नारी विमर्श -- चुनौती

स्त्री विमर्श ---- स्त्री के अस्तित्व को केंद्र में लाकर उसकी मानवीय गरिमा को पुनः प्रतिष्ठित करने का अभियान है  ।  स्त्री के अस्तित्व पर पितृसत्तात्मक समाज का पुरुष वर्ग स्वयं को स्त्री की तुलना में श्रेष्ठ स्थापित करने के षड़यंत्र रचता रहा है ।


उसके वास्तविक अस्तित्व को भंग कर उसका दमन करना और स्त्री के लिए समानता और न्याय की सभी सम्भावनाओ को समाप्त करना रहा है  ।


स्त्री विमर्श का सर्वप्रथम सरोकार पुरुष सत्ता को शक के दायरे में लाना होगा क्यों कि स्त्री पर चिंतन और उसके सभी प्रावधानों ,, तथा नियमों का निर्माण पुरूष ही करते आये हैं  । 

 यही वजह थी कि   " सिमोन द बाउवर " अपनी कृति  में स्वयं लिखती हैं --- अब तक औरत के बारे में पुरूष ने जो कुछ लिखा उस पर शक किया जाना चाहिए क्योंकि लिखने वाला न्यायाधीश ओर अपराधी दोनों ही है ।


स्त्री विमर्श -- एक स्त्री की आत्मचेतना ,, उसके अस्तित्व की पहचान स्थापित करने का समकालीन वैचारिक चिंतन है । जो कि परम्परागत दवाब से मुक्त हो कर उसकी पहचान लिंग रूप में नही बल्कि मनुष्य रूप में प्रस्थापित करने का उद्देश्य है ।


स्त्री विमर्श का प्रथम सरोकार स्त्री का अपने पक्ष में खुद लड़ना ओर खुद खड़े होना है  ।  जब तक वह  स्वयं इस लड़ाई को नहीं लड़ेगी स्त्री पक्ष में नहीं आएगी  ।




स्त्री विमर्श उसकी अस्मिता का वह आंदोलन है जो कही किसी हाशिये पर छोड़ दिया गया ,,, उसे पुनः फिर से केंद्र में लाकर मानवीय मूल्यों पर स्थापित किया जाना है  ।  जहाँ वह स्वयं के मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्षरत है । वर्तमान समय में स्वयं के हितों की चर्चा करने लगी है । पितृसत्ता को नकार रही है ,,,,, पुरूषवादी ,,, वर्चस्ववादी शक्तियों के प्रति सवाल उठा रही है

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

एक कदम --- *मैं * की ओर

स्त्री पुरूष की संपत्ति नहीं

स्त्री विमर्श