स्त्री
"विशेल कामदर्तो व गुणरवा परिवाजित :
उपचय: स्त्रियासाधव्या सतत देववत पति : "
तात्पर्य पति चाहे शील रहित हो ,काम पूर्ण हो या अवगुण युक्त हो , कैसा भी क्यों ना हो स्त्री के द्वारा उसकी सेवा सदा देवता तुल्य होनी चाहिए ।
कुछ सवाल हम सभी को सोचने पर विवश कर देते हैं -----
क्या स्त्री का धर्म अधिकारी पुरुष अधिकृत पत्नी बन कर रहना है ,,??
क्या सारे नियम बंधन स्त्री के लिए ही है ,,,??
क्या पुरुष परम स्वतंत्र है ,,,??
क्या सारे समाज में पुरुष के आना चार को अनदेखा किया जाता है ,,,??
क्या स्त्री को ही सब कुछ सहन करना होता है,,,??
परिवार में बच्चे पैदा करने से लेकर बच्चों की पढ़ाई तथा उसके शादी ब्याह जैसे निर्णय लेने का अधिकार स्त्री को नहीं होता इस प्रकार स्त्री दोहरे दर्जे की जिंदगी व्यतीत करती है ।
हिंदी में स्त्री विमर्श एक वैश्विक विचारधारा है लेकिन विडंबना यही है कि हिंदी में जो स्त्री विमर्श चल रहा है उसका इस वैश्विक विचारधारा से बहुत कम लेना देना है या नहीं के बराबर है ।
हिंदी में जो भी स्त्री विमर्श है उसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह सिर्फ साहित्यिक दायरे तक सिमटा हुआ है।
मैत्रेई पुष्पा और लता शर्मा मनीषा और रोहिणी अग्रवाल जैसे लेखिकाओं को पढ़ने से लगता है कि स्त्री विमर्श से दयनीय कोई दूसरा विमर्श नहीं है क्योंकि हिंदी में इन्हीं लेखिकाओं ने ज्यादा मुखर होकर स्त्री विमर्श पर लिखा है ।
स्त्री की योग्यता को हमारा समाज पुरुष प्रधान होने के कारण सदैव ही कम ही आता है कुछ शीर्षस्थ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो स्त्रियों की संख्या पुरुषों के मुकाबले में सब कहीं बहुत कम है ।
स्त्री को आधुनिक काल में सभी अधिकार प्राप्त हैं उसे कमाने का अधिकार है परंतु उस कमाई पर खर्च करने का अधिकार उसे नहीं है यदि उसे अपनी मर्जी से कुछ खर्च भी करना है तो उसे पहले पति की इजाजत लेनी होगी ।
तात्पर्य यह है कि परिवार में अपने परिश्रम के उपार्जन को स्त्री अपने ढंग से खर्च भी नहीं कर सकती है कमाती वह है पर हिसाब पति के पास होता है ।
इतनी विषमताओं के बावजूद भी स्त्री ने अपने पांव अंगद की तरह कामकाजी दुनिया में टिका रखे हैं जिससे हटा पाना किसी भी पुरुषवादी सोच के लिए असंभव है आज श्री अपने दम पर अपनी योग्यताओं के बल पर जीत रही है और जीत भी रहेगी ।
दूसरी और नौकरी पेशा स्त्रियों के पतियों को भी अपना दृष्टिकोण उदार बनाना होगा । रूढ़िवादिता का त्याग करें,,,, असहयोग केवल भविष्य को अंधे कुएं में धकेल सकता है रोडे अटकाने की अपेक्षा पुरुष आत्मा लोचन करें । सहधर्मिणी का सहयोग करें और भारतीय पति की परंपरागत इमेज को तोड़कर एक नई परिस्थितियों में स्वयं को संदर्भित करें । स्त्री के अधिकार मनुष्य के अधिकार हैं ।
आपसे से पुर्णतः सहमत। उत्तम लेख👌👌
ReplyDeleteVery nice wrote, respect women's
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