स्त्री विमर्श

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" भारतीय दंड संहिता का ,
      मैं जग को बोध  कराऊँगी ,
     सम्मान करें सब वनिता का ,
     सच्ची इंसानियत सिखाऊंगी  ।। "





 हिंदू धर्म के  व्याख्याकार मनु महाराज एक पुरुष है जिन्होंने स्पष्ट कहा था कि स्त्री को बचपन से पिता पर जवानी में पति पर और बुढ़ापे में अपने बेटों पर निर्भर रहना चाहिए ।
 पति चाहे अगअवगुणी , कामी ,  दुराचारी अथवा पागल ही क्यों ना हो पर पत्नी द्वारा उसे ईश्वर के समान पूजा करनी चाहिए ।
 मनु की इन्हीं बातों को विश्वास और हिदायतों को चाहे तुलसीदास हो रामकृष्ण हो या शंकराचार्य जैसे धर्म प्रचारक हो अथवा कोई भी हिंदू कानून या न्याय हो आज तक न केवल मानता है बल्कि उसे और भी पुख्ता करता आया है ।

 धर्म चाहे जो भी हो सभी धर्मों में स्त्री को पुरुष से नीचे समझा गया है ।  कुरान शरीफ के अनुसार स्त्री को पुरुष के कहे अनुसार चलना चाहिए  , उसे आज्ञाकारी होना चाहिए  , उसे अपने अंगों को छुपा कर रखना चाहिए  , और पति की सेवा करनी चाहिए और यदि इसका पालन न करें तो पुरुष को अधिकार है कि उसे स्त्री को डांटे मारे सजा दे और इसके बाद भी जरूरत पड़े तो उसे तलाक भी दे दे । हैरानी की बात यह है कि इस धर्म को लिखने वाले से लेकर आज तक के व्याख्याकार पुरुष ही है ।  यह वही नियम बनाते हैं फिर वही बातें लिखते हैं जो पुरुषों के हित में हो ।

 यही नहीं ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक  ' बाइबिल '  में भी साफ-साफ कहा है कि  स्त्री को पति के सामने झुकना चाहिए जैसे ईश्वर के सामने झुका जाता है ।






 हंस के संपादक राजेंद्र यादव कहते हैं कि
 
 " स्त्री की पहली कैद उसकी देह है जब तक स्त्री अपनी देह से बाहर नहीं निकलेगी तब तक उसकी मुक्ति यात्रा संभव नहीं होगी ।। "


 लेकिन अफसोस की बात यह है कि वर्तमान समय में आधुनिकता का ढोल पीटते पुरुषवादी समाज ने तथा उदारता और स्त्री मुक्ती के नाम पर दे मुक्ति की आड़ में मीडिया  का एक नया तंत्र थमा दिया  जो स्त्री को उसकी देह की ही कारा में फिर से कैद कर रहा है ।




 वैसे तो आधुनिक मुक्त बाजार के इस मौजूदा दौर में सब कुछ बिकाऊ है लेकिन विगत कुछ सालों का यदि सर्वेक्षण किया जाए तो पाएंगे कि बहुत ही सुनियोजित तरीके से स्त्री को ज्यादा उपलब्ध और उपभोग की वस्तु के रूप में पेश किया गया है ।



 स्त्री को एक देश से अलग एक स्त्री के रूप में देखने की आदत को डालना होगा ।  स्त्री को कपड़ों के भीतर से नग्नता को खींच-खींच कर बाहर लाने की परंपरा से निजात पानी होगी ।



 द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन के प्रति गीता का गायन करते हुए कहां है   ---


  "  त्रिविधा भवती श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा । "

 मनुष्य के आचरण यह स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा तीन प्रकार की होती है स्वभाव मानव का आदि स्वरूप है वहीं से श्रद्धा का जन्म है ।


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Comments

  1. Jbki aurat n ho to ye duniya hi khatm ho jaye.accha aadmi hi admi rahenge or karate rahenge ek dusare se apni izzat.😏

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  2. क्या बात है!!!

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