स्त्री के प्रश्न हाशिये हाशिये के नही बल्कि जीवन के केंद्रीय प्रश्न है ।
“तुम देवी आह , कितनी उदार ।
यह मातृभूमि निर्विकार "।
कामायनी , दर्शन सर्ग
जयशंकर प्रसाद
ईश्वर ने इंसान बनाया और इंसान को निरन्तर रचना के क्रम में बांधने हेतू बनाया स्त्री को । यह संसार , इसमे रहने वाले विभिन्न समाज , साहित्य कला , विज्ञान सभी कुछ स्त्री के बल पर है ।इसलिए स्त्री इस सृष्टि से जुड़ कर विश्व को देखती है । उसका रिश्ता जमीन से आसमान तक बंधता है । यही वजह है कि स्त्री के प्रश्न हाशिये के नही बल्कि जीवन के केंद्रीय प्रश्न है ।
आदर्श नारी , आदर्श बहु ये तो ऐसा खंज़र है जो स्त्री जाति पर चलता रहता है ।
लेकिन हमारे समाज में जो स्त्री के प्रति दरिंदगी का सिलसिला चल रहा है ,,, यही वजह है कि स्त्री उनके हाथों से निकल रही है । स्त्री अपना हक मांगेगी या खुले आसमान के नीचे निकलेगी तो पुरुष रोकेगा उसका शिकार करेगा ,,, अपनी ताकत दिखायेगा । ओर यदि स्त्री ने पराजित कर दिया तो निश्च्य अगली बार झुंड बना कर उसे धराशाही कर दिया जाएगा ।
रूढ़ियों का ये मार्ग सड़ाँध से भरा कीचड़ भरा मार्ग है जो स्त्री के विकास के साथ समाज के विकास को भी रोक देता है । इन सड़ी गली पुरातनपंथियो के इस दलदल में आज की स्त्री ने फसने से इंकार कर दिया है । उसने व्यक्त्वि के विकास के लिए बाड़े बंदिशों को तोड़ा है ।
वो स्वयं अपने आप को मुक्ति की मशाल लिए आगे बढ़ रही है । उस मशाल में * लो * प्रज्वलित कर रही है उसमें कही भी धुंआ नही है ।
यह मातृभूमि निर्विकार "।
कामायनी , दर्शन सर्ग
जयशंकर प्रसाद
ईश्वर ने इंसान बनाया और इंसान को निरन्तर रचना के क्रम में बांधने हेतू बनाया स्त्री को । यह संसार , इसमे रहने वाले विभिन्न समाज , साहित्य कला , विज्ञान सभी कुछ स्त्री के बल पर है ।इसलिए स्त्री इस सृष्टि से जुड़ कर विश्व को देखती है । उसका रिश्ता जमीन से आसमान तक बंधता है । यही वजह है कि स्त्री के प्रश्न हाशिये के नही बल्कि जीवन के केंद्रीय प्रश्न है ।
आदर्श नारी , आदर्श बहु ये तो ऐसा खंज़र है जो स्त्री जाति पर चलता रहता है ।
लेकिन हमारे समाज में जो स्त्री के प्रति दरिंदगी का सिलसिला चल रहा है ,,, यही वजह है कि स्त्री उनके हाथों से निकल रही है । स्त्री अपना हक मांगेगी या खुले आसमान के नीचे निकलेगी तो पुरुष रोकेगा उसका शिकार करेगा ,,, अपनी ताकत दिखायेगा । ओर यदि स्त्री ने पराजित कर दिया तो निश्च्य अगली बार झुंड बना कर उसे धराशाही कर दिया जाएगा ।
रूढ़ियों का ये मार्ग सड़ाँध से भरा कीचड़ भरा मार्ग है जो स्त्री के विकास के साथ समाज के विकास को भी रोक देता है । इन सड़ी गली पुरातनपंथियो के इस दलदल में आज की स्त्री ने फसने से इंकार कर दिया है । उसने व्यक्त्वि के विकास के लिए बाड़े बंदिशों को तोड़ा है ।
वो स्वयं अपने आप को मुक्ति की मशाल लिए आगे बढ़ रही है । उस मशाल में * लो * प्रज्वलित कर रही है उसमें कही भी धुंआ नही है ।
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