फालतू की चर्बी हटाओ ,,,, अपने दिमाग से ।।
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मेरे लेख लिखने का उद्देश्य समस्या को समझना , समझाना ,,, ओर सबसे बड़ी बात कि अपने दिल का गुबार निकालना है ।
कुछ समय पहले किसी ने बोला कि ये नारी विमर्श तो ढोंग है ढकोसला है । शायद पुरूष अहम मेरे लेख को स्वीकार नहीं कर पाएं ।
मैं अपनी बात को तोड़ मरोड़कर नही रखती । मैंने अपनी बातों को निर्भय होकर रखा है ।
बहादुर ओर ईमानदार लेखक / लेखिका अपनी बातें लुंक - छिप कर या सजा - बचाकर नही रखता / रखती ।
सौंदर्य बोध भी अपना युग ओर प्रभाव रखता होगा । लेकिन आज का समाज देश जीतने की बात नहीं सोचता , रोटी का टुकड़ा पाने की बात सोचता है ।
मौजूदा परिस्थितियों ओर प्राचीन नैतिक और आचार सम्बंधित धरणाओं में कदम - कदम पर विरोध खटकता है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता ।
प्रश्न यह है कि अनुभव होने वाले विरोधों ओर उसके कारणों की उपेक्षा कर इस प्रवर्ति का दमन कर दिया जाए । या पुरातन धारणा को सुरक्षित रखने के लिए परिस्थितियों में आ गए परिवर्तनों को मिटा कर , हम फिर से प्राचीन युग में लौट जाये ,, या फिर समाज के आचार ओर नैतिक धारणा में नई परिस्थितियों के अनुकूल समन्वय करे ।
एक कहानी है कि ----
जिसमें सात आठ साल की एक लड़की फूलों अपने मित्रों के साथ खेल रही है तभी उसका साथी उससे कहता है कि देख तेरे ससुराल वाले ( दूल्हा ) जा रहा है तभी फूलों अपने कुर्ते से अपने मुंह को ढक लेती है उसी समय उसके सभी साथी मुंह दबाकर हंसने लगते हैं .... क्योंकि वो मुँह छिपाने के ढोंग में निर्वस्त्र हो जाती है ।
भले ही वह घृणित ओर दारुण हो । वैश्वीकरण के इस युग में जनता निर्वस्त्र हो गई है ।। वह अपनी शर्म को कैसे बचाएं पेट को बचाती है तो एक मरियल और आप ही कुत्सित चेहरा नजर आ जाता है ।। अगर चेहरे को ढकती है तो नीचे से इतनी नंगी है कि उस नंगेपन को ढकने के लिए सामाजिक कार्ड भी नहीं बचती ।।
यह इतनी अनिवार्य बुराई है कि उसके बिना जी भी नहीं सकते और उसके रहते मर भी नहीं सकते ।।
हो सकता है यह दूरगामी कल्पना जन्य अर्थ लगे यह लाचार जनता जो घर से या बाहर से आ रहे निर्देशों को मारने के लिए बाध्य है कभी चेहरा ढकती है और कभी पेट ।।
जब वह बड़े पेट के माध्यम से अपनी शर्म को ढकती है तो फूलों बनी खड़ी नजर आती है फूलों के माध्यम से लेखक ने समाज के कितने बड़े ढोंग को उजागर कर दिया है ।।
यह कैसा तीखा परिदृश्य है जो सभी को झकझोर दे ।। यह रूढ़ियों पर बेचैन कर देने वाला व्यंग भी है ।।
इस कहानी को पढ़ने के पश्चात मुझे तो यूं लगा कि जैसे आज के सामाजिक जीवन की विद्रूपताओं को बहुत ही बेरहमी और कड़वाहट के साथ उजागर की हो ।।
यह जिंदगी की ऐसी कड़वाहट को चित्रित करती है जो एक ऐसा सत्य है जिसे हम अनदेखा करते हैं ।।
हमें अपने विचारों पर से फालतू की चर्बी को हटाना होगा तभी कथनी और करनी का संगम हो पाएगा ।।
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मेरे लेख लिखने का उद्देश्य समस्या को समझना , समझाना ,,, ओर सबसे बड़ी बात कि अपने दिल का गुबार निकालना है ।
कुछ समय पहले किसी ने बोला कि ये नारी विमर्श तो ढोंग है ढकोसला है । शायद पुरूष अहम मेरे लेख को स्वीकार नहीं कर पाएं ।
मैं अपनी बात को तोड़ मरोड़कर नही रखती । मैंने अपनी बातों को निर्भय होकर रखा है ।
बहादुर ओर ईमानदार लेखक / लेखिका अपनी बातें लुंक - छिप कर या सजा - बचाकर नही रखता / रखती ।
सौंदर्य बोध भी अपना युग ओर प्रभाव रखता होगा । लेकिन आज का समाज देश जीतने की बात नहीं सोचता , रोटी का टुकड़ा पाने की बात सोचता है ।
मौजूदा परिस्थितियों ओर प्राचीन नैतिक और आचार सम्बंधित धरणाओं में कदम - कदम पर विरोध खटकता है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता ।
प्रश्न यह है कि अनुभव होने वाले विरोधों ओर उसके कारणों की उपेक्षा कर इस प्रवर्ति का दमन कर दिया जाए । या पुरातन धारणा को सुरक्षित रखने के लिए परिस्थितियों में आ गए परिवर्तनों को मिटा कर , हम फिर से प्राचीन युग में लौट जाये ,, या फिर समाज के आचार ओर नैतिक धारणा में नई परिस्थितियों के अनुकूल समन्वय करे ।
एक कहानी है कि ----
जिसमें सात आठ साल की एक लड़की फूलों अपने मित्रों के साथ खेल रही है तभी उसका साथी उससे कहता है कि देख तेरे ससुराल वाले ( दूल्हा ) जा रहा है तभी फूलों अपने कुर्ते से अपने मुंह को ढक लेती है उसी समय उसके सभी साथी मुंह दबाकर हंसने लगते हैं .... क्योंकि वो मुँह छिपाने के ढोंग में निर्वस्त्र हो जाती है ।
भले ही वह घृणित ओर दारुण हो । वैश्वीकरण के इस युग में जनता निर्वस्त्र हो गई है ।। वह अपनी शर्म को कैसे बचाएं पेट को बचाती है तो एक मरियल और आप ही कुत्सित चेहरा नजर आ जाता है ।। अगर चेहरे को ढकती है तो नीचे से इतनी नंगी है कि उस नंगेपन को ढकने के लिए सामाजिक कार्ड भी नहीं बचती ।।
यह इतनी अनिवार्य बुराई है कि उसके बिना जी भी नहीं सकते और उसके रहते मर भी नहीं सकते ।।
हो सकता है यह दूरगामी कल्पना जन्य अर्थ लगे यह लाचार जनता जो घर से या बाहर से आ रहे निर्देशों को मारने के लिए बाध्य है कभी चेहरा ढकती है और कभी पेट ।।
जब वह बड़े पेट के माध्यम से अपनी शर्म को ढकती है तो फूलों बनी खड़ी नजर आती है फूलों के माध्यम से लेखक ने समाज के कितने बड़े ढोंग को उजागर कर दिया है ।।
यह कैसा तीखा परिदृश्य है जो सभी को झकझोर दे ।। यह रूढ़ियों पर बेचैन कर देने वाला व्यंग भी है ।।
इस कहानी को पढ़ने के पश्चात मुझे तो यूं लगा कि जैसे आज के सामाजिक जीवन की विद्रूपताओं को बहुत ही बेरहमी और कड़वाहट के साथ उजागर की हो ।।
यह जिंदगी की ऐसी कड़वाहट को चित्रित करती है जो एक ऐसा सत्य है जिसे हम अनदेखा करते हैं ।।
हमें अपने विचारों पर से फालतू की चर्बी को हटाना होगा तभी कथनी और करनी का संगम हो पाएगा ।।
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Vyakti apne andar ki gandgi kyun nh dekhte??Khud apne andar kut2 k gandagi bhari padi hai.kitna v sarir thak lo koi fayda nh..
ReplyDeleteSahi kaha kathni or karni me bht dharm hota hai.
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