संसार मे अधिकार प्राप्त करना बहुत कठिन है ,,,,,विशेषकर स्त्री के लिए

" नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्

    देवीं सरस्वतीं चैव ततो जय मुदिरचेत  ।। "


 महाभारत की विशालता और दार्शनिक गूढ़ता न केवल भारतीय मूल्यों का संकलन है  बल्कि हिंदू धर्म और वैदिक परंपरा का भी सार है ।  महाभारत की विशालता का अनुमान उसके प्रथम पर्व में उल्लेखित एक श्लोक से लगाया जा सकता है ---


"  जो यहां महाभारत में है वह आपको संसार में कहीं ना कहीं अवश्य मिल जाएगा जो यहां नहीं है वह संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा । " 


 रीति-नीति से उपजे यह कथा,,,, एक त्रासदी जो हर मोड़ पर मानवीय मनोविज्ञान तरह संवेदना का सशक्त चित्रण करती है ।




 संसार में अधिकार प्राप्त करना बहुत कठिन है विशेषकर स्त्री के लिए ।  समाज में उसका ना कोई अस्तित्व है और ना गौरव ।  वह तथाकथित शील मर्यादा और परंपराओं का बोझ ढोते - ढोते अपने जीवन को समाप्त कर देती है ।




 महाभारत का एक ऐसा ही पात्र है  "द्रोपदी " ।

 भारतीय संस्कृति में अगाध आस्था रखने वाले विद्वानों का ध्यान  कभी    इस पात्र की पीड़ा की ओर गया ही नहीं ।


 महाभारत का यह पात्र स्त्री की विवशता से बाहर निकालने में पूर्ण रुप से सफल हुआ है ।  उसके जन्म के समय उसके पिता ने कैसी मनहूसियत वाली शर्तें रखी उसका प्रतिफल ही द्रोपदी को विशिष्ट बनाता है ।



 यूं तो आज भी किसी महिला का एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध होना सामाजिक तौर पर तुच्छ कर्म ही माना जाता है लेकिन पहले तो हालात और भी बुरे थे ।
 पुरुषों को तो एक से अधिक महिलाओं के साथ संबंध रखने या विवाह करने की इजाजत थी परंतु किसी स्त्री का इस विषय में सोचना भी गुनाह था ।



 इस श्रेष्ठतम संस्कृति के संवाहक देश में जहां नारी को पूजा योग्य माना जाता है ।  वहां माता कुंती के एक बिना विचारे दिए गए आदेश   " पांचों भाई मिलकर बांट लो  "  कि कितनी सटीक  ढंग से अनुपालना होती है ।



 "पांचो बन्धु गये तब ताहा ,
कुंती मातु बैठी है जाहा  ।।
माया पाहि कहा तब जाई ,
तब प्रसाद हम भिक्षा पाई ।।
माता कहो भला भो काजा ,
पांचो बन्धु भोग कर राजा ।।
*   * ***
कुन्ती सुनत लाज तब आई

 * * * *

कर्म का लिखा होत नही आना ।
वचन हमार न मिथ्या होई ,
पांचो बन्धु भोग कर सोई ।।

       
                       (  आदि पर्व  ,   54  )




 द्रोपदी की परीक्षा मनुष्य को अपने मित्र मित्र का ज्ञान कराती है ।  विपत्ति आने पर ही मानव   यह जान पाता है कि वास्तविक हितेषी कौन है ।



 सबसे बड़ी बात यह है कि पांच पतियों के होते हुए भी सम्माननीय  नारियों में उसको स्थान मिलता है ।
 क्योंकि द्रोपदी एक बेहद तेजस्वी महिला थी वह ना सिर्फ बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थी बल्कि राजकाज के सभी कामों में रूचि लेती थी लेकिन इसके साथ ही वह अपने साथ हुए अत्याचार के चलते बदले की आग में भी जल रही थी ।

 अपने जीवन में घटी घटनाओं के चलते द्रोपदी ने एक तरह से आग की तरह अपना जीवन जिया ।
 स्त्री के जीवन के प्रति जीवन में  एक भयंकर आंदोलन की सृष्टि की जो स्त्रियों की असहाय परिस्थितियों का चित्रण करती है ।


 द्रोपदी ने घातक शक्ति का परिचय देकर स्त्री सम्मान की रक्षा कर एवं नए विधान की रक्षा की अपने अस्तित्व को स्थाई बनाए रखने के लिए एक संग्राम का उदघोष किया ।


 "  सुना हो दुशासन रुधिर तुम्हारा
,  जब ममशिर होई बहे पनारा
बांधउ कच तब करि अस्नाना
कोटि भूप यदुपति के आना ।
अस कहि केश दिये छिटकाई ,
दुःशासन के रुधिर नहाई  ।।

      (  सभा पर्व   ,  132  )


  यह द्रोपदी के लिए बहुत ही पीड़ादायक था जिसे राज्यसभा में पांच पति होने के बाद भी चीरहरण का सामना करना पड़ा ।

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