स्त्री

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त्री के लिए प्रेम का मतलब होता है सब कुछ मिला कर एक ही में केंद्रित कर देना फिर स्त्री की हर बात, हर सोच, हर चाह उसी एक केंद्र के चारों तरफ़ घूमती रहती है । शायर स्त्री को शमा और पुरुष को परवाना कहते हैं लेकिन सच्चाई तो यह है स्त्री ही परवाना है वो जिसे प्रेम करती है उसी में समा जाना चाहती है चाहे उसका ख़ुद का अस्तित्व ही क्यों ना ख़त्म हो जाए वो उसी के अस्तित्व में मिल जाना चाहती है । स्त्री का प्रेम बहुत हद तक मान, अपमान, अपेक्षा, उपेक्षा से परे होता है उसका क्रोध उसकी चिड़चिड़ाहट भी तभी प्रकट होती है जब उसे प्रेम के बदले प्रेम ना मिले वो कम प्रेम में ख़ुश रह सकती है लेकिन उसे प्रेम के बदले प्रेम चाहिए । स्त्री तब तक सब कुछ सहन कर लेती है जब तक उसे विश्वास हो की वो जिसे चाहती है वो भी उसे ही प्रेम करता है जो स्त्री परस्पर प्रेम में होती है वो एक गहरी नींद में होती है और सब कुछ स्वप्न होता है वो इसी स्वप्न में रहना चाहती हमेशा हमेशा के लिए । वो जिसे चाहती है सिर्फ़ उसी के साथ मारते दम तक उसी की हो कर रहना चाहती है । और पुरुष के लिए प्रेम का मतलब है इकछाओं का ढेर, उसी ढेर में कई महत्वकांक्षाओं के साथ प्रेम भी पड़ा होता है । पुरुष को ये भी चाहिए, वो भी चाहिए सब कुछ चाहिए पूरी दुनिया चाहिए और इस सब के साथ प्रेम भी चाहिए पुरुष स्त्री की तरह नहीं है की प्रेम का होना ही सब कुछ है । पुरुष को तो सब कुछ के साथ ही प्रेम भी चाहिए होता है । ऐसा नहीं कि वो प्यार नहीं करता, बहुत करता है, चिंता भी करता है परवाह भी करता है लेकिन स्त्री की तरह सिर्फ़ यही नहीं करता रहता , वो दुनियादारी में भी जीता है और अक्सर ग़ैर ज़रूरी बातों में उलझता रहता है और स्त्री उसे इन सब बातों में व्यस्त देख कर भी चुपचाप रहती है वो इंतज़ार करती है की ये जब फ़ुरसत होगा तब बात करूँगी, तब बोलूँगी अभी परेशान है , अभी दुखी है , अभी आराम कर रहा है मैं तो बाद में बात कर लूँगी । लेकिन पुरुष, उसे इंतज़ार पसंद नहीं वो कभी इंतज़ार नहीं करता वो जो चाहता है तुरंत चाहता है उसके लिए प्रेम का मतलब ही यही है जो चाहिए तुरंत पा लेना । स्त्री शिकायत करती है, नाराज़गी होती है, ग़ुस्सा होती है और वो कहता है “ तू कुछ नहीं समझती “ और वो मान लेती है की हाँ सच है मैं नासमझ हूँ मैं कुछ नहीं समझती । सच है किसी के प्रेम में जी रही स्त्री कभी कुछ नहीं समझती । वो हर बात को मान लेती है हर चीजो को मैनेज करती हुई चलती है । स्त्री बस इतना समझती है कि वो जिससे प्रेम करती है उसके और इसके दरमियान और कोई तीसरा न आये, यदि कदाचित ऐसा उसे कभी ज्ञात होता है तो वो लगभग टूट जाती है ऐसी स्थिति में यदि सामने वाले को अपराध बोध है यदि उसे इस बात पर पछतावा है यदि इस स्थिति में भी वो उसके साथ स्टैंड है आगे से ऐसा न होने का विश्वास दिलाता है तो मेरे हिसाब से स्त्री को उसे क्षमा करने पर विचार करना चाहिए । ❤️❤️

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