अंधेरे का सफर : टूटते रिश्ते
मैं क्या लिखती हूं ,,,,
और मेरे लिखने से क्या फर्क पड़ता है ,,,,
यह मैं कई बार सोचती हूं लेकिन मैं तब लिखती हूं जब मेरे अंदर कुछ उबलता है ।
एक श्लोक है ---
नास्ति पूज्या न निधा च
जननी भूत्वा न सार्थिका
वरवन्नेव प्रजा नारी
आधकर्म - त्याग - भोग्यो :
अथार्त स्त्री न विशेष पूजा की पात्र है , न निन्दा की ओर न वह एक मात्र माँ बनकर सार्थक होती है । बल्कि यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वह हर कर्म , त्याग और भोग्य में बिल्कुल पुरूष की तरह ही अधिकारी है । वह भी इंसान हैं जैसे कि पुरूष ।
पहले नारी को शांति व सौम्या का प्रतीक माना जाता था । उसके विद्रोही स्वरूप की कल्पना नहीं की गई थी किंतु जीवन की कटु परिस्थितियों पुरुष वर्ग का अनुचित व्यवहार तथा पूंजीवादी शोषण के कारणों से उसे विद्रोही बना दिया । नारी के इस विद्रोह के परोक्ष में सामाजिक परिस्थितियां है उसके अंदर का स्वाभिमान पुरुष के पुरूष के खिलाफ विद्रोह कर देता है । आज मानव बंधन विहीन होकर जीना चाहता है । यही स्वच्छंदता धीरे धीरे स्त्री वर्ग में भी फैलती जा रही है ओर तब उत्पन्न होता है आधुनिकीकरण व पुरातन का संघर्ष और यही संघर्ष संबंधों विद्रोह के कारण सहनशीलता सेवा परायणता आधी भावनाएं लुप्त होती जा रही है ।
स्त्री शिक्षा के कारण वह पुरुषों के बराबर स्वतंत्रता चाहती है । किंतु पुरुष वर्ग को यह समानता सहन नहीं होती और परिणाम स्वरूप पारस्परिक मूल्यों का विघटन होता है ।
विज्ञान व मनोविज्ञान के क्षेत्र में नए विचारों का प्रभाव भी इतना अधिक बढ़ गया है कि नैतिक मान्यताएं और मर्यादाए भी टूटने लगी है पाश्चात्य प्रभाव के कारण अनैतिक संबंधों में परिवर्तित मानसिकता से ,, अनमेल विवाह ,, पुरुष वर्ग की उपेक्षा से नैतिकता का पतन होने लगता है ।
आज धर्म व परंपरा से जकड़ी हुई स्त्री एक से विवाह तो कर लेती है किंतु संतुष्टि के अभाव में वह अन्य पुरुष से प्रेम करने लगती है फलस्वरूप पति-पत्नी के संबंधों में आदर्शवाद पर प्रश्न चिन्ह लग गया है ।
भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलाव के कारण स्त्री सरकारी हो या प्राइवेट नौकरियों में वह या अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है । इतना ही नहीं वह स्त्री मतलब परस्ती के बीच अपना जीवन भी बिता रही हैं आधुनिक स्त्री पुरुष संबंधों को निभाने की क्षमता भी खोती जा रहे हैं ।
वे अपनी अपनी स्वतंत्रता को बिना किसी हस्तक्षेप के चाहते हैं ।
स्त्री व पुरुष दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं और भविष्य में भी अधूरे ही रहेंगे लेकिन आधुनिक परिवेश में कुछ पति-पत्नी इस पवित्र रिश्ते की डोर को अनैतिक संबंध बनाकर तोड़ते हैं ।
फैशन परस्ती की दौड़ती भागती आधुनिक दुनिया में अनैतिक रिश्ते बनाना भले ही एक फैशन तथा आनंद का जरिया बन गया है । परंतु यह याद रखना चाहिए कि ऐसे अनैतिक संबंधों का पिटारा एक दिन पूरे समाज के सामने खुलना तय है चाहे वह किसी बीमारी के रूप में हो , तलाक के रूप में , या सामाजिक जग हंसाई या उपहास का पात्र बन कर या फिर मौत के रूप में ।
स्वतंत्रता स्त्री के लिए भी आवश्यक है और स्त्री प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी करा रही है बहुत अच्छे-अच्छे काम कर रही है ।
किंतु स्वतंत्रता का गलत फायदा उठा कर कुछ स्त्रियां गलत रास्ते पर चल देती है । जो कि सामाजिक तौर तरीकों से बिल्कुल अलग है ।
परिणाम स्वरूप जिस में न जाने कितने पति पत्नी के वैवाहिक रिश्तो की बलि चढ़ी ,,,जाने कितने जाने चली गई ,,और न जाने कितने बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया ।
आधुनिक स्त्री आज़ादी के पंखों को फड़फड़ा कर आज़ाद होने की कोशिश में अग्रसर है , लेकिन क्या यह कोशिश स्त्री द्वारा निभाई गई भूमिकाओं के रिश्तों को तोडने या खराब करने से सम्भव होगी ,, क्योंकि रिश्तों के टूटने से अपने भी पराये हो जाएंगे ।
यही कारण है कि रिश्तों के टूटने से स्त्री अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है ।
यदि देखा जाये तो स्त्री का इन महत्वपूर्ण रिश्तों के प्रति अदाकारी अपने आप मे चुनोतिपूर्ण ओर गर्वपूर्ण है ,,, क्योंकि पुराना छोड़ना ओर नया अपनाना स्त्री के हिस्से में ही अधिक आता है ,,,, माता पिता और भाई के पवित्र रिश्तों को छोड़ कर अपना घर भी छोड़ती है । उसको अपना धर्म , कुल , नाम , जाति , ओर अपना व्यक्तित्व तक छोड़ना पड़ता है ,,,क्योंकि नया अपनाने के लिए पति , सास ससुर , ननद , भाभी तथा अन्य रिश्तों को बरकरार रखने के लिए अपनी भूमिका निभाती है और इस सभी को स्वयं की शक्तिशाली भूमिका से ही इस समाज में स्त्री के अस्तित्व को बरकरार रख सकती है ।।
और मेरे लिखने से क्या फर्क पड़ता है ,,,,
यह मैं कई बार सोचती हूं लेकिन मैं तब लिखती हूं जब मेरे अंदर कुछ उबलता है ।
एक श्लोक है ---
नास्ति पूज्या न निधा च
जननी भूत्वा न सार्थिका
वरवन्नेव प्रजा नारी
आधकर्म - त्याग - भोग्यो :
अथार्त स्त्री न विशेष पूजा की पात्र है , न निन्दा की ओर न वह एक मात्र माँ बनकर सार्थक होती है । बल्कि यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि वह हर कर्म , त्याग और भोग्य में बिल्कुल पुरूष की तरह ही अधिकारी है । वह भी इंसान हैं जैसे कि पुरूष ।
पहले नारी को शांति व सौम्या का प्रतीक माना जाता था । उसके विद्रोही स्वरूप की कल्पना नहीं की गई थी किंतु जीवन की कटु परिस्थितियों पुरुष वर्ग का अनुचित व्यवहार तथा पूंजीवादी शोषण के कारणों से उसे विद्रोही बना दिया । नारी के इस विद्रोह के परोक्ष में सामाजिक परिस्थितियां है उसके अंदर का स्वाभिमान पुरुष के पुरूष के खिलाफ विद्रोह कर देता है । आज मानव बंधन विहीन होकर जीना चाहता है । यही स्वच्छंदता धीरे धीरे स्त्री वर्ग में भी फैलती जा रही है ओर तब उत्पन्न होता है आधुनिकीकरण व पुरातन का संघर्ष और यही संघर्ष संबंधों विद्रोह के कारण सहनशीलता सेवा परायणता आधी भावनाएं लुप्त होती जा रही है ।
स्त्री शिक्षा के कारण वह पुरुषों के बराबर स्वतंत्रता चाहती है । किंतु पुरुष वर्ग को यह समानता सहन नहीं होती और परिणाम स्वरूप पारस्परिक मूल्यों का विघटन होता है ।
विज्ञान व मनोविज्ञान के क्षेत्र में नए विचारों का प्रभाव भी इतना अधिक बढ़ गया है कि नैतिक मान्यताएं और मर्यादाए भी टूटने लगी है पाश्चात्य प्रभाव के कारण अनैतिक संबंधों में परिवर्तित मानसिकता से ,, अनमेल विवाह ,, पुरुष वर्ग की उपेक्षा से नैतिकता का पतन होने लगता है ।
आज धर्म व परंपरा से जकड़ी हुई स्त्री एक से विवाह तो कर लेती है किंतु संतुष्टि के अभाव में वह अन्य पुरुष से प्रेम करने लगती है फलस्वरूप पति-पत्नी के संबंधों में आदर्शवाद पर प्रश्न चिन्ह लग गया है ।
भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलाव के कारण स्त्री सरकारी हो या प्राइवेट नौकरियों में वह या अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ रही है । इतना ही नहीं वह स्त्री मतलब परस्ती के बीच अपना जीवन भी बिता रही हैं आधुनिक स्त्री पुरुष संबंधों को निभाने की क्षमता भी खोती जा रहे हैं ।
वे अपनी अपनी स्वतंत्रता को बिना किसी हस्तक्षेप के चाहते हैं ।
स्त्री व पुरुष दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं और भविष्य में भी अधूरे ही रहेंगे लेकिन आधुनिक परिवेश में कुछ पति-पत्नी इस पवित्र रिश्ते की डोर को अनैतिक संबंध बनाकर तोड़ते हैं ।
फैशन परस्ती की दौड़ती भागती आधुनिक दुनिया में अनैतिक रिश्ते बनाना भले ही एक फैशन तथा आनंद का जरिया बन गया है । परंतु यह याद रखना चाहिए कि ऐसे अनैतिक संबंधों का पिटारा एक दिन पूरे समाज के सामने खुलना तय है चाहे वह किसी बीमारी के रूप में हो , तलाक के रूप में , या सामाजिक जग हंसाई या उपहास का पात्र बन कर या फिर मौत के रूप में ।
स्वतंत्रता स्त्री के लिए भी आवश्यक है और स्त्री प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज भी करा रही है बहुत अच्छे-अच्छे काम कर रही है ।
किंतु स्वतंत्रता का गलत फायदा उठा कर कुछ स्त्रियां गलत रास्ते पर चल देती है । जो कि सामाजिक तौर तरीकों से बिल्कुल अलग है ।
परिणाम स्वरूप जिस में न जाने कितने पति पत्नी के वैवाहिक रिश्तो की बलि चढ़ी ,,,जाने कितने जाने चली गई ,,और न जाने कितने बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया ।
आधुनिक स्त्री आज़ादी के पंखों को फड़फड़ा कर आज़ाद होने की कोशिश में अग्रसर है , लेकिन क्या यह कोशिश स्त्री द्वारा निभाई गई भूमिकाओं के रिश्तों को तोडने या खराब करने से सम्भव होगी ,, क्योंकि रिश्तों के टूटने से अपने भी पराये हो जाएंगे ।
यही कारण है कि रिश्तों के टूटने से स्त्री अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है ।
यदि देखा जाये तो स्त्री का इन महत्वपूर्ण रिश्तों के प्रति अदाकारी अपने आप मे चुनोतिपूर्ण ओर गर्वपूर्ण है ,,, क्योंकि पुराना छोड़ना ओर नया अपनाना स्त्री के हिस्से में ही अधिक आता है ,,,, माता पिता और भाई के पवित्र रिश्तों को छोड़ कर अपना घर भी छोड़ती है । उसको अपना धर्म , कुल , नाम , जाति , ओर अपना व्यक्तित्व तक छोड़ना पड़ता है ,,,क्योंकि नया अपनाने के लिए पति , सास ससुर , ननद , भाभी तथा अन्य रिश्तों को बरकरार रखने के लिए अपनी भूमिका निभाती है और इस सभी को स्वयं की शक्तिशाली भूमिका से ही इस समाज में स्त्री के अस्तित्व को बरकरार रख सकती है ।।
Bahut Sundar. 🙏
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