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Showing posts from December, 2022

संस्कार

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   कहां जा रहा है आज हमारा समाज .... हम आधुनिकता के नाम पर क्या जिंदगी जी रहे है ? क्या संस्कार देगे हम अपनी आने वाली पीढी को .. जब हम में ही कोई संस्कार नही होगा कुरितियों से निकलना जरूरी है ...पर संस्कार को भूलकर खुद को आधुनिकता का चोला पहनाना .... ये खुद से ही हम कैसा छलवा कर रहे है .... स्त्री हो या पुरुष दोनो ही आधुनिकता के नाम पर अपनी राह से भटकने लगे है ...... जहां स्त्री को आधिकार तो चाहिए पर वह कर्तव्य भुलने लगी है ..... कुछ स्त्रीयों को घर की चार दीवारी भी किसी जेल खाने से कम नही लगती तो पुरुष अपने पुरुषार्थ को खुले आम जताने लगे है भूल गए है वो स्त्री के सम्मान को भूल गए है उसे उसी स्त्री ने जन्म दिया है ...... क्या सिर्फ आधुनिक पहनावा ही मापदंड बन गया है ..... आधुनिक तो अपने विचारों से आनी चाहिए ... आज समाज के हर वर्ग को अपने पैरो पर खड़े रहने की जरूरत है .... पर अपने पैरों पर खडे़ होकर दुसरे के पैर से जमीन खिचनें की कोई आवश्यकता नही .... आगे बड़ें , खूब प्रसंशा पाए पर किसी को नीचा दिखाकर नही । हमारे संस्कार हमारे पूर्वजों की पहचान है। संस्कारों के नाम पर प्राचीन र
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तू शोर है मेरा, मैं तेरी खामोशी मौनरूपी व्याख्या की महिमा प्रभावशाली होती है ।   उसके सामने क्या मातृभाषा क्या अन्य देश की भाषा सब को सब कुछ प्रतीत होती है । अन्य कोई भाषा दिव्य नहीं केवल व्याख्यान की मौनभाषा ईश्वरीय है । यदि विचार करके देखा जाए तो मौन व्याख्यान किस तरह हमारे हृदय की नाडी में  सुंदरता पिरो देता है ।  वह व्याख्यान ही क्या जिसमे हृदय की धुन को तथा बल के लक्ष्य को ना बदल दिया । चंद्रमा की मंद मंद हंसी का ,,, तारागणों  के कटाक्ष पूर्ण मौन व्याख्यान का प्रभाव ।  किसी कवि के दिल में घुस कर देखा ,,,, कमल और नरगिस में नयन देखने वालों से पूछो कि मौन व्याख्यान,,, की प्रभुता कितनी दिव्य है ,,, मौन की शक्ति की भावना पर आधारित है कि मौन तो ईश्वर प्रदत्त भाषा है ।  इससे आत्मिक गुणों का विकास तो होता ही है अपितु आत्मबल भी बढ़ता है । व्याख्यान व्यक्तित्व के निर्माण तथा विचारधारा को पुष्ट करने में अपनी महती भूमिका निभाता है । व्याख्यान अपने आप में अनेक भागों तथा सिद्धांतों को पिरोए हुए होता है ।  जिससे मानव के हृदय पर अनुकूल प्रभाव पड़े वह व्याख्यान ही श्रेष्ठ समझा जाता है