सुंदरता

 खूबसूरती अथवा सुंदरता का दबाव भले ही पुरुष समाज की तरफ से आया हो ,,,,

लेकिन स्त्री इसी उधेड़बुन में  अपना बड़ा समय लगा देती है अपने कपड़े  , जूते  , श्रृंगार सब के पैमानों को वह तय करती रहती है जिससे उसकी सुंदरता में वृद्धि हो जो कहीं-कहीं तो स्त्री  को सुंदर बनाने की बजाय फूहड़ ही बना देते हैं ।



 वह सुंदर बनाने वाले माध्यमों प्रसाधनों को खरीदने पर जोर देती रहती है  ।  अथवा इसके पीछे पागल हो जाती है  ।  पुरुष को रिझाने अथवा आकर्षित करने के लिए स्त्री बड़ी-बड़ी कंपनियों के सौंदर्य प्रसाधन खरीदने के लिए लालायित भी  रहती है ।



 आज हमारे देश की अधिकतर स्त्रियां यह लड़कियां जिस तरह से जी रही हैं यह सोचने का प्रश्न है ।


 क्या खेत कारखानों में काम करने वाली मजदूर महिला सुंदर नहीं है   ?? 

क्या उसके श्रम के पसीने से निकलने वाली गंध किसी सेंट से कम है ??



 क्या काम करते उसके मजबूत हाथ किसी मॉडल के हाथ से कम सुंदर हैं ??


 वास्तविक सुंदरता  स्त्री के शरीर ,  अंग - प्रत्यंग में नहीं बल्कि उसके श्रम  , मेधा एवं संघर्ष में होती है  ।

 उसका ही सम्मान होना चाहिए तथा महिला को भी अपने इन्हीं गुणों पर गर्व भी करना चाहिए । 

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