"पीड़ा"











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" मेरी पीड़ा ने मुझे सौ बार रुलाया है ,,,,
लेकिन सच भी है इनको मैंने ही तो बुलाया है ,,,,



वास्तविक रूप तो यही है कि सच्चाई पर सुंदर सा कफ़न डाल कर उस पर शाल चढ़ा देते है । कोन समझता है किसी की पीड़ा को,,, दूसरे के दर्द को ,,,, ।।



 "इतना आसा नही  है इस दौर में मिलना जुलना ,,,
     सोचना पड़ता है कैसी लगु कैसी ना लगु  ,,,,,"




 मनुष्य को हमेशा सामाजिक होने की सलाह दी जाती है क्योंकि वह कभी मुसीबतों में फंसता है तो लोगों के तथा परिवार जनों के सांत्वना भरे शब्द उसे हताश होने और निराशा के गर्त में जाने से रोक सके ।

 सौ बात की एक बात यदि परिवार जन हाल-चाल जानने तक के लिए अगर बातचीत नहीं करते तो परस्पर प्यार कम हो जाता है तथा हीन भावना बढ़ जाती है ।  वर्तमान समय में परिवार इतने सीमित हो गए हैं कि हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में लगा हुआ है दूसरे की भलाई की कोई चिंता नहीं ।

 आज के समय बहुत कम ऐसा होता है कि लोग एक दूसरे से मिलकर बातचीत करते हो ।  वर्तमान समय में परिस्थितियां इतनी बदल गई है कि आज बहुत कम ऐसा होता है कि एक दूसरे से मिल कर बात कर,,, ।

 यहां तक कि बच्चे भी आज आमने-सामने बैठकर इतनी बातचीत नहीं करते जितनी कि वह मोबाइल कंप्यूटर के सामने बैठकर करते हैं ।
 इन सब का सबसे अधिक सीधा प्रभाव घर की उस स्त्री पर पड़ता है जो दिन-रात दूसरों की सेवा में स्वयं को भी भुला दिया करती है ।


 हालात ऐसे बन जाते हैं कि वह अवसाद या अकेलापन से ग्रसित हो जाती है ।  पारिवारिक अजनबी माहौल से वह खुद को दूसरों से अलग कर लेती है   और अकेलेपन की इस दलदल में इतना अधिक धसती चली जाती है कि वह स्वयं को दूसरों की तुलना में अवांछित और महत्वहीन महसूस करने लगती है।




 उस समय उसके व्यवहार में नींद कम आना और मन मे  आत्महत्या जैसी  दुर्भावना पनपने लगती है ।

 ऐसी स्थिति में चाहिए कि वह स्वयं के स्टेटस को अपडेट करें ।  उस स्थान से बाहर जाकर कुछ सकारात्मक कार्य   करने के अवसर प्राप्त करें ।  उन सभी पंथ या समूह से अलग हो जाना भी श्रेयस्कर होता है जो उस पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हो ।
 क्योंकि अकेलापन या अवसाद की वह स्थिति शरीर को ठीक उतना ही नुकसान पहुंचाती है जितना 1 दिन में 15 सिगरेट पीने से शरीर को होता है ।

 यदि कोई स्त्री निराश है या अकेलेपन,, अवसाद से घिरी हुई है तो  वह बाहर निकल जाएं और टहले ,,,,,
 नई गतिविधियों की या शौक की खोज करें स्वयं को व्यस्त कर दे ।

 इस छोटी सी जिंदगी में यदि कुछ हासिल करना चाहती हो तो,,,,, नाम कमाना चाहती हो तो ,,,,, अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति निभाते हुए जो भी समय मिल रहा है  उसका अपनी कार्यकुशलता के आधार पर तन्मयता व एकाग्रता पूर्वक सही मायने में सदुपयोग करें ना कि हर समय 4 लोगों के बीच रहकर अकारण ही अशांति व दुविधा का आवरण और अपनी क्षमताओं का ह्वास कर ले ।


 स्वयं का आत्मविश्वास व आत्म सम्मान बनाए रखें सकारात्मक रवैया अपनाते हुए यह दृढ़ निश्चय कर लें कि जो भी करना है  ,  पाना है अकेले आत्मनिर्भर हो ही प्राप्त कर सकती है ।  लेकिन यह तभी संभव होगा जब स्वयं के मन में खुद के प्रति पूर्ण विश्वास और भरोसा होगा वह अपनी काबिलियत पर पूर्ण निष्ठा
होगी ।


 अतः यदि इस छोटे से जीवन में यदि कुछ कर दिखाना चाहती है तो बिना वजह समय खराब कर बे सिर पैर की बातें करने से ज्यादा लाख गुना अच्छा यही है कि स्वयं पर भरोसा कर अपने आत्मसम्मान की रक्षा करें और अपने कार्य क्षेत्र में तल्लीनता से जुट जाएं ।



 क्रियाशील बन जाइए अब अपना समय व्यर्थ मत करिए यह सोच कर कि  ----


इस उम्र में आकर मैं क्या कर सकती हूं,,,??
 लोग क्या कहेंगे  ,,,,, ??
क्या सोचेंगे ,,,,, ??
 मेरा काम करना सही भी रहेगा या नहीं ,,, ??



 " ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र ही तो है,,,
 क्यों देखें जिंदगी को किसी और की नजर से ,,,,




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