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हिसाब नहीं रख पाती है स्त्री,,,

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कहा जाता हैं कि,,  स्त्री गणित में कमजोर होती हैं.. कमसे कम उनके निजी जीवन में तो ये बात बिल्कुल सही बैठती हैं.. अगर कोई उन्हें अँजुली भर भी प्रेम दें तो वो उसे प्रेम का सागर बनाकर लौटाती हैं..  उन्हें जो भी मिलता हैं वे उसमें वृद्धि कर के ही लौटाती हैं.. फिर चाहे वो प्रेम हो..सम्मान हो..या अपमान..!! लेकिन मै तो यही कहूंगी कि   स्त्री गणित में कमजोर नहीं, बस उनके हिसाब अलग होते हैं। जहाँ उन्हें मुट्ठी भर प्रेम मिले, वहाँ वो सागर लुटा देती हैं। पर अगर अपमान मिले, तो वही हिसाब कई गुना होकर लौटता है। ये उनकी ताकत है, जो हर एहसास को बढ़ाकर लौटाने का हुनर रखती हैं। आप दुनिया को देखिए ना। बेचारी स्त्रियां किसी क्षेत्र में अग्रणी नहीं हो पाई। राजनीति में देखिए, नहीं दिखाई देंगी; कला में देखिए, कम दिखाई देंगी; विज्ञान में देखिए, कम दिखाई देंगी। वो घरों में बस दिखाई देती हैं, और इसमें बहुत बड़ा योगदान भावनाओं का है। वो भावुक ही पड़ी रह जाती हैं, और कुछ नहीं कर पाती जिंदगी में। अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। इन दो चीज़ों के अलावा स्...

क्या लिखूं,,,??

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नए पाठक लम्बा साहित्य पढ़ने से घबराते हैं।  यही कारण है कि वर्तमान में सबसे ज़्यादा कविताएँ लिखी जा रही हैं।  इतनी ज़्यादा लिखी जा रही हैं कि पढ़ने वालों की कमी हो गई है। आज के दौर में कविताएँ लिखने का एक सबसे बड़ा फ़ायदा यह है कि उसे बड़े पाठक वर्ग तक पहुँचाने के लिए आपको संग्रह छपवाने की आवश्यकता नहीं है।  आप सोशल मीडिया पर अपलोड करके भी उचित प्रतिक्रिया पा सकते हैं। जबकि कहानी और उपन्यास के साथ ऐसा नहीं है।  इसके लिए आपको किताब छपवानी ही पड़ेगी। सोशल मीडिया पर इतना लंबा साहित्य कोई नहीं पढ़ेगा। खासकर तब जब आपका मनोरंजन 10 सेकंड की रील देखकर हो जा रहा हो। साहित्य वही जीवंत होता है, जो मन के किसी कोने को छू जाए । वरना, कई किताबें बस ऐसे ही लिख दी जाती हैं - ना उनमें कोई दिशा होती है, ना कोई दिल । कभी-कभी सोचती हूँ कि कोई किताब लिखूँ पर अभी लिखना शुरू भी नहीं किया है मैंने और किताब के अंत से डर गई हूँ.. सोचती हूँ कि क्या मैं कहानी को अंत तक ले कर जा भी पाऊँगी या नहीं या ले कर गई भी तो क्या मेरी ज़िंदगी में आई कई कहानियों की तरह उसका भी अंत होगा, भयावह। जो...