स्त्री
सामाजिक क्षेत्र में जितनी भी समस्याएं जन्म लेती है ,,,उनका संबंध अधिकतर स्त्री जाति से ही होता है । इन विविध समस्याओं और कुप्रथा ने नारी जाति को बड़ी हीनवस्था में पहुंचा दिया है । पर्दा प्रथा के कारण नारी जाति घर में बंदिनी बना दी गई है । दहेज की समस्या ने पुत्री के जन्म को भी अप्रिय बना दिया है । बाल विवाह से ,,, विधवा समस्या और वेश्या समस्याओं का जन्म हुआ । पुरुष की स्थिति पर इन समस्याओं का उतना भीषण प्रभाव कभी नहीं पड़ा जितना स्त्री पर पड़ा । स्त्री की समाज में दयनीय स्थिति का कारण जहां उसका स्त्री होना है वहां इन समस्याओं के अभिशापो का उस पर लाद देना भी है । मेरा उद्देश्य समाज की मान्यताओं को यह खोखले पन को छोड़कर सामने रखना रहा है मैं अपने इस शैली के माध्यम से सामाजिक जीवन के जिन शब्दों को रेखांकित करना चाहती हूं उस पर बहुत से आलोचकों को भ्रम उत्पन्न हो जाता है ।आज की स्त्री के समक्ष पतिवत की समस्या के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वाधीनता का प्रश्न भी खड़ा है । वर्तमान समय में स्त्री स्वयं के परिश्रम प्रतिभा व्यवहार कुशलता सहिष्णुता साहस और दृढ़ता आदि के गुणों के सहारे ना केवल सफलता प्