तू शोर है मेरा, मैं तेरी खामोशी

मौनरूपी व्याख्या की महिमा प्रभावशाली होती है । 


 उसके सामने क्या मातृभाषा क्या अन्य देश की भाषा सब को सब कुछ प्रतीत होती है । अन्य कोई भाषा दिव्य नहीं केवल व्याख्यान की मौनभाषा ईश्वरीय है । यदि विचार करके देखा जाए तो मौन व्याख्यान किस तरह हमारे हृदय की नाडी में  सुंदरता पिरो देता है । 



वह व्याख्यान ही क्या जिसमे हृदय की धुन को तथा बल के लक्ष्य को ना बदल दिया । चंद्रमा की मंद मंद हंसी का ,,, तारागणों  के कटाक्ष पूर्ण मौन व्याख्यान का प्रभाव ।


 किसी कवि के दिल में घुस कर देखा ,,,, कमल और नरगिस में नयन देखने वालों से पूछो कि मौन व्याख्यान,,, की प्रभुता कितनी दिव्य है ,,,
मौन की शक्ति की भावना पर आधारित है कि मौन तो ईश्वर प्रदत्त भाषा है ।  इससे आत्मिक गुणों का विकास तो होता ही है अपितु आत्मबल भी बढ़ता है ।

व्याख्यान व्यक्तित्व के निर्माण तथा विचारधारा को पुष्ट करने में अपनी महती भूमिका निभाता है ।


व्याख्यान अपने आप में अनेक भागों तथा सिद्धांतों को पिरोए हुए होता है ।  जिससे मानव के हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़े वह व्याख्यान ही श्रेष्ठ समझा जाता है  ।

मौन भाषा एक इसी प्रकार का अप्रत्यक्ष व्याख्यान है जो शब्दों अथवा ध्वनि का प्रयोग ना करते हुए भी बहुत कुछ व्यक्ति को प्रदान कर देता है अतः व्याख्यान की महिमा उसके प्रदान करने की शक्ति में निहित है ।

वह व्याख्यान व्याख्यान नहीं जो हृदय को ना फिर सके ।


कुछ बातें अनकही सी, कुछ बातें खामोशी की,
तुमने कुछ कहा नहीं, या मैंने कुछ सुना नहीं!
           -- डॉ.नीतू शर्मा 




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