सामाजिक सत्यता

" तू औरत है तो औरत बन कर रह ।"
कहने वाला पुरूष ये भूल जाता है  कि औरत भी इंसान हैं ।।


 हमारे समाज में उस स्त्री का जो किसी कारणवश पति का घर छोड़ देती है या फिर पति के द्वारा छोड़ी गई है....l  बहुत ही ही दृष्टि से देखी जाती है |



 पति चाहे कैसा भी दुर्व्यवहार करता हो ,  उसको नशाखोरी की आदत हो  , अन्यत्र अनुरक्त हो ,  लालची विलासी हो  , ,,, स्त्री को उसकी दहलीज से चिपक कर बैठे रहना चाहिए ,,, ।।

 स्त्री को मानसिक या शारिरिक यातनाएं देना , तिरस्कार पूर्ण व्यवहार करना ,  पैर की जूती समझना तथा विभिन्न प्रकार से स्त्री का उत्पीड़न करना  ।।। लेकिन इसके बावजूद यदि स्त्री पुरुष का त्याग कर दे तो ,,,,,,  परित्यक्ता शब्द स्त्री के लिए गाली जैसा है । दृष्टिकोण चाहे जो भी रहा हो  ,,,, कलंकित केवल वही कहलाती है ,,,,,  क्यों ,,,,??



 दूसरी ओर तो कुछ स्त्रियां ऐसी भी है जो संतुष्ट या प्रसन्न नहीं रहती और अपने कामवेग के समक्ष विवश होकर   मर्यादाओं को त्यागकर यौन   उच्छृंखलता की ओर अग्रसर भी हो जाती है ।।




 नारी की लज्जा शीलता  , नारी के संस्कार ही  प्रथम तो है तो उसके आड़े हैं । मन विचलित हो जाए ,  मन अनैतिकता की राह पर चल पड़े  ,, तब भी संस्कार तन को रोक लेते हैं ।।  इस में लिप्त नारी को तथाकथित प्रेम मिल सकता है ,,,, वैभव भी मिल सकता है ,,, सो जान से निछावर होने वाला प्रिय भी मिल सकता है ,,, किंतु घर परिवार और सम्मान नहीं मिल सकता  ।।




 पढ़ी-लिखी घरेलू नारियां अवकाश का समय पढ़ने-लिखने में व्यतीत करती है  जिससे उनमें ज्ञान वृद्धि भी होती है और मनबहलाव भी  ।  किंतु अशिक्षित नारियों के लिए समय काटना एक समस्या बन जाता है उन्हें अपनी जिंदगी  पास पड़ोस वालों के भरोसे ही काटनी पड़ती है ।।

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