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* माँ *

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                       ----------//---------- पूजा उपासना हमें अंतर्मुखी बनाती है यह हमें आंतरिक शक्ति प्रदान करती है।  खंड खंड बटे हमारे चरित्र को अखंडता प्रदान करती है । आराधना करने की शक्ति ,, अंतमुर्खी होने की क्षमता केवल मनुष्य में है ,, पशु में नहीं  । मातृ उपासना सभी उपासना में श्रेष्ठतम है और अमोघ फल प्रदान करने वाली है । ईश्वर की भक्ति से जहां केवल ज्ञान और वैराग्य मिलता है वहां माता की उपासना से लोक परलोक दोनों प्राप्त होते हैं  । राजा निर्दयी हो सकता है ,,  मित्र धोखा दे सकता है ,,, प्रियतम मुँह मोड सकता है ,,, पिता त्याग कर सकता है ,,,,  परंतु माता अपनी संतान के प्रति निष्ठुर नहीं हो सकती ।। मातृ उपासना में करना धरना कुछ नहीं पड़ता केवल उसके आश्रय में बैठ जाना भर होता है  । सभी शास्त्र वेद और ज्ञान के अंग उपांग सृष्टि की रचना पर अपने-अपने ढंग से विचार करते हैं और सृष्टि के प्रथम शब्द की चर्चा में अपने-अपने मत भी प्रकट करते हैं  ।  संतों की अवधारणा है कि पहला शब्द मां का ही संतान के मुख से उच्चारित होता है । ध्यान से सुने तो गाय का बछड़ा भी यही शब्द सर्वप्रथम