भारतीय संस्कृति
मेरे बच्चों को मुझसे
और मुझे अपनी मां से
सख्त शिकायत है
कि---
हमें झूठ बोलना नहीं सिखाया
दुनियादारी नहीं बनाया इसलिए
वह जहां भी जाते हैं स्वयं को अकेला पाते हैं
जरा सा भी असत्य का दामन थामने की कोशिश में
पसीना पसीना हो जाते हैं ।
किसी भी राष्ट्र को नष्ट करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि वहां की शिक्षा संस्कृति और इतिहास को विकृत कर दिया जाए और जनसामान्य में हीनता एवं अपराध बोध का भाव उत्पन्न कर दिया जाए जिससे वहां की संस्कृति की जड़ें क्रमशः सूखती चली जाएंगी और वह राष्ट्र विनाश को प्राप्त हो जाएगा ।
भारतीय संस्कृति के साथ भी यह सब बहुत समय से चल रहा है किंतु यहां की संस्कृति की जड़ें जमीन की अनंत गहराइयों में है जिसके कारण आज भी अपने स्वरूप को बरकरार रखने में सक्षम है हालांकि पश्चिम एवं अरब से आने वाले बर्बर आतंकी लुटेरों ने चाहे वे मुगल शासक हो अथवा अंग्रेज हो वे किसी भी रूप में हो उन सभी ने हमारे यहां के शिक्षण संस्थानों जैसे नालंदा तथा तक्षशिला जैसे वैश्विक शिक्षा के इन संस्थानों को नष्ट किया है ।
हमारे इतिहास को वितरित करने के पीछे इन सभी विदेशी ताकतों का सीधा सीधा हाथ रहा है जो भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को नष्ट करने के लिए वर्तमान एवं पूर्व के समय से पूर्णरूपेण संकल्पित रहे हैं ।हमारे पास अभी भी समय है कि इस पर हम सभी विचार विमर्श करें और इस षडयंत्र पूर्वक हमारे दृष्टिकोण में जो घर कर गई हीनता एवं अपराध बोध की भावनाओं को इस विकृत मानसिकता से ऊपर उठकर स्व चिंतन कर भारत के गौरव को विश्व पटल पर पुनर्स्थापित करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को व्यक्त करें ।
हम भौतिकवाद की अंधी दौड़ में भ्रमित होकर स्वयं अपने अस्तित्व को ही खत्म करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप तौर पर सहमत हो रहे हैं आज हम अपनी संस्कृति एवं परंपराओं की हठधर्मिता के माध्यम से हत्या किए जा रहे हैं जिसकी निष्पत्ति आगे के समय में अपने को ना पहचान पाने के रूप में होगी क्योंकि सभ्यता एवं संस्कृति का विकास एक व्यक्ति नहीं करता बल्कि दीर्घकालीन सतत प्रभाव होने वाली एक लंबी प्रक्रिया होती है । इसके बावजूद भी हम हीन भावना से ग्रस्त होकर पश्चिमी अंधानुकरण को प्राथमिकता दे रहे हैं । जबकि पश्चिमी गतिविधियां एवं कार्यकलाप वहां के वातावरण के हिसाब से हैं और इससे इतर अपने भारतीय संस्कृति की विशिष्टता तो यह रही है कि हमने श्रेष्ठतम सभी नियमों के माध्यम से विश्व को सर्वोत्कृष्ट मार्ग दिखाकर अपनी परिपाटी निर्मित की है । भारत ने विश्व को ज्ञान के अपरिमित कोष से परिचित करवाया है । किंतु कभी भी अपने ज्ञान पर अपना अधिकार नहीं जताया जबकि इसके इतर भी देशों ने उसी ज्ञान को सरल भाषा में यदि कहा जाए तो कॉपी पेस्ट कर अपने नाम का पेंट करवा लिया है ।
यह बात आप स्वयं भी जानते हैं कि महाभारत एवं रामायण काल सहित विधि ज्ञान पूर्ण तरह वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति पर आधारित है एवं यह समय भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति स्वर्णिम काल था जिन आविष्कारों को हम वर्तमान में उन्नति का श्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं वे सभी आविष्कार हमारे पूर्वजों ने लाखों हजारों साल पहले ही कर लिया था ।
वर्तमान में इन्हें आवांछनीय हस्तक्षेपओं की परिणति है कि हम आज भी उन्हीं मतभेदों में उलझे हुए हैं जिसे देश की उन्नति एवं अखंडता को चोट पहुंच रही है । आज भीहम भारतीयों में एक अजब सी होड़ इसी बात को बढ़ा चढ़ाकर बताने की लगी हुई है कि विदेशों में उच्चतम शिक्षा व तकनीकी के साथ-साथ वहां की व्यवस्थाएं भी सुदृढ़ है ।यहां तक कि विदेशों से पर्यटक के तौर पर आने वाले अधिकतर लोग भारतीय संस्कृति से इतना प्रभावित हुए हैं कि वह यहीं के होकर रह गए हैं यह बात यहां तक ही नहीं है उन्होंने हिंदुत्व की दीक्षा भले ही ग्रहण की हो या नहीं कि वह लेकिन वह हमारी संस्कृति के सभी नियमों के मुताबिक आचरण करते हुए देखने को मिल जाएंगे भारतीय वस्त्र पहनें साड़ी धोती कुर्ता माथे पर टीका और गले में माला पहनने में किसी प्रकार का हर्ज नहीं महसूस करते हैं बल्कि चौगुनी इच्छाशक्ति व उत्साह से लबरेज होते हैं ।
और हम हमारे भारत धर्म और भारतीय संस्कृति को बचाने के बजाय अधोगति में ले जाने का कार्य कर रहे हैं । मैं हमारे चारों ओर के सामाजिक परिवेश की चर्चा कर रही हूं हमने इसे पाश्चात्य संस्कृति से लिया है हमने अति महत्वाकांक्षी होने के कारण हमारे जो सामाजिक परिवेश में अनुशासन हीन जीवन जीने की ओर अग्रसर किया है । वर्तमान में सामाजिक बदलाव को देखकर ऐसा लगने लगा है कि जैसे नहीं हमारी संस्कृति रह गई है और ना ही हमारी सभ्यता जहां तक सवाल है पश्चिमी सभ्यता का तो हम लोगों ने उन बातों को अपनाया जो भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल थी जिस भारतीय समाज में हम रहते हैं वहां का वातावरण सभ्यताएं मर्यादा ए नैतिक मूल्य कुछ और ही हैं ऐसे में जब हम पहनावे की खुली सोच और खुले पन का अंधानुकरण करते हैं तो हमारे वातावरण में नग्नता दिखाई देती है हवा में अजीब सी गंध की खुल गई है मानव मस्तिष्क पर विपरीत असर कर रही है । हमारी भारतीय संस्कृति में चार मूल्य प्रमुख है धर्म अर्थ काम और मोक्ष ।। अब यह बात अलग है कि पाश्चात्य संस्कृति के अर्थ और काम की ही प्रमुखता है ।सादा जीवन उच्च विचार वाली हमारी संस्कृति की परंपरा समझी जाती थी परंतु आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में भ्रमित संस्कृति का जो जीवन में प्रवेश हो गया है वह परिभाषा कहां चली गई है पता नहीं ।
आज विदेशी हमारे भारतीय धर्म दर्शन परंपरा एवं संस्कृति को जानने व अपनाने के लिए उत्सुक है हमारे यहां आयोजित होने वाले कुंभ महापर्व एवं भारतीय धार्मिक स्थलों में सैलानियों के तौर पर उनकी आने वाले जनों के बीच उल्लास पूर्ण वातावरण से इसका साफ-साफ अंदाजा लगाया जा सकता है ।जहां एक और पश्चिम के लोग सनातनी संस्कृति को अपनाकर खुद को धन्य कर रहे हैं वही भारतीय अज्ञानता वश समाज का एक बड़ा हिस्सा वर्ग पश्चिम के प्रभाव में सामाजिक और नैतिक पतन की ओर अग्रसर है ।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने पहनावे की नकल कर ली पर अपनी अकल विकसित नहीं कर पाए फैशन के दुष्प्रभाव पुरुष व स्त्री पर दोनों में समान रूप से प्रस्फुटित होते दिखाई देते हैं ।
अक्सर लोगों की जुबान पर होता है कि स्त्रियां पश्चिम का अंधानुकरण कर रही है क्या पश्चिम का कोई भी दुष्प्रभाव पुरुषों पर नहीं पड़ा बात स्त्री और पुरुष को वर्गीकृत करने के लिए नहीं कही है । जो भी मर्यादा से बाहर जाएगा वह दोषी ही माना जाएगा ।
हां ठीक है मैं कहती हूं लज्जा स्त्रियों का आभूषण है तो क्या पुरुष को निर्लज्ज हो जाना चाहिए जगह-जगह लोलुप दृष्टि वाले अमर्यादित पुरुष दिखाई दे जाएंगे जो बलात्कार छेड़खानी जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं ।
और यह भी क्या बात हुई भला पुरुष वर्ग यह भूल जाते हैं कि वह किसी सुविधा की दृष्टि से धोती छोड़कर फुल पैंट उन्होंने अपनाई थी पर महिला उन्हें हमेशा भारतीय परिधान में ही दिखनी चाहिए पुरुषों की यदि बात की जाए तो उनकी सोच है जिन कपड़ों में कोई भी दूसरी लड़की दीगर लगती है तो उनकी सोच कामुक हो जाती है । वहीं कामुकता घर पहुंचकर वही उनकी सोच बदल जाती है ,,अरे तब वह कहते है भोलापन बचपन छलक रहा है जब वह पहन लेती उनकी 16 बरस की बच्ची ।
आज भी साड़ी जैसे परिधान को गरिमा में माना जाता है तो वहीं पर कुछ लोगों का कहना है कि पेट आधा खुला है ,, क्या आधुनिक ब्लाउज है,,, आदि-आदि । मैं कहती हूं कि गंदगी लोगों के दिमाग में होती है जिसके पास संस्कार होते हैं उसे वह शोभनीय और अशोभनीय का ख्याल रहता है और जिनके पास में संस्कार है ही नहीं तो उससे क्या उम्मीद रखना वह गंदे लोग अच्छी बातों को भी गंदगी की तरफ ले जाएंगे ।
यदि अपने अस्तित्व को बनाए रखना है तो इस छद्म आधुनिकता और वास्तविकता आधुनिकता के बीच का अंतर समझना होगा आधुनिकता के नाम पर जो हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है ।
वर्तमान समय में फैशन का दुष्प्रभाव पुरुष व स्त्री दोनों में समान रूप से दिखाई देता है मैं कहती हूं पहनावे में स्वतंत्रता जरूरी है पर फूहड़पन नहीं इसलिए यही कहना चाहूंगी कि भारतीय संस्कृति के दुशासन मत बनिए सभ्य कपड़े पहनिए वरना आने वाले समय में बेटी को पालना मुश्किल हो जाएगा । संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को ही है जैसे गाड़ी के दोनों पहिए में संस्कार की हवा चाहिए एक ही पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब हो जाएगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है तो सबसे मॉडर्न जानवर है ।
Nice lines, good thinking 👍
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