Posts

मानसिक विकृति

Image
मानसिक_विकृतता   1. अकेली रहती है! मतलब साथ (सेक्स) की जरूरत तो होगी ही, ट्राय तो मार मौज़ करने के लिए बेस्ट ऑप्शन है।   2. बाहर रहकर पढ़ी है मतलब घाट-घाट का पानी पी हुई है। पक्का कैरेक्टरलेस है। हाथ रखते ही तैयार हो जाएगी।  ऐसों का क्या ?   3. दिल्ली में रहती है मतलब खुली होगी। मेट्रो सिटीज़ में रहने वाली लड़कियां तो बहुत खुली होती हैं, पता नहीं कितनों के साथ सो जाए। यहाँ खुली का मतलब सेक्स के लिए हमेशा आसानी से उपलब्ध रहने से है।  3. गाँव की है, सीधी होगी। मतलब इसको आसानी से बेवकूफ़ बनाकर यूज़ कर सकते हैं।   4. ब्रेकअप हो गया है! मतलब रोती लड़की को विश्वास देकर सेक्स की जुगाड़ की जा सकती है।   5. पहले बॉयफ्रेंड ने चीट किया है! ओह्ह बेबी मैं ऐसा नहीं हूँ। दुनिया से अलग हूँ। यार चीट हुई लड़कियों को यूज़ करना औऱ आसान है।  सिली गर्ल्स......  6. नीच जात की है! यार ये छोटी जातियां होती बहुत बेवकूफ़ हैं। मैं जाति को नहीं मानता, शादी करूँगा बस इतने में तो तन- मन-धन से समर्पित हो जायेंगी।   7. काल...

स्त्री

Image
शिक्षा एवं सामाजिक जागरूकता की भावना ने छुआछूत जातिगत भेदभाव का समाज में खुलकर विरोध किया है ।  विज्ञान एवं यांत्रिकता का प्रसार ने तथा  भौतिकवाद ने स्त्री-पुरुष संबंधों में बदलाव एवं तनाव भी उपस्थित कर दिए हैं । इन तनाव समस्याओं को खत्म करने तथा इनको भरने के लिए नवीन मानवीय मूल्यों की खोज की जा रही है ।  इस खोज में परंपरागत आदर्शों एवं नैतिक मान्यताओं का विरोध होना स्वभाविक है ।    नवीन मानवीय संबंधों की खोज को और आधुनिक युग में व्यक्ति को प्रेरित किया है । इसके अतिरिक्त नए मूल्यों की स्थापना के प्रयास में प्राचीन संबंध भी विघटित होने लगे हैं ।  यांत्रिक सुविधाओं ने नैतिक मान्यताओं में परिवर्तन उपस्थित कर दिए हैं । संबंधों में स्वच्छंदता भी आने लगी है । इसी उन्मुक्त और स्वच्छंदता का परिचय देती हुई दादा कॉमरेड की शेल कहती है --- "क्या संसार भर की अच्छाई एक ही व्यक्ति में समा सकती है । "  प्राचीन परंपराएं मान्यताएं एवं आदर्शों का विरोध हो रहा है।  किंतु स्वस्थ नए मूल्यों का भी अभाव है । यह  विरोधी जीवन मूल्यों का निर्माण कर रह...

मेरी पीड़ा

Image
मेरी पीड़ा ...  किसी ने कहा आज,,, पत्थर हो गई हो तुम ... शायद .... नहीं मैं पत्थर नहीं हूं  मेरे पास भी वही आंखे जो रोना चाहती है  रो नही पाती और बात है... मेरे पास भी वही हृदय जो धड़कना चाहता है... फिर धड़कता क्यों नहीं .. हां...ज़रूर पत्थर हूं मैं। मुझे प्रेम नहीं..सम्मान चाहिए । दे पाओगे तुम मुझे सम्मान ...?? अब मन उस अवस्था मे है जहाँ हर चीजो को देखने का नजरिया बदल गया है,पहले जिन चीजों को देखकर डर लगता था अब वो डर खत्म हो गया और अब सिर्फ लोगों से डर लगता है,भूतों से नही....! ~ डॉ नीतू शर्मा

स्त्री

Image
दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दु:शासन ने छाती ठोकी तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया। भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।। भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब-तक सब देख नहीं लिया, तब-तक मर भी न सके... यही उनका दण्ड था। धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका। दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्ही को मिला। अर्जुन पितामह भीष्...

वेदों में स्त्री

Image
सनातन धर्म ऐसा धर्म है जहाँ पूरे ब्रह्माण्ड की शक्ति का स्त्रोत आदिशक्ति को कहा गया है और नारी को उसी आदिशक्ति का रूप कहा गया है हमारे वेद क्या कहते हैं नारी के बारे में.. वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं वेदों में स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य धर्मग्रंथ में नहीं है वेद उन्हें घर की साम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की साम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा, जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है, उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है  वैदिक काल में नारी अध्ययन अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी जैसे कैकेयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी कन्या को अपन...

ताली क्यों बजाई जाती है ,,,??

Image
हमारे हिन्दू सनातन धर्म में आरती अथवा कीर्तन करते समय तालियां क्यों बजाई जाती है.....? आरती अथवा कीर्तन में ताली बजाने की प्रथा बहुत पुरानी है... और *श्रीमद्भागवत के अनुसार कीर्तन में ताली की प्रथा श्री प्रह्लाद जी ने शुरू की थी.... क्योंकि, जब वे भगवान का भजन करते थे... तो,जोर-जोर से नाम संकीर्तन भी करते थे तथा, साथ-साथ ताली भी बजाते थे...... और, हमारी आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि..... जिस प्रकार व्यक्ति अपने बगल में कोई वस्तु छिपा ले और, यदि दोनों हाथ ऊपर करे तो वह वस्तु नीचे गिर जायेगी.... ठीक उसी प्रकार जब हम दोनों हाथ ऊपर उठकर ताली बजाते है.. तो, जन्मो से संचित पाप जो हमने स्वयं अपने बगल में दबा रखे है, नीचे गिर जाते हैं अर्थात नष्ट होने लगते है.. कहा तो यहाँ तक जाता है कि.... जब हम संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ ऊपर उठा कर ताली बजाना) में काफी शक्ति होती है और, हरिनाम संकीर्तन से हमारे हाथो की रेखाएं तक बदल जाती है...... परन्तु यदि हम आध्यात्मिकता की बात को थोड़ी देर के छोड़ भी दें तो..... एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को हाथों में पूरे शरीर के अंग...

क्या आप जानते है,, ??

Image
क्या आप जानते है ,,,? पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है? पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है। कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती। वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए। पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है...