स्त्री एक देवी है ,,, जिसकी चाभी पुजारी के हाथों में रहती है ,,,

 आज के समय में भी समाज में स्त्री होना एक सजा है ।  उसका स्थान देवालयों में स्थापित उस देवी की भांति है जिस की चाबी पुजारी के हाथों में रहती है ।  स्त्री आज के दौर में भी घर की चारदीवारी में कैद है ।


 समाज की परंपराएं रीति रिवाज अशिक्षा अज्ञानता रूढ़िवादिता स्त्री को बाहर निकलने से रोकता है ।

 पढ़े लिखे   कहे जाने वाले इस सभ्य समाज में भी स्त्री की स्थिति वर्तमान समय में भी ज्यों की त्यों बनी हुई है ।



 स्त्री जाति के प्रति हिंसा वर्तमान समय में महत्वपूर्ण चिंतन का विषय है ,,,  नारी विमर्श आंदोलन ,,, पुरुष समाज को चुनौती देते हैं,,, बलात्कार  , दहेज हत्या ,  लिंग जांच  , मादा भूर्ण का गर्भपात ,, यह सभी विषय एक स्त्री  से संबंध रखते हैं और इन सभी विषयों पर स्त्री के दृष्टिकोण से पुरुष समाज को विचार करना चाहिए ।



 आज अधिकांश नारी संगठन शहरों के मध्यम वर्गीय शिक्षित औरत तक ही सीमित कर रह गए  हैं ।  आम मध्यम वर्ग की औरत भी ऐसे महिला संगठनों को नहीं जानती है ।

 यही नहीं आज का नारी विमर्श सेमिनारों भाषणो तक,,, संगोष्ठियों तक ही सिमट कर रह गया है । आंदोलनों का विफल होना अथवा उसकी कमजोरियों का ही परिणाम है कि स्त्रियों पर प्रताड़ित होने के तथा दुष्कर्मों के घिनौने रूप निरंतर उभर कर आ रहे हैं ।



 स्त्रियों को तरह तरह से प्रताड़ित किया जाना ,,  चाहे सरेआम नंगा करने की बात हो या बलात्कार का कुकृत्य हो या फिर पूर्ण हत्या का ही कोई मुद्दा हो ,,, ।।

 इन सभी में स्त्री पितृसत्तात्मक समाज के इस वहशीपन का शिकार होती रही है ।

 संविधान बना देने से यह कानून बना देने से इस समाज की मानसिक स्थिति में बदलाव नहीं लाया जा सकता इसके लिए जरूरी है कि तर्क विज्ञान और समानता के आधार पर उन सभी मान्यताओं को परखा जाए  जो स्त्रियोचित हो  ।। 

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