एक कदम --- *मैं * की ओर

अब मैं कहती नहीं ,,,,,देखती हूं ,,,,, और लिख देती हूं ,,,,,और,,,,,, ना अब मैं लोगों से मिलती हूं ,,,,बस परखती हूं ,,!!


 इस  *मैं *  का  यह कायांतरण ,,,, कितना सार्थक और सजीव है इसका निर्णय तो आप सभी पाठकों के हाथ में ही है  ।
एक लेखक होने के नाते मेरा दायित्व तो उन सभी मुद्दों पर लिखना या लिखने की कोशिश करना है । जो कहीं ना कहीं एक ऐसे समाज के निर्माण के सपनों से जुड़ा है जो समान रूप से स्त्री और पुरुष दोनों का है । निःसंदेह यही सपना अनेक स्त्रियों का भी है ।




 पुरुष स्त्री सरोकार की बहुत बड़ी बड़ी बातें कहता है वह उसका एक ऐसा कोरा और मिथ्या आदर्शवाद है जो यथार्थ की जमीन पर टिक नहीं पाता ।  पुरुष ने अपने दोगलापन से स्त्री को हमेशा से भ्रमित किया है और एकछत्र शासन करता आया है ।


 इतना ही काफी नहीं मैंने इस समाज में ऐसी बहुत सी स्त्रियां भी देखी है जो स्त्री चेतना को लेकर चिल्लाती तो बहुत है लेकिन उनके वास्तविक कार्य शून्य के बराबर ही होते हैं ।

 क्योंकि जिस कथित समाज की सीमाओं के अंतर्गत वह झुकने की बात करती है वह सभी सीमाएं भी पुरुषों द्वारा ही निर्धारित की जाती रही है । स्त्री समाज के लिए दुर्दशा के लिए केवल पुरुष समाज ही जिम्मेदार नहीं बल्कि स्वयं स्त्रियों का भी बहुत बड़ा हाथ है  । यही स्त्री  पुरुष समाज के समक्ष विनती करती नजर आती है कि मेरे लिए नियम बनाओ ,,,,,,या मुझे आजादी दो ,,,,,,मेरे लिए मर्यादाओं का उद्घोष करो,,,,,
 फिर क्यों पुरुष समाज के समक्ष अपनी दुर्दशा का रोना रोती है ,,,???
यह भी कहती है कि मुझे झुकना नहीं आता और केवल एक सीमा के अंदर ही झुकना पसंद भी करती है ।

 स्त्रियों ने ही स्वयं पुरुषों को यह अधिकार दिया है कि वह उनकी रक्षा करें ।  इसलिए जब पुरुष का मन चाहता है तब वह स्त्री की रक्षा करता है और जब उसका मन चाहता है तब स्त्री की इज्जत को भरे समाज में उतार फेंकता है ।
 राम हो या रावण अग्नि परीक्षा तो सीता ने ही दी थी पांडव हो या गौरव अदाओं पर तो द्रौपदी ही लगी थी गौतम हो या इंद्र शापित तो अहिल्या ही हुई थी ।




 स्त्रियां इतनी नादान होती है कि सीमाओं में रहकर ही आजादी की बात करती है ।




 लेकिन वास्तविकता यह है कि यदि उसकी आज़ादी में नाममात्र के लिए भी सीमा शब्द जुड़ जाए तो वो  आजादी केवल पिंजरे में बंद पक्षी की उस आजादी की तरह बन जाती है । जिसे वह बोला तो जाता है कि वह आजाद है लेकिन उसे आकाश में उसकी मर्जी से उड़ने नहीं दिया जाता ।


इस तथ्य पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है कि स्त्री या तो संपूर्ण तरीके से झुक जाए या फिर दृढ़ होकर खड़ी रहे ।

Comments

  1. स्त्री विमर्श को बेहतर तरीके से रखने का प्रयास किया है इस हेतु साधुवाद। लेकिन अंत में कोई मार्ग बताने के बजाय प्रश्न छोड़ देना पाठकों के लिए विचारणीय है।

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