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जीवन साथी

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प्रकृति ने पुरूष ओर स्त्री को परस्पर जीवन - साथी के लिए ही बनाया है । दोनों अपनी - अपनी भावनाओं , इच्छाओं का एक दूसरे का साथी बनकर ही पूरा कर सकते है । प्रत्येक पुरूष को स्त्री ,,, ओर प्रत्येक स्त्री को पुरुष मिल जाता है लेकिन साथी लाखों में एक को ही मिल पाता है ।  सही जीवनसाथी जीवन में वह रंग भर देता है । जो कभी फीके नहीं पड़ते । इसका मतलब रोज के रोमांस या हर वक्त प्यार के प्रदर्शन से नहीं  । बल्कि इसके मायने तो बहुत ही गहरे हैं । समय के साथ प्रेम के प्रदर्शन के तरीके भी जरूर बदल जाते हैं मगर प्रेम नहीं । यदि आपका साथी आपके साथ तब खड़ा होता है जब सब आप के खिलाफ हो । आपके सही होने पर वह पूरी दुनिया से लड़ सकता हो । तब यह सोचने की कदापि आवश्यकता नहीं कि आपका साथी का चुनाव सही है । प्रेम तो सामने वाले कि इच्छाओं का सम्मान करना सिखाता है । अगर कोई आपकी इच्छा का सम्मान नहीं करता है तो वह आपसे प्रेम नहीं करता ।  एक अच्छा साथ ही आपके सपनों को समझता है और उन्हें उड़ान देता है हौसला बढ़ाता है और भरसक कोशिश करता है कि आप उन्हें पूरा करें यहां तक कि यदि आप अपना सपना भूलने लगे

एक कदम --- *मैं * की ओर

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अब मैं कहती नहीं ,,,,,देखती हूं ,,,,, और लिख देती हूं ,,,,,और,,,,,, ना अब मैं लोगों से मिलती हूं ,,,,बस परखती हूं ,,!!  इस  *मैं *  का  यह कायांतरण ,,,, कितना सार्थक और सजीव है इसका निर्णय तो आप सभी पाठकों के हाथ में ही है  । एक लेखक होने के नाते मेरा दायित्व तो उन सभी मुद्दों पर लिखना या लिखने की कोशिश करना है । जो कहीं ना कहीं एक ऐसे समाज के निर्माण के सपनों से जुड़ा है जो समान रूप से स्त्री और पुरुष दोनों का है । निःसंदेह यही सपना अनेक स्त्रियों का भी है ।  पुरुष स्त्री सरोकार की बहुत बड़ी बड़ी बातें कहता है वह उसका एक ऐसा कोरा और मिथ्या आदर्शवाद है जो यथार्थ की जमीन पर टिक नहीं पाता ।  पुरुष ने अपने दोगलापन से स्त्री को हमेशा से भ्रमित किया है और एकछत्र शासन करता आया है ।  इतना ही काफी नहीं मैंने इस समाज में ऐसी बहुत सी स्त्रियां भी देखी है जो स्त्री चेतना को लेकर चिल्लाती तो बहुत है लेकिन उनके वास्तविक कार्य शून्य के बराबर ही होते हैं ।  क्योंकि जिस कथित समाज की सीमाओं के अंतर्गत वह झुकने की बात करती है वह सभी सीमाएं भी पुरुषों द्वारा ही निर्धारित की जाती रही है ।