रिश्ते या राजनीति ,,??
रिश्तो ने जब भी चली
राजनीति की चाल
तब तब आया है यहां
घर घर में भूचाल ,,,
बदलते परिवेश में रिश्तो की परिभाषा भी जरूर बदलती है पर वास्तव में रिश्तो की अहमियत आज भी उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी । हर स्थिति में अपने हर रिश्ते को सदा बहार रखने का एक ही मंत्र है --- उस रिश्ते को समुचित रिस्पेक्ट देना ।
जब भी कभी किसी रिश्ते में दरार पड़ने लगती है तो ज्यादातर अपने साथी पर ही दोषारोपण करने लग जाते हैं । लेकिन जरा सोचिए ---- क्या एक हाथ से ताली बजाई जा सकती है,,,?? इसीलिए जरा अपने साथी को दोष देने से पहले यह भी सोच विचार ले कि कहीं इस परेशानी की जिम्मेदार आप तो नहीं है ।
कुछ रिश्ते हमारे जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं ---- माता-पिता , मामा , चाची , भाई बहन । लेकिन कुछ रिश्तो को हम उम्र के हर दौर में हम स्वयं बनाते हैं
आज व्यक्ति अपनी पहचान और रिश्ते स्वयं के किरदार की बदौलत नहीं बल्कि पैसे से बनाना चाहते हैं । वर्तमान समय में रिश्तो में मानवीय संवेदना और भावनाओं का स्थान स्वार्थ ने ले लिया है । वर्तमान में आगे बढ़ते रिश्तो में आपसे ईर्ष्या या द्वेष की भावना घर कर गई है । अपने ही रिश्तेदार या अपने के दुख से अंजान बने रहना एक आम बात हो गई है । वास्तव में आज के व्यक्ति को दूसरों के सुख में सुखी होने की जगह करने की आदत सी पड़ती जा रही है दूसरे की सफेद कमीज को देखकर लोग खुश होने की जगह यह सोचकर कुढ़ते रहते हैं कि उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद क्यों ,,?और इसका समाधान हम अपनी कमीज की गंदगी निकालने के बजाय सामने वाले की कमीज को ही काला करने की युक्ति सोचने लगते हैं । जिनके कारण हमारे आपसी रिश्तो में दरार पड़ जाया करती है ।
रिश्तेदार,,, दोस्त ,,,,हमारे अच्छे रिश्ते जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं । इतना ही नहीं सकारात्मक ऊर्जा के साथ वह हमको जीने का हौसला भी देते हैं । जब जिंदगी के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई उम्मीद नहीं बचती तब यही अच्छे रिश्तेदार और दोस्त ही जीने का सहारा बन जाया करते हैं ,,,,,
रिश्ता रखना बुरी बात नहीं पर रिश्तो में राजनीति ना करें तो ही अच्छा होगा ,,,,
क्योंकि
रिश्तो को निभाना भी एक कला है,,, ।।
राजनीति की चाल
तब तब आया है यहां
घर घर में भूचाल ,,,
बदलते परिवेश में रिश्तो की परिभाषा भी जरूर बदलती है पर वास्तव में रिश्तो की अहमियत आज भी उतनी ही है जितनी पहले हुआ करती थी । हर स्थिति में अपने हर रिश्ते को सदा बहार रखने का एक ही मंत्र है --- उस रिश्ते को समुचित रिस्पेक्ट देना ।
जब भी कभी किसी रिश्ते में दरार पड़ने लगती है तो ज्यादातर अपने साथी पर ही दोषारोपण करने लग जाते हैं । लेकिन जरा सोचिए ---- क्या एक हाथ से ताली बजाई जा सकती है,,,?? इसीलिए जरा अपने साथी को दोष देने से पहले यह भी सोच विचार ले कि कहीं इस परेशानी की जिम्मेदार आप तो नहीं है ।
कुछ रिश्ते हमारे जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं ---- माता-पिता , मामा , चाची , भाई बहन । लेकिन कुछ रिश्तो को हम उम्र के हर दौर में हम स्वयं बनाते हैं
आज व्यक्ति अपनी पहचान और रिश्ते स्वयं के किरदार की बदौलत नहीं बल्कि पैसे से बनाना चाहते हैं । वर्तमान समय में रिश्तो में मानवीय संवेदना और भावनाओं का स्थान स्वार्थ ने ले लिया है । वर्तमान में आगे बढ़ते रिश्तो में आपसे ईर्ष्या या द्वेष की भावना घर कर गई है । अपने ही रिश्तेदार या अपने के दुख से अंजान बने रहना एक आम बात हो गई है । वास्तव में आज के व्यक्ति को दूसरों के सुख में सुखी होने की जगह करने की आदत सी पड़ती जा रही है दूसरे की सफेद कमीज को देखकर लोग खुश होने की जगह यह सोचकर कुढ़ते रहते हैं कि उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफेद क्यों ,,?और इसका समाधान हम अपनी कमीज की गंदगी निकालने के बजाय सामने वाले की कमीज को ही काला करने की युक्ति सोचने लगते हैं । जिनके कारण हमारे आपसी रिश्तो में दरार पड़ जाया करती है ।
रिश्तेदार,,, दोस्त ,,,,हमारे अच्छे रिश्ते जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं । इतना ही नहीं सकारात्मक ऊर्जा के साथ वह हमको जीने का हौसला भी देते हैं । जब जिंदगी के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई उम्मीद नहीं बचती तब यही अच्छे रिश्तेदार और दोस्त ही जीने का सहारा बन जाया करते हैं ,,,,,
रिश्ता रखना बुरी बात नहीं पर रिश्तो में राजनीति ना करें तो ही अच्छा होगा ,,,,
क्योंकि
रिश्तो को निभाना भी एक कला है,,, ।।
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