धर्म है जहाँ पूरे ब्रह्माण्ड की शक्ति का स्त्रोत आदिशक्ति को कहा गया है और नारी को उसी आदिशक्ति का रूप कहा गया है हमारे वेद क्या कहते हैं नारी के बारे में.. वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है वेद उन्हें घर की साम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की साम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा, जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है, उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है  वैदिक काल में नारी अध्ययन अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी जैसे कैकेयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी कन्या को अपना पत

ताली क्यों बजाई जाती है ,,,??

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हमारे हिन्दू सनातन धर्म में आरती अथवा कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है.....? आरती अथवा कीर्तन में ताली बजाने की प्रथा बहुत पुरानी है... और *श्रीमद्भागवत के अनुसार कीर्तन में ताली की प्रथा श्री प्रह्लाद जी ने शुरू की थी.... क्योंकि, जब वे भगवान का भजन करते थे... तो,जोर-जोर से नाम संकीर्तन भी करते थे तथा, साथ-साथ ताली भी बजाते थे...... और, हमारी आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि..... जिस प्रकार व्यक्ति अपने बगल में कोई वस्तु छिपा ले और, यदि दोनों हाथ ऊपर करे तो वह वस्तु नीचे गिर जायेगी.... ठीक उसी प्रकार जब हम दोनों हाथ ऊपर उठकर ताली बजाते है.. तो, जन्मो से संचित पाप जो हमने स्वयं अपने बगल में दबा रखे है, नीचे गिर जाते हैं अर्थात नष्ट होने लगते है.. कहा तो यहाँ तक जाता है कि.... जब हम संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ ऊपर उठा कर ताली बजाना) में काफी शक्ति होती है और, हरिनाम संकीर्तन से हमारे हाथो की रेखाएं तक बदल जाती है...... परन्तु यदि हम आध्यात्मिकता की बात को थोड़ी देर के छोड़ भी दें तो..... एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को हाथों में पूरे शरीर के अंग

क्या आप जानते है,, ??

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क्या आप जानते है ,,,? पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है? पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है। कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती। वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए। पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है

कलियुग ,,,,,,,

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          ****** पंडित जी तो महिलाओं को तिलक भी स्वयं नहीं लगाते। पर शादी में अब साड़ी ब्लाउज इत्यादि पहनाने वालों को बुलाया जाने लगा है या इन स्त्रियों को ही सेंटरों पर बुलाया जाने लगा है ! अब किसी भी अवसर पर महिलाओं को साड़ी पहनाने से लेकर, मेहंदी, सैलून, टेलर, टैटू सब काम पुरुष कर रहे हैं, वे भी गैर हिन्दू। ये कथित आधुनिकता हिन्दू समाज को कहाँ तक ले जाएगी……? मेहंदी के बाद अब महिलाओं को साड़ी पहनना भी सेंटरों पर पुरुष सिखा रहे हैं! एक गैर पुरूष द्वारा साड़ी खींचने पर जिस देश में महाभारत हो गई थी उस भारत में स्त्री खुद साड़ी उतारने खड़ी है। हां आज स्त्री स्वयं ही पुरुष से न केवल जिम में अपने निजी अंगों का स्पर्श सुख भोग रही है बल्कि साड़ी भी उतार पहन रही हैं।।  ये प्रगति नहीं है संस्कारों का पतन ही हमारी मृत्यु है ?? आधुनिकता के नाम पर हमारी संस्कृति को मिट्टी मैं मिलाया जा रहा है आज कल की लड़कियों को , अगर उनको साड़ी ना पहन ना आता है तो खुद को मॉडर्न समझती है गर्व से कहती है कि हमे साड़ी पहननी नही आती अभी इससे भी बहुत बुरा बाकी है Kalyuga is loading.....

ये कैसी आधुनिकता ,,,

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***** हिंदू धर्म में लड़कियों के सर ढक कर रखने की पुरातन परंपरा है जिसे हिंदू धर्म में घूंघट करना सर पर आंचल या दुपट्टा रखना कहते है । कोई भी स्त्री विवाह के बाद जब अपनी ससुराल जाती है और बहु पत्नी भाभी जैसे कई रिश्तों में बंधती है तो वो सभी के सम्मान में अपने सर पर कपड़ा रखती है कभी मंदिर में प्रवेश करना हो तो सर ढक कर ही प्रवेश करती है ये सनातन धर्म की परंपरा है ।  लेकिन आधुनिकता फैशन खुलापन टूटते संयुक्त परिवार और अपने अधिकार के नाम पर आज हिंदू लड़किया खुद को एक प्रोडक्ट के रूप में दिखा रही है सभी जानते है हम उसी दुकान से सामान खरीदना पसंद करते है जहां पर डिस्प्ले अधिक आकर्षक होता है । आज लड़किया ये तो कहती है कि वो कुछ भी पहने ये उनका मौलिक अधिकार है लेकिन भूल जाती है समाज में किसी की सोच और नजर को नही बदला जा सकता जब हम खुद ही भेड़ियों का शिकार बनने के लिए तैयार है तो क्यों भेड़ियों को दोष दे कि सामने वाला गलत है । एक लड़की जो आधुनिक छोटे छोटे कपड़े पहन कर अपने शरीर प्रदर्शन करके दूसरो की भावनाओ को भड़काने में शर्म महसूस नहीं करती तो फिर को उसके साथ जो गलत करता है उ