हिंदी हमारी भाषा है
संतान को दोष न दें.
बालक को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाया
अंग्रेजी बोलना सिखाया,
'बर्थ डे' और
'मैरेज एनिवर्सरी'
जैसे जीवन के शुभ प्रसंगों को
अंग्रेजी संस्कृति के अनुसार
जीने को ही श्रेष्ठ मानकर...
माता पिता को 'मम्मा' और
'डैड' कहना सिखाया...
जब अंग्रेजी संस्कृति से परिपूर्ण
बालक बड़ा हो कर
आपको समय नहीं देता,
आपकी भावनाओं को नहीं समझता,
आप को तुच्छ मान कर
जुबान लडाता है और
आप को बच्चों में
कोई संस्कार नजर नहीं आता है,
तब घर के वातावरण को
गमगीन किए बिना या
संतान को दोष दिए बिना
कहीं एकान्त में जाकर रो लें...
क्यों कि...
पुत्र की पहली वर्षगांठ से ही
भारतीय संस्कारों के बजाय
केक कैसे काटा जाता है
सिखाने वाले आप ही हैं......
हवन कुंड में आहुति कैसे डाली जाए,...
मंदिर,मंत्र, पूजा पाठ आदर सत्कार के
संस्कार देने के बदले,
केवल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने को ही
अपनी शान समझने वाले आप..
बच्चा जब पहली बार घर से
बाहर निकला तो उसे,,
'प्रणाम आशीर्वाद'
के बदले
'बाय बाय'
कहना सिखाने वाले आप..
परीक्षा देने जाते समय
इष्ट देव /बड़ों के
पैर छूने के बदले
'Best of Luck'
कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप..
बालक के सफल होने पर
घर में परिवार के साथ बैठ कर
खुशियां मनाने के बदले,,,
होटल में पार्टी मनाने
की प्रथा को बढ़ावा देने वाले आप..
बालक के विवाह के बाद
कुल देवता / देव दर्शन
को भेजने से पहले...
हनीमून के लिए
'फारेन /टूरिस्ट स्पॉट' भेजने की तैयारी
करने वाले आप..
ऐसे ही ढेर सारी अंग्रेजी संस्कृतियों को
हमने जाने अनजाने स्वीकार कर लिया है,
अब तो बड़े बुजुर्गों और श्रेष्ठों के पैर
छूने में भी शर्म आती है...
गलती किसकी...??
मात्र आपकी (मां-बाप) की
अंग्रेजी मात्र भाषा है...
इसे सीखना है..
इसकी संस्कृति को
जीवन में उतारना नहीं है..
मानो तो ठीक..
नहीं तो भगवान ने जिंदगी दी है..
क्योंकि संस्कारविहीन दो पैर
वाले पशुओ की संख्या बहुत
ज्यादा बढ़ गयी है
चल रही है,
चलती रहेगी
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