एक चिंतन ,,,,




औरत.....

औरत क्या है?

हॉट है, चोट है,
या सड़क पर गिरा नोट है?
अकेली दिखती है तो,
ललचाती है, बहलाती है,
बड़े-बड़े योगियों को भरमाती है

अपनी कोख से जनती है, पीर पैगम्बर
फिर भी पाप का द्वार कहलाती है

चुप रहना ही स्वीकार्य है, बस
बोले तो मार दी जाती है।

प्रेम और विश्वास है गुण उसका
उन से ही ठग ली जाती है।

जिस को पाला निज वत्सल से
जिस छाती से जीवन सींचा

उस छाती के कारण ही वो
उन की नजरों में आती है।

मेरा तन मेरा है, कह दे
तो मर्यादा का उल्लंघन है।

और ये औरत ही विवाह समय
बस दान में दे दी जाती है।

साहस भी है, अहसास भी है
ईश्वर की रचना खास भी है

अपमानित हो कर क्यों फिर वो
गाली में उतारी जाती है??

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