क्या लिखूं,,,??
नए पाठक लम्बा साहित्य पढ़ने से घबराते हैं।
यही कारण है कि वर्तमान में सबसे ज़्यादा कविताएँ लिखी जा रही हैं।
इतनी ज़्यादा लिखी जा रही हैं कि पढ़ने वालों की कमी हो गई है। आज के दौर में कविताएँ लिखने का एक सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि उसे बड़े पाठक वर्ग तक पहुँचाने के लिए आपको संग्रह छपवाने की आवश्यकता नहीं है।
आप सोशल मीडिया पर अपलोड करके भी उचित प्रतिक्रिया पा सकते हैं। जबकि कहानी और उपन्यास के साथ ऐसा नहीं है।
इसके लिए आपको किताब छपवानी ही पड़ेगी। सोशल मीडिया पर इतना लंबा साहित्य कोई नहीं पढ़ेगा। खासकर तब जब आपका मनोरंजन 10 सेकंड की रील देखकर हो जा रहा हो।
साहित्य वही जीवंत होता है, जो मन के किसी कोने को छू जाए । वरना, कई किताबें बस ऐसे ही लिख दी जाती हैं - ना उनमें कोई दिशा होती है, ना कोई दिल ।
कभी-कभी सोचती हूँ कि कोई किताब लिखूँ पर अभी लिखना शुरू भी नहीं किया है मैंने और किताब के अंत से डर गई हूँ.. सोचती हूँ कि क्या मैं कहानी को अंत तक ले कर जा भी पाऊँगी या नहीं या ले कर गई भी तो क्या मेरी ज़िंदगी में आई कई कहानियों की तरह उसका भी अंत होगा, भयावह।
जो मुझे तोड़ कर रख देगी और फिर कई साल लग जाएँगे एक नई कहानी बुनने में फिर सोचती हूँ क्यूँ न एक बार और कोशिश करूँ और लिख ही दूँ एक और कहानी और जिसका अंत अब की बार मेरे मनमुताबिक होगा.. आह, सोच कर ही कितना सुखद जान पड़ता है
“मेरी कहानी मेरे मनमुताबिक”
फिर सोचती हूँ,,,
लिखना ही अपने आप में सुखद है
फिर अंत चाहे कैसे भी हो ! जब और लोग उसे पढ़कर ख़ुद से जुड़ा हुआ पायेंगे तब यकीन मानो अंत चाहे सुखद हो या दुखद फ़रक नहीं पड़ता । क्यूंकि हो सकता है मेरे लिखे सभी शब्द और कहानी लोगों का कैसी भी लगे मगर कुछ चुनिंदा पंक्तियां भी दिल को छू जाये तो बहुत है और इतना ही अपने आप में सुखद है । तो इसलिए नहीं कि लोग क्या पढ़ना पसंद करेंगे ।
लिखो वो जो कहना हो या मेरे हिसाब से जो जरूरी है कहना ।
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