टूटते ,,, बिखरते परिवार

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पाश्चात्य प्रभाव वश नारी स्वतंत्र आंदोलन  से जुड़े इस युग में असामयिक सा लगे परंतु यह एक विचारणीय तथ्य है कि क्या पुरुषों से आगे निकल जाने की प्रवृत्ति विखंडित होते हुए परिवार ईर्ष्या वश पति से संबंध विच्छेद कर लेने की आतुरता हमारे समाज व देश को  रुग्ण नहीं बना रही है ,,,,, ???




 हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी कहा गया है कि -----

      "  वृद्ध वाक्येवीना नून नेवोतरम कथचनं । "


 अथार्थ वृद्ध लोगों के वाक्यों के बिना किसी प्रकार का निस्तार नहीं है ।  संयुक्त परिवार में वृद्ध परिवार के मुखिया होते थे और उनकी बातों को भी महत्व दिया जाता था  ।



 टूटते परिवार और बिखरता समाज के इस दौर में आज इन संस्कारों का कोई अर्थ नहीं रह गया है ।


 इसमें कोई संदेह नहीं कि वृद्ध व्यक्ति में उत्साह एवं शक्ति की कमी होती है क्योंकि वह स्वजनों के द्वारा ही तिरस्कृत होते हैं ।  आज की युवा पीढ़ी बूढ़ों को स्वीकार नहीं कर पा रही है ।  इसका प्रमुख कारण यह भी है कि भौतिकतावादी इस युग में धन ही सबसे बड़ी जरूरत बन गई है ।





 आज जरूरत है सारी औपचारिकताओं को मिटाकर अपने दिमाग के दरवाजे खोल देने की ताकि आपके दिल में सारा परिवार समा सके । 




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