नारी विमर्श
हमारे भारतीय समाज मे प्राचीनकाल से ही नारी को ” शक्ति रूप ” माना है । उसके शक्ति रूप की पूजा अर्चना करते आये हैं । या देवी सर्वभूतेषु मंत्रो से सुसज्जित कर उसके आदर और सम्मान को बढ़ाया है । लेकिन वास्तविक रूप यदि नारी के मान सम्मान की बात आये तो पुरूषों का व्यवहार बदलता दिखाई दे जाता है ।
” नरी त्रैलोक्य जननी , नारी त्रैलोक्य रूपिणी
नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी”
नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी”
मनु स्मृति , 13 /44
पुरुषों के इस दोहरेपन का श्रेय बहुत कुछ हमारे ,, मनु स्मृति व अन्य उन शास्त्रों को भी दिया जा सकता है जिनमे नारी निंदा के पर्याप्त उदाहरण परिलक्षित होते है । जहाँ पर नारी को मनबहलाव का साधन मात्र माना गया । यदि ऐसा नहीं होता तो ,,,, क्या पांचाली दाव पर लगा दी जाती ,,,?? राम द्वारा सीता की अग्नि परीक्षा ली जाती ,,, ?? या फिर सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र स्वयं के दान – दक्षिणा चुकाने के लिए अपनी ही पत्नी को बेच देते ,,, ??
इन पीड़ाओ से आज की आधुनिक नारी भी मुक्त नहीं हो पाई है । आज हमारे समाज में सभी आधुनिकता का दावा करते नज़र आते है । हर कार्य में आधुनिकता का बोध होता है । लेकिन वास्तव में आज की नारी पुरूषों के उत्पीड़न को झेलती दिखाई देती है । उनको अपने बच्चों अथवा परिवार के अलावा कुछ सोचने का अधिकार नहीं है । चूंकि आज की नारी भी सबल है । नारी विद्या , शक्ति , ममता , यश और सम्पत्ति का प्रतीक होते हुए भी पित्रसत्तात्मक समाज से मुकाबला करने की कोशिश नही कर पाती है । उसकी पीड़ा उस अनंत आकाश की तरह है जिसका कोई और – छोर नही होता । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो आज के पूंजीवादी पित्रसत्तात्मक समाज ने परिवार की स्त्री को बाहर जाकर काम करने की स्वतंत्रता तो दी है । इतना ही नहीं ,, वही परिवार स्वयं को आधुनिक कहता नज़र आता है कि हमारे यहाँ की स्त्री बाहर निकल कर काम किया करती है उसके मार्ग में न कोई पाबंदी है न ही कोई उलझनें । परन्तु वास्तविक रूप में वो पित्रसत्तात्मक परिवार अपनी स्वयं की सत्ता को मजबूत बनाने मे लगा है । वह स्वतंत्रता स्त्री की आभासी स्वतंत्रता होती है । वो तमाम तरह की दोहरी भूमिका को निभाने के लिए बाध्य हैं जिससे यदि बाहर निकलना भी चाहे तो पुरुषों समाज निकलने नही देगा ।
उस आधुनिक पुरुष का दोहरा चरित्र वहाँ भी साफ़ दिखाई दे जाता है जहाँ पर वो एक ओर आधुनिकता का दावा करते स्वयं की स्त्री के लिए तो परम्परा का अलग मापदंड रखता है और अन्य स्त्री के लिए अलग । स्वयं की स्त्री को पर्दे में रखना चाहता है वही दूसरी स्त्री के सम्बंध में वही परम्परायें उसे थोथी ओर फूहड़ लगने लगती है ।
एक स्त्री होशियार ओर समझदार हैं कि वो बड़े से बड़े बुद्धिमानों को पछाड़ दे । उसके पास दिमाग , ताकत , ओर हुनर भी है । लेकिन सभी देहवाद के शोर के पीछे धकेल दिया जाता है । उसकी अस्मिता ओर अधिकारों को उसकी प्रतिरोध की आवाज़ कह कर बेच दिया जाता है । इतना ही नहीं हैरानी की बात तो यह है कि तब स्त्रियों पर आर्कषक का लेबल लगा ,,, उसे ही नारी मुक्ति का नाम दे दिया जाता है ।
” नरी त्रैलोक्य जननी , नारी त्रैलोक्य रूपिणी
नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी”
नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी”
मनु स्मृति , 13 /44
पुरुषों के इस दोहरेपन का श्रेय बहुत कुछ हमारे ,, मनु स्मृति व अन्य उन शास्त्रों को भी दिया जा सकता है जिनमे नारी निंदा के पर्याप्त उदाहरण परिलक्षित होते है । जहाँ पर नारी को मनबहलाव का साधन मात्र माना गया । यदि ऐसा नहीं होता तो ,,,, क्या पांचाली दाव पर लगा दी जाती ,,,?? राम द्वारा सीता की अग्नि परीक्षा ली जाती ,,, ?? या फिर सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र स्वयं के दान – दक्षिणा चुकाने के लिए अपनी ही पत्नी को बेच देते ,,, ??
इन पीड़ाओ से आज की आधुनिक नारी भी मुक्त नहीं हो पाई है । आज हमारे समाज में सभी आधुनिकता का दावा करते नज़र आते है । हर कार्य में आधुनिकता का बोध होता है । लेकिन वास्तव में आज की नारी पुरूषों के उत्पीड़न को झेलती दिखाई देती है । उनको अपने बच्चों अथवा परिवार के अलावा कुछ सोचने का अधिकार नहीं है । चूंकि आज की नारी भी सबल है । नारी विद्या , शक्ति , ममता , यश और सम्पत्ति का प्रतीक होते हुए भी पित्रसत्तात्मक समाज से मुकाबला करने की कोशिश नही कर पाती है । उसकी पीड़ा उस अनंत आकाश की तरह है जिसका कोई और – छोर नही होता । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो आज के पूंजीवादी पित्रसत्तात्मक समाज ने परिवार की स्त्री को बाहर जाकर काम करने की स्वतंत्रता तो दी है । इतना ही नहीं ,, वही परिवार स्वयं को आधुनिक कहता नज़र आता है कि हमारे यहाँ की स्त्री बाहर निकल कर काम किया करती है उसके मार्ग में न कोई पाबंदी है न ही कोई उलझनें । परन्तु वास्तविक रूप में वो पित्रसत्तात्मक परिवार अपनी स्वयं की सत्ता को मजबूत बनाने मे लगा है । वह स्वतंत्रता स्त्री की आभासी स्वतंत्रता होती है । वो तमाम तरह की दोहरी भूमिका को निभाने के लिए बाध्य हैं जिससे यदि बाहर निकलना भी चाहे तो पुरुषों समाज निकलने नही देगा ।
उस आधुनिक पुरुष का दोहरा चरित्र वहाँ भी साफ़ दिखाई दे जाता है जहाँ पर वो एक ओर आधुनिकता का दावा करते स्वयं की स्त्री के लिए तो परम्परा का अलग मापदंड रखता है और अन्य स्त्री के लिए अलग । स्वयं की स्त्री को पर्दे में रखना चाहता है वही दूसरी स्त्री के सम्बंध में वही परम्परायें उसे थोथी ओर फूहड़ लगने लगती है ।
एक स्त्री होशियार ओर समझदार हैं कि वो बड़े से बड़े बुद्धिमानों को पछाड़ दे । उसके पास दिमाग , ताकत , ओर हुनर भी है । लेकिन सभी देहवाद के शोर के पीछे धकेल दिया जाता है । उसकी अस्मिता ओर अधिकारों को उसकी प्रतिरोध की आवाज़ कह कर बेच दिया जाता है । इतना ही नहीं हैरानी की बात तो यह है कि तब स्त्रियों पर आर्कषक का लेबल लगा ,,, उसे ही नारी मुक्ति का नाम दे दिया जाता है ।
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