स्त्री पुरूष की संपत्ति नहीं

“करूक्षेत्र ढह गया आह में ,
स्वर्ग द्वारिका डूबी ।
है नारी के अश्रु बिंदु में ,
पारावार प्रलय का ।।

( द्रोपदी , श्री नरेन्द्र शर्मा )

कहने का तात्पर्य यह है कि,,, स्त्री कोई वस्तु नही न ही वो किसी की संपत्ति होती है । नारी के अपमान किये जाने के कारण ही उन्ही अश्रु बिंदु में न सिर्फ स्वर्ग के समान द्वारिका का अपितु समूचे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया ।
महाभारत काल में पात्र  द्रोपदी  बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है ।
द्रोपदी चरित्र का तमाम तरह की छोटी मोटी गणना करने के पश्चात बहुत सारी बाते मेरे मन – मस्तिष्क को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर देती है ।। एक स्त्री का इतना अपमान व तिरस्कार ,,, किसी सम्पत्ति की तरह उसको जुए में उसी के पतियों द्वारा हार जाना ।। स्त्री तो सृजन की शक्ति है ,,, उसके केश पकड़ कर घसीटते हुए ,,, अपमानित करना ।
एक स्त्री जो स्वयं भगवान को भी अपने गर्भ में रखने की ताकत रखती है ,,, उसके साथ इसप्रकार का अमानवीय व्यवहार ,,, ।।
स्त्री कोई वस्तु नही , संपत्ति नही है ,,,, न पिता की , न पति की , न ही पुत्र की । वह भी एक मनुष्य है एक चेतन प्राणी है ।
रही बात भेद की तो स्त्री और पुरुष में भेद केवल शरीर का है आत्मा का नही । वो मानवी रूप है उसमें भी एक निज आत्मा का वास होता है । उसकी इच्छा का भी उतना ही महत्व होना चाहिए जितना कि पुरूष की इच्छा का ।

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