संस्कार
कुरितियों से निकलना जरूरी है ...पर संस्कार को भूलकर
खुद को आधुनिकता का चोला पहनाना .... ये खुद से ही हम कैसा छलवा कर रहे है ....
स्त्री हो या पुरुष दोनो ही आधुनिकता के नाम पर अपनी राह से भटकने लगे है ...... जहां स्त्री को आधिकार तो चाहिए पर वह कर्तव्य भुलने लगी है ..... कुछ स्त्रीयों को घर की चार दीवारी भी किसी जेल खाने से कम नही लगती तो पुरुष अपने पुरुषार्थ को खुले आम जताने लगे है भूल गए है वो स्त्री के सम्मान को भूल गए है उसे उसी स्त्री ने जन्म दिया है ......
क्या सिर्फ आधुनिक पहनावा ही मापदंड बन गया है .....
आधुनिक तो अपने विचारों से आनी चाहिए ... आज समाज के हर वर्ग को अपने पैरो पर खड़े रहने की जरूरत है .... पर अपने पैरों पर खडे़ होकर दुसरे के पैर से जमीन खिचनें की कोई आवश्यकता नही .... आगे बड़ें , खूब प्रसंशा पाए पर किसी को नीचा दिखाकर नही ।
हमारे संस्कार हमारे पूर्वजों की पहचान है। संस्कारों के नाम पर प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों को आधुनिक समय में लागू कर तो सकते है लेकिन नैतिक मूल्यो व शिष्टाचार के संस्कारों को भी नहीं भुला सकते .... आधुनिकतम युग में हमें विचारों से आधुनिक बनने की आवश्यकता है संस्कारों से नहीं।
- डॉ.नीतू शर्मा
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