सम्मान / रूपया
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अंग्रेजी में एक शब्द "आनार्की " है । जिसका अर्थ प्प्रायः गड़बड़ के अर्थ में लिया जाता है परंतु मूल शब्द ग्रीक भाषा का है और इसका अर्थ बगावत नहीं बल्कि बंधन न होना है ।
अर्थ ( धन ) को महत्व देने वाले रिश्ते ज्यादा समय तक फलीभूत नहीं हो पाते । हां कुछ समय तक दबाव बनाकर उन को घसीटा जरूर जा सकता है लेकिन वह संवेदनहीन होकर मृतप्राय हो जाते हैं ।
वर्तमान समय में परिवार में रिश्ते पैसे का खेल बन गए हैं यहां पर पैसे के बल पर ही अधिकार व अवसरों की प्राप्ति होती है और अवसर और साधन बिना धन के प्राप्य नही ।
सुधार का यह अर्थ होता है कि वर्तमान समय की समस्याओं का अंत कर नई व्यवस्था को लागू करना ना कि अपने शोषण के अधिकार को तिल भर भी नहीं छोड़ना या नई समस्या को उत्पन्न कर देना यह सुधार नहीं ।
यदि परिवार में किसी सदस्य पर कोई संकट आ जाता है तो सभी मिलकर उसका कोई न कोई हल खोज लेते हैं । लेकिन वास्तविक स्थिति विपरीत है आर्थिक दृष्टिकोण अपनाकर उनके संस्कार ही बदल जाते हैं । हिंसा - अहिंसा , न्याय - अन्याय का आधार ही बदल जाता है । परिणाम स्वरुप परिवार आर्थिक कारणों से बिखरते चले जाते हैं । उस पर यदि परिवार का मुखिया ही आर्थिक लोलुपता के जाल में फंसा हो तो उस परिवार की अवनति संभव ही है ।
कहीं-कहीं तो अपना दबदबा और प्रभाव बनाए रखने के लिए वह परिवार के हितों को भी त्याग कर देता है ।
लेकिन यदि वह अपनी आर्थिक , सामाजिक और व्यक्तिगत मान्यताओं को बदलने का यत्न नहीं करेगा तो उसकी व्यक्तिगत आर्थिक स्वार्थपरता परिवार में अशांति और विषमता पैदा कर देगी ।
मैं समाज की उन सभी मान्यताओं पर सवाल खड़ा कर रही हूं ,,,, जो बेहिचक अपने थोथी मान्यताएं व आडम्बरों से युक्त रूढ़ियां स्त्री जाति पर थोपने में कोई कसर नहीं छोड़ती ।
स्वयं के लिए आवाज उठाना या संघर्ष करना स्त्री के लिए बहुत अधिक दुष्कर है ।
स्त्री भी पुरुष के समान एक मनुष्य है उसे भी पीड़ा और वेदना का एहसास होता है,,, उस के सम्मान को भी ठेस लग सकती है ।
अलंकारिक भाषा में यदि कहा जाए तो पुरुष यदि राजा है तो स्त्री मंत्री है ,,, और जीव के विकास के नाते जब स्त्री और पुरुष में कोई अंतर नहीं है तो पुरुषवाद क्यों भेदभाव करता है ।
इस पुरुष समाज में स्त्री की स्थिति को अत्यंत दयनीय बना दिया है वह या तो दया का पात्र है या फिर स्वतंत्र जीविका के उपादान यदि वह खोजती है तो घृणा का पात्र उसकी स्थिति पुरुष के समान कभी नहीं रही ।
स्त्री पशु नहीं ,,,,, असहाय नहीं ,,,,,, ।। यदि उसके सम्मान को ठोकर लगेगी तो वह ललकार उठेगी । अब वह स्वयं के विस्तार के अवसरों को खोज रही है । स्वयं की आत्म रक्षा करने में भी सक्षम है उसकी यही दृढ़ निश्चय देखकर पुरुष समाज भयभीत हो जाता है ।
इन मुनाफाखोर पुरुषों को सबक ले लेना चाहिए कि व्यक्तिगत लाभ कमाने से उसका काम नहीं चल सकता उसे अपने विचारों को तंग गलियों से निकाल देना होगा जो स्त्री के शोषण का कारण है ।
Nice😘😘
ReplyDeleteThank u
Deleteउत्तम रचना
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