चरित्रहीन कोन ,,,,,??
#औरत_कभी_चरित्रहीन_नही_होती
औरत के चरित्रहीन होने से पहले पुरुष अपना चरित्र खोता है !
औरतों को नीचा दिखाने का सबसे सरल और सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला तरीक़ा है कि उसे वेश्या, कैरेक्टरलेस कह दिया जाये, या उसे अपने किसी गलत तरीके से उसकी तरफ इशारा किया जायें।
ये बात और है कि हमारा समाज इस बात पर कभी ध्यान नहीं देता कि वो वेश्या अकेले कैसे बन जाएगी ? उसको वेश्या बनाने में किसी पुरुष का होना बेहद ज़रूरी है।
जब एक स्त्री नंगी होती है, देह बेचने के लिए, तो पुरुष अपने कपड़े पहले ही उतार चुका होता है। वेश्या की ईमानदारी तो है कि वो एक जगह पर वेश्या है, लेकिन पुरुष का क्या जो अपने घर की दहलीज़ पर अपने तथाकथित चरित्र को त्याग कर किसी वेश्या के वक्षस्थल पर अपने हाथ फिराने आता है ?
उस पुरुष को वेश्या कहने में संकोच कैसा ?
तुम्हें अपने हिस्से का आनंद भी चाहिए, तुम्हें विवाह से बाहर किसी दूसरी स्त्री के साथ सेक्स भी चाहिए और चाहिए चरित्र भी। वाह ! और वहाँ से निकलते हुए, या उसी बिस्तर पर नग्नावस्था में, तुम उसे वेश्या कहकर गाली देने से भी नहीं हिचकते। जबकि वेश्या तो असल में तुम हो, वो तो अपना काम कर रही है। उसने तो कभी नहीं कहा कि वो कुछ और है, और तुम किसी और की तलाश में आए और उसने तुम्हें अपने कमरे में खींचकर, बिस्तर पर पटक कर तुम्हें नंगा किया और असहाय ! तुम बस अपने चरित्र का हनन देखते रहे। हाय रे पुरुष !
जब तक तुम अपनी मर्यादा नहीं लाँघते, कोई स्त्री कैसे वेश्या हो जाएगी ?
क्या उसने बंद कमरे में रहकर ही शहर में मुनादी करवा दी है कि वो वेश्या हो गई ?
यही कारण है कि तुम्हारे मुँह से, तुम्हारे प्रचारतंत्र में, ये कह दिया जाना कि वो वेश्या है, तुम्हारी जीत का डंका हो जाती है। तुम अपनी उतरती पतलून नहीं देखते लेकिन उसका डिज़ाइनर ब्रा देखकर ही तुम्हें लगने लगता है कि 'ये क्या! सेक्स को लेकर ये तो उतारनी ही है, मुझे रिझाने के लिए इसने ऐसी ब्रा पहन ली है, ये तो दिनभर सेक्स के ही बारे में सोचती होगी।' वाह रे पुरुष ! वाह रे तेरी मर्दानगी ! वारे रे तेरी सोच !
तुम औरतों से कहाँ हीन नहीं हो ? और तुमने उसे कहाँ मारने की कोशिश नहीं की ?
अरे हाँ याद आया, तुम्हारी नजरो में तो वो हमेशा से ही नीच व बच्चे पैदा करने की मशीन है जिसने स्त्री को कभी इंसान ही नही समझा।
तुम्हारे पुरुष घटिया मानसिकता के अनुसार सदाचार हीन या बदचलन, गैर-औरत के साथ संबंध रखने वाले, शिक्षा आदि गुणों से हीन पति भी पतिव्रता औरतों के लिए देवता सम्मान पूजनीय है!
पुरुष ने औरत को व्यापार को उचित ठहराता है!
,पुरुष लोगों को चाहिए कि वह औरतों को दिन-रात अपने अधीन रखें !
पुरुष अनुसार, स्त्री को कभी आजाद रहने का अधिकार नही, बचपन में वह पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्रों के अधीन रहना चाहिए ! पुरुष के अनुसार, स्त्री आजाद होने पर दोनों भाव पिता और पति दोनों के कुलों का नाश करती है, पुरुषों को स्त्रियों की दिन-रात देखभाल करनी चाहिए ! पुरुषो के अनुसार, स्त्रियों को बचाकर रखना चाहिए वह सुंदर या कुरूप का भी ध्यान नही करती वह किसी भी पुरुष की हो जाती है !
और उस पुरुष को कोई कैसे भूल सकता है जिसने का था।
ढ़ोल,गंवार,शुद्र,पशु नारी। ये सब ताड़न के अधिकारी !
अरे, तुमने उसे कहाँ-कहाँ नही नोचा, और कहाँ-कहाँ तक तुमने उसे नीचा नही दिखा, इतना सब टूटकर भी वह आज जिंदा है , याद रहे तुम उसकी बराबरी कभी नही कर पाओगे !
भ्रुण से लेकर पैदा होते ही निपटा देते हो उसे तुम। फिर उसके और तुम्हारे भोजन में अंतर आता है, शिक्षा में अंतर आता है। फिर तुम्हारे सपने उससे बेहतर हो जाते हैं तो उसे तुम घर में गृहिणी बना देते हो (उसकी इच्छा हो या ना हो)। तुम उसे ये समझा देते हो कि घर संभालना 'ही' उसका 'धर्म' है, और पति के खाने के बाद ही वो बचा-खुचा खाकर, देर रात में सो सकती है। उसे जगना भी तुमसे पहले है ताकि तुम्हारे कार्य करने में देर ना हो जाए। रात में उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे रौंदते भी तो होगे कई बार। कई बार तो तुम उसके साथ अप्राकृतिक सेक्स करने की भी कोशिश करते हो। फिर भी वो चुप हती है !
फिर वो चरित्रहीन कैसे हुई ?
चरित्र की परिभाषा या तो तुमने नई गढ़ ली है या फिर तमाम तरह के छलावों की तरह अपने बनाए समाज में, तुम ही जज हो, तुम ही वक़ील, तुम ही अपराध करने वाले और तुम ही ये कहने वाले कि पीड़िता ने जीन्स पहना तो मैं बहक गया। फिर अपनी अदालत में तुम उसे जीन्स पहनने से रोक दोगे, क्योंकि ग़लती तो उसी की है ना !
क्योंकि स्त्री की देह को देखकर तुम्हारे मन का बहक जाना तो ब्रह्मा ने वेद की रचनाओं में लिखकर दिया था ना ! क्योंकि तुम्हारे मन के कुत्सित विचारों का ज़िम्मा भी तो वही उठाएगी ना जिसने नौ महीने तुम्हें पेट में पाला है, और वो सौभाग्य से एक स्त्री है। तुम्हारा जन्म स्त्री से है, तो तुम्हारे सारे पाप भी तो उसी की देह पर फेंके जाएँगे ना !
तुम्हारा सौभाग्य ही तो है कि किसी स्त्री ने तुम्हें जन्म दिया और तुम किसी स्त्री को वेश्या कह लेते हो और कोई स्त्री उस पर हँस देती है और कोई स्त्री उस दूसरी स्त्री को वेश्या कह लेती है। तुम्हारे साथ तो इतने सौभाग्य चल रहे हैं। फिर भला स्त्रियों को वेश्या बताने से पहले तुम ये क्यों सोचोगे कि वहाँ एक पुरुष की मानसिकता होना ज़रूरी है।
हो सकता है कि कुछ भाई लोगों को मेरी बात बुरी लगे हमे क्षमा करे 🙏
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