द्रोपदी सशक्त नारी का स्वरूप
“कोई भी सामाजिक व्यवस्था जो समय के साथ न बदले तो वह स्वयं तो डूबती ही है , उसे भी ले डूबती है जिसके लिए वह बनी है ।”
” हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ”
पौराणिक कथाओं में बहुत से स्त्री पात्र है । सभी का अपना अपना स्थान है और सभी श्रेष्ठ है । जहाँ एक और ” सीता जी ” जिन्होंने ना सिर्फ अग्नि परीक्षा दी बल्कि परिस्थितियों के आगे विवश हो जीवन भर वनवास झेलती है ।
दूसरी तरफ ” द्रोपदी ” जिसने अपने ही पतियो द्वारा जुए में हार जाने के पश्चात तिरस्कार ओर अपमान को सहकर भी स्त्री के मान ओर सम्मान की रक्षा के लिए न सिर्फ लड़ती है बल्कि एक स्त्री के सम्मान को उच्चतम स्थान भी दिलाती है ।
” द्रोपदी “एक ऐसा सशक्त पौराणिक पात्र है ।
द्रोपदी महाराज द्रुपद की अनियोजित कन्या थी उनका शरीर कृष्ण वर्ण के कमल के जैसा कोमल और सुंदर था , अतः इन्हें कृष्णा भी कहा जाता था । सम्भवतः द्रोपदी भारत की प्रथम महिला है जिनके पांच पति थे । द्रोपदी की कथा – व्यथा से बहुत कम ही लोग परिचित होंगे जिन्होंने बहुपत्नी वाली व्यवस्था वाले इस समाज में बहुपतित्व का अपवाद रखा है ।
पांच पतियों के होते हुए भी उसे अपमानित किया गया । मान भंग की ज्वाला में न सिर्फ स्वयं जली बल्कि उसमे कौरव वंश को भी भस्म कर दिया । अपने अपमान का प्रतिशोध लेकर एक शक्तिशाली नारी के रूप में पुनः स्थापित किया है । उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि ” द्रोपदी ” ने भले ही परिस्थितियों से विवश होकर पांडवों से अवश्य विवाह किया था । लेकिन द्रोपदी पांडवों की ही रही । परन्तु पांडवों ने अन्य विवाह भी किये ।
द्रोपदी ने इसी सतीत्व के बल पर ही अपने जीवन को सार्थक किया था । पति के कारण दांव पर लगी
द्रोपदी की स्थिति बदल गई । वो पुत्री थी पत्नी थी मगर दांव पर लगने के पश्चात वो पत्नी न रहकर स्त्री मात्र क्यों रह गई ,,,,??
धर्म का एक मार्ग तपस्या ओर त्याग भी है , किन्तु तपस्या का परिणाम भी सामाजिक हित ही होना चाहिए आप धर्म पर टिके रहे और आपके सम्मुख एक स्त्री का अपमान होता रहे । ये कैसा धर्म ,,,,??
उचित ओर अनुचित , न्याय और अन्याय , विवेक और अविवेक , शीलता ओर अश्लीलता के मध्य इस धुंधले कोहरे को साफ कर नारी को उसकी गरिमा को पुनः सामाजिक रूप में स्थापित करती है । वो अपने मनोबल को गिरने नही देती ओर स्वयं के आत्मसम्मान की रक्षा भी करती है । द्रोपदी आत्मबल / आत्मशक्ति का अनूठा उदाहरण भी है ।
” हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ”
पौराणिक कथाओं में बहुत से स्त्री पात्र है । सभी का अपना अपना स्थान है और सभी श्रेष्ठ है । जहाँ एक और ” सीता जी ” जिन्होंने ना सिर्फ अग्नि परीक्षा दी बल्कि परिस्थितियों के आगे विवश हो जीवन भर वनवास झेलती है ।
दूसरी तरफ ” द्रोपदी ” जिसने अपने ही पतियो द्वारा जुए में हार जाने के पश्चात तिरस्कार ओर अपमान को सहकर भी स्त्री के मान ओर सम्मान की रक्षा के लिए न सिर्फ लड़ती है बल्कि एक स्त्री के सम्मान को उच्चतम स्थान भी दिलाती है ।
” द्रोपदी “एक ऐसा सशक्त पौराणिक पात्र है ।
द्रोपदी महाराज द्रुपद की अनियोजित कन्या थी उनका शरीर कृष्ण वर्ण के कमल के जैसा कोमल और सुंदर था , अतः इन्हें कृष्णा भी कहा जाता था । सम्भवतः द्रोपदी भारत की प्रथम महिला है जिनके पांच पति थे । द्रोपदी की कथा – व्यथा से बहुत कम ही लोग परिचित होंगे जिन्होंने बहुपत्नी वाली व्यवस्था वाले इस समाज में बहुपतित्व का अपवाद रखा है ।
पांच पतियों के होते हुए भी उसे अपमानित किया गया । मान भंग की ज्वाला में न सिर्फ स्वयं जली बल्कि उसमे कौरव वंश को भी भस्म कर दिया । अपने अपमान का प्रतिशोध लेकर एक शक्तिशाली नारी के रूप में पुनः स्थापित किया है । उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि ” द्रोपदी ” ने भले ही परिस्थितियों से विवश होकर पांडवों से अवश्य विवाह किया था । लेकिन द्रोपदी पांडवों की ही रही । परन्तु पांडवों ने अन्य विवाह भी किये ।
द्रोपदी ने इसी सतीत्व के बल पर ही अपने जीवन को सार्थक किया था । पति के कारण दांव पर लगी
द्रोपदी की स्थिति बदल गई । वो पुत्री थी पत्नी थी मगर दांव पर लगने के पश्चात वो पत्नी न रहकर स्त्री मात्र क्यों रह गई ,,,,??
धर्म का एक मार्ग तपस्या ओर त्याग भी है , किन्तु तपस्या का परिणाम भी सामाजिक हित ही होना चाहिए आप धर्म पर टिके रहे और आपके सम्मुख एक स्त्री का अपमान होता रहे । ये कैसा धर्म ,,,,??
उचित ओर अनुचित , न्याय और अन्याय , विवेक और अविवेक , शीलता ओर अश्लीलता के मध्य इस धुंधले कोहरे को साफ कर नारी को उसकी गरिमा को पुनः सामाजिक रूप में स्थापित करती है । वो अपने मनोबल को गिरने नही देती ओर स्वयं के आत्मसम्मान की रक्षा भी करती है । द्रोपदी आत्मबल / आत्मशक्ति का अनूठा उदाहरण भी है ।
Comments
Post a Comment