स्त्री

 


सामाजिक क्षेत्र में जितनी भी समस्याएं जन्म लेती है ,,,उनका संबंध अधिकतर स्त्री जाति से ही होता है । इन विविध समस्याओं और कुप्रथा ने नारी जाति को बड़ी हीनवस्था में पहुंचा दिया है । पर्दा प्रथा के कारण नारी जाति घर में बंदिनी बना दी गई है । दहेज की समस्या ने पुत्री के जन्म को भी अप्रिय बना दिया है । बाल विवाह से ,,, विधवा समस्या और वेश्या समस्याओं का जन्म हुआ । पुरुष की स्थिति पर इन समस्याओं का उतना भीषण प्रभाव कभी नहीं पड़ा जितना स्त्री पर पड़ा । स्त्री की समाज में दयनीय स्थिति का कारण जहां उसका स्त्री होना है वहां इन समस्याओं के अभिशापो का उस पर लाद देना भी है ।




मेरा उद्देश्य समाज की मान्यताओं को यह खोखले पन को छोड़कर सामने रखना रहा है मैं अपने इस शैली के माध्यम से सामाजिक जीवन के जिन शब्दों को रेखांकित करना चाहती हूं उस पर बहुत से आलोचकों को भ्रम उत्पन्न हो जाता है ।आज की स्त्री के समक्ष   पतिवत की समस्या के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वाधीनता का प्रश्न भी खड़ा है ।

वर्तमान समय में स्त्री स्वयं के परिश्रम प्रतिभा व्यवहार कुशलता सहिष्णुता साहस और दृढ़ता आदि के गुणों के सहारे ना केवल सफलता प्राप्त कर रही है बल्कि पूज्य अभी बन रही है ।

वे परंपरागत मानसिक बंधनों को तोड़ कर अपने जीवन को आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सुखमय बना रही है ।

आज की स्त्री जीवन के बहुरंगी तानों बानो के मध्य कुशल तूलिका के द्वारा उनमें भरे गए हल्के गहरे रंगों को चिटकाती हुई अपने अपने अलग अंदाज में तथा विविधता वह समाज का प्रतिनिधित्व कर रही है । सहज रूप से प्रस्फुटित करते हुए स्वयं एक नवीन उभरती हुई चेतना के प्राणों को स्पंदन भी कर रही है ।



इस संबंध में यशपाल की पुरुष मानसिकता झलकती है __--- " सभी औरतें हैं किसी ना किसी की बहन बेटी या स्त्री होती है । ,,,, बहन को भी तुम्हारी तफरीह  पर एतराज हो सकता है । ,,,, मर्द होने का मतलब बेशर्मी का अधिकार नहीं है ।"


स्त्री मात्र के प्रति भोग की इच्छा से ग्रस्त युवक के सामने जब भोग्या होने की शर्त पर उसकी अपनी बहन आ जाए तो उसकी कुल मुखरता भी पथरा जाती है ।

समाज और देश के प्रति कर्तव्य भावना के  अनुरूप बात प्रेम भावना और प्रेम की दैहिक भौतिक यात्रा की प्रति मुक्त सामाजिक जीवन में स्त्री पुरुषों के बदलते हुए रिश्ते आदि कुछ ऐसे विषय हैं जो आत्म पीड़ा से सामना कर रहे हैं ।

धार्मिक विश्वासों पर आधारित सामाजिक चेतना रूढ़िवादी एवं परिवर्तन विरोधी हो जाती है वह धर्म को शोषण का अस्त्र मानते हैं क्योंकि इससे क्रांति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और यही कारण है कि कार्ल मार्क्स ने भी धर्म को जनता के लिए अफीम की संज्ञा दी थी ।


पुराने जमाने से लेकर आज तक इस आधुनिक समाज को यदि देखा जाए तो काफी बदलाव आ गया है क्योंकि स्त्री जाति को केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा अलग-अलग तरह  से शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने हेतु नई नई योजनाएं लागू की जा रही है जिससे ज्यादा से ज्यादा लड़कियां शिक्षित हो सके ।

जिस प्रकार तेल के बिना दीप का कोई अस्तित्व नहीं है । ठीक उसी प्रकार स्त्री के बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं है स्त्री के बिना पुरुष की कल्पना नहीं की जा सकती है क्योंकि पुरुष जाति की सृजनकर्ता ही स्त्री है लेकिन फिर भी स्त्री को जीवन के हर मोड़ पर बदसलूकी का शिकार होना पड़ता है ।

स्त्री हमेशा ही झुके हुए पलडे में बैठी रहती है क्यों कि चाहे वह कितनी ही पढ़ी लिखी सभ्य तथा सहनशील ही क्यों न हो लेकिन यदि स्त्री की इस अपार शक्ति को पुरुष अनुभव नहीं कर सकता है जितनी शक्ति स्त्री को भगवान ने दी है अगर उसको सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो स्त्री इस समाज की बहुत बड़ी शक्ति के रूप में देखे जा सकती है ।


हमारे समाज में स्त्रियों को हमेशा से ही धिक्करारा गया है चाहे उसकी गलती हो या ना हो अपराध पहले भी होते थे मगर पर्दे के पीछे लेकिन वर्तमान समय में मीडिया सजग हो जाने से अपराधों की जानकारी सभी को मिल रही है और स्त्रियों के प्रति जो अपराध हो रहे हैं समाज के व्यक्तियों को यह बताने में सफल हो रहे हैं कि स्त्रियों के प्रति भेदभाव स्त्रियों की आज के इस बदलते समाज में स्थिति कैसी होती जा रही है । जो महिलाओं के लिए तो मुश्किल है ही साथ ही समाज के उन व्यक्तियों के लिए भी एक चुनौती भरा कार्य साबित हो रहा है अगर हम आज की स्त्रियों को ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्रदान करेंगे तो शायद अनभिज्ञ स्त्रियों की ज्ञान के बारे में जानकारी बढ़ेगी और महिला भी स्त्री भी कानून की जानकारी रखते हुए चतुर चालाक व्यक्तियों की गंदी चाल से पहले ही भापने में सफल हो जाएगी जिससे अपराध को टाला जा सकता है ।

एक शिक्षित महिला दो-दो घरों को तो शिक्षित बनाती ही है साथ ही गली मोहल्ले व अन्य घरों को भी शिक्षित बनाने में अपना योगदान देती है लेकिन वर्तमान समय के आंकड़े इतने संतुष्ट नहीं है जितने होने चाहिए । स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है लेकिन स्त्रियों को शिक्षित बनाने वाले आंकड़ों में उस गति से वृद्धि नहीं हो रही जितनी होनी चाहिए घर में रहकर शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती लेकिन घर में बैठकर अपराधों को भी रोका नहीं जा सकता । जब से भारत आजाद हुआ है अपराध भी हो रहे हैं और स्त्रियां भी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी बढ़ोतरी कर रही है अपराधी हर जगह है घर में भी अपराधी उपलब्ध होते हैं तो क्या लड़कियों को इस दुनिया में लाया ही न जाए तो फिर समाज की उन्नति और देश का विकास कैसे संभव होगा ।


समाज एक समुद्र की तरह है यदि स्त्री को इस में रहना है तो स्त्री को इसका सामना अवश्य करना होगा लहरों के थपेड़ों से ही स्त्री को अपनी स्थिति में निखार आएगा पुरुष अपराध करता रहेगा लेकिन लहरों को भी तेज हवाएं तहस-नहस कर देती है । स्त्री तो अपार शक्तियों का मिश्रण है उसे अपने आप में इतना विश्वास पैदा करना है कि इन अपराधो की लहरों को तहस-नहस कर दे ।

दुनिया का सबसे बड़ा सच है कि आपकी जिंदगी की बागडोर आपके पति के हाथ में है लेकिन जब पति भी यदि आपका साथ ना दे या परेशान करे तो हिम्मत नहीं हारना चाहिए क्योंकि विजेता वह नहीं होता जो जीता है बल्कि विजेता वह होता है जो प्रत्येक समस्या का साहस के साथ डटकर सामना करता है ।

Comments

  1. Very nice true line, each women's respect is very important.

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