स्त्री प्रश्न

           



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परिवर्तन के इस दौर में जब सब कुछ बदल रहा है तो पुरुष भी बदले और स्त्री भी ।  लेकिन पुरुष ने खुद को स्त्री की तरह नहीं बनाया । वह पुरुष ही बना रहा लेकिन अजीब बात यह हो गई कि स्त्री या पुरुष बन गई ।  वह पूर्ण रूप से पुरुष हो जाना चाहती है या यूं कहें कि हो गई है पुरुष की तरह पहनावा चाल चलन और सोच भी ।


स्त्री पुरुष के बीच समानता स्थापित करने का दावा विभिन्न आंदोलन करते है । एक आंदोलन स्त्री पुरुष समानता स्थापित करने के उद्देश्य से स्त्रियों को धूम्रपान को बढ़ावा देने की बात भी करता था । इस आंदोलन का मानना था कि ऐसा करने से उस सामाजिक निषेध का प्रतिकार होगा । जहां सिगरेट पीना पुरुषों के लिए ठीक पर स्त्रियों के लिए बुरा माना जाता था ।  स्त्रियां हाथ में जलती सिगरेट लेकर जुलूस निकालती थी और इसे 'अधिकारों की मशाल' भी कहा गया । अब इस मशाल से स्त्रियों की दुनिया जगमगाई थी या उनकी देह जली । इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है मगर यह तथ्य समूचे आंदोलन को सवालों के घेरे में खड़ा कर देता है ।


स्थिति यह है कि अब उसे बाहर देर रात तक काम करना भाता है लेकिन घर के काम या बच्चे संभालना उसे गुलामी लगते हैं । अब बच्चों के लिए अपनी नींद खराब नहीं करती परंतु देर रात तक पार्टियों में गश्त करना उसका अभिमान बन गया है ।


अब बाहर से स्त्री-पुरुष अलग-अलग जरूर दिखाई देते हैं । परंतु सोच अब एक जैसी हो गई है रिश्ते सिर्फ देह के स्तर पर सिमट रहे हैं या बन रहे हैं ।



वर्तमान भारतीय समाज का राजनीतिक नारा है  'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ' मगर सामाजिक-सांस्कृतिक आकांक्षा है ' आदर्श बहू ' हालांकि रिश्तो की किसी भी छत के नीचे स्त्रियां पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है । यौन हिंसा , हत्या , आत्महत्या , दहेज प्रताड़ना और तेजाबी हमले लगातार ही बढ़ते जा रहे हैं ।


स्थिति चाहे कितनी भी बुरी हो पहल स्त्रियों को ही करनी होगी पुरुषों को भी सिर्फ देह के स्तर पर ही नहीं बल्कि मन के स्तर पर स्त्री के अस्तित्व को समझना होगा ।

क्या यही सार है बदलते समय और समाज में पितृसत्ता के नए समाजशास्त्र का । लगता है  समाज के हर व्यक्ति को संपूर्ण यौन स्वतंत्रता चाहिए । जो हर कीमत पर पाने हथियाने के तमाम कानूनी-  गैरकानूनी , सस्ते हथकंडे अपनाने में माहिर हैं । पति-पत्नी यदि एकदूसरे को अवैध यौन संबंधों से मना करें तो मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की धमकी भी दे देंगे ।  समाज में रोज बदलते नए चेहरे सामने आ रहे हैं । कहीं कहीं तो स्त्री पुरूष समानता की आड़ में  स्त्री गरिमा की आड़ में , कहीं-कहीं स्वयं स्त्री भी यौन क्रांति ला रही है ।  उस पर गंभीरता से सोचना विचारणा और समझना होगा ।


पश्चिमी विश्वविद्यालय की आधुनिकतम सोच के तर्ज पर तथा पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित और व्यक्तिगत आजादी के विचारों से प्रेरित इस फैसले के परिणाम दूरगामी सिद्ध होते हैं ।



वर्तमान समय में आज की स्त्री अपने हक , अपनी छवि , अपने सपनों की चिंता करती है।  इसमें कुछ गलत भी नहीं है लेकिन सिर्फ खुद के बारे में सोचना तो स्वार्थ ही है ।
स्त्री ने अपने सभी गुणों की गठरी जिस में त्याग , ममता ,  धीरज और आत्मीयता थी उसे वह कहीं पीछे छोड़ आई है ।

दरअसल पुरुषों को भी घर में घूंघट या बुर्के वाली औरत ( सती , सीता , सावित्री , पार्वती , तुलसी ,  आनंदी चाहिए और अपने "आनंदबाजार "चलाने और ब्रांड बेचने के लिए 'बोल्ड एंड ब्यूटीफुल ' बिकनी वाली स्त्री ।
बाजार ने भी संबंधों में खुले पन के नाम पर लगातार जिस तरह की अपेक्षाओं को विकसित करने की कोशिश की है उसमें अपनी प्रभावी भूमिका निभाई है ।


वर्तमान में पति पत्नी सम्बन्ध क्षणिक ठेकेदारी मात्र रह गये है । जहाँ अवसर मिला तो वही पहले सम्बन्ध को छोड़ कर दूसरे सम्बन्ध का निर्माण कर लिया । एक पुरुष और एक स्त्री के विवाह पर आधारित प्रेम संबंध ही स्वस्थ परिवार व समाज बनाता है और यही सभी प्रकार के समाजों के लिए अच्छा भी है ।
ओर यदि कोई भी स्त्री पुरूष अपने साथी पर विस्वास न कर पाए ,, सदा यही भय लगा रहेगा कि अच्छा अवसर मिला और उसका साथी पल्ला छोड़ कर भागा । ऐसी आशंका के बीच किसी भी सुदृढ़ परिवार का निर्माण किस प्रकार हो सकेगा ,, ??


मनुष्य समाज का सामुहिक हित जिन कार्यों में निहित है वे धर्म है । जिन कार्यो से सामूहिक अहित होता है वे पाप है ।चूंकि व्यभिचार से मनुष्य जाति का सामूहिक अहित है इसलिए वह त्याज्य है ।

विवाह कोई मनोरंजक खेल मात्र नहीं है । वह एक सामाजिक जीवन की प्रक्रिया है जिसका पवित्रता , सामाजिक समाज की स्थिरता  परिवार की निश्चिंतता आदि जीवन की महत्वपूर्ण समस्याओं का सदाचार से घनिष्ट सम्बंध है ।
सामाजिक उत्तरदायित्व के तमाम सिद्धांतों की उपेक्षा और विरोध में गड़े तर्क वितर्क ओ से किसी भी सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती ।

 सच्चे परिवार की आधारशिला स्त्री पुरुष के बीच सच्ची मित्रता एकता और आत्मीयता ही है और वह तभी हो सकती है जब एक दूसरे के प्रति वफादार हो उसके लिए कुछ त्याग कर सके ।



देह कब तक आकर्षित करेगी,,,?? यह बात हर स्त्री को भी सोचनी होगी । स्त्री को ईश्वर ने एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है और विशेष गुण देकर भेजा है । अगर उसने प्रेम , त्याग ,  सहनशीलता ,  आत्मीयता खो दी तो उसके पास बचेगा ही क्या ,,, ??

Comments

  1. Very ture words....apne bhaut achi baate likhi hei...... women's , girls ko ko samye ke sath aage bharna chaiye but sath hi kuch baato ka dhyan Rakhna chaiye jesa apne artical mei likha hei...

    .kisi sei baate karna dosti karna ...galat nahi sirf galat hei to risto mei shak karna ....सच्चे परिवार की आधारशिला स्त्री पुरुष के बीच सच्ची मित्रता एकता और आत्मीयता ही है और वह तभी हो सकती है जब एक दूसरे के प्रति वफादार हो उसके लिए कुछ त्याग कर सके ।
    सच्चे परिवार की आधारशिला स्त्री पुरुष के बीच सच्ची मित्रता एकता और आत्मीयता ही है और वह तभी हो सकती है जब एक दूसरे के प्रति वफादार हो उसके लिए कुछ त्याग कर सके ।
    It's very true line....very nice

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