न जीती है ,,, न जीने देती है ,,,

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यही है देवी  , माता भी यही है , 
बांधा है जिसमे प्यार से सबको

 असल में वह नाता भी यही है
 बिन नारी न सृष्टि चलेगी
 इस बात का तुम सब ज्ञान करो







  "ना खुद जीती है ना हमें जीने देती है |"
 वह अपने टोडी कुत्ते के समान विचारों वाले संवादों से नित्य प्रतिदिन स्त्री के अस्तित्व को ठेस पहुंचाने के नए-नए जाल बुनते रहते हैं । जीवन के सारे हौसले पस्त हो जाते होंगे उस समय ।



 आपने कभी सांप को देखा है सुना तो अक्सर होगा कि वह समय समय पर अपने केचुली उतार फेंकता है ।  अथार्थ अपनी पुरानी खाल को उतार फेंक नई खाल का नया आवरण  धारण कर लेता है ।


 तो फिर हमारे समाज के साथ ऐसा  संभव क्यों नहीं ,,??  क्यों हम उन पुरातन मान्यताओं को सीने से लगाए बैठे हैं जिसमें हमारा स्वयं का दम घुट रहा हो  ,,,??  क्या उन पुरानी व्यर्थ की मान्यताओं अथवा रूढ़ियों को  आवश्यकतानुसार बदल देना या समाप्त कर देना उचित नहीं है ,,??



 आज भी हमारे समाज में उस स्त्री को सम्मान नहीं दिया जाता या सम्मान की अधिकारिणी नहीं जिसने कन्याओं को जन्म दिया हो ।।  इतना ही नहीं हर स्थान पर वह आलोचना का शिकार बनती रहती है ।।



 यह कटु सत्य है कि  ,,, लड़का होने पर उनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होती किंतु यदि लड़की पाए जाने पर भ्रुण से छुटकारा पाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है ।

 सवाल यह उठता है कि देवी स्वरूप वह बलिदानी मां उस अजन्मे  शिशु को मारने की स्वीकृति कैसे दे पाती है ,,,??
 क्या उस बच्ची को जीने का अधिकार नहीं है,,,??
 इस हत्या का दोषी भी यदि कहा जाए तो हमारा समाज ही है जो आंख मूंद कर ऐसे घिनौने कृत्य करवाता है ।


 यह स्त्रीविरोधी नजरिया सिर्फ गरीब परिवारों तक ही सीमित नहीं है ।  इस भेदभाव के पीछे हमारी सांस्कृतिक मान्यताएं हैं और सामाजिक नियमों का ही हाथ है ।


 उस स्त्री को हिकारत की नजरों से देखा जाता है जिसने कन्या को जन्म दिया हो ।  स्त्री की इस हिकारत के पीछे सामाजिक आर्थिक उपयोगिता जैसे कारक भी हैं ।  पुरुष प्रधान समाज की यह प्रथा है की वंश चलाने के लिए पुत्र का होना अनिवार्य है ।  स्त्री की इस हिकारत का एक अन्य कारण यह भी है कि विभिन्न धार्मिक अवसरों पर केवल पुत्र ही भाग ले सकते हैं ।

 माता पिता की मृत्यु पर आत्मा की शांति के लिए केवल पुत्र ही मुखाग्नि दे सकता है ।



 न जाने क्यों लोग उस बेटी को वह मानने लगते हैं जो दो घरों की जिम्मेदारियां निभाते समय भी कभी शिकायत नहीं करती ।  और तो और हमारे समाज के कई लोग अपने गिरे हुए स्तर से ऊपर उठकर स्त्री की महानता को कभी समझ नहीं पाते ।



 आज तक बेटों ने ही मां-बाप को घर से
                         निकाला है ।।
 बेटियों ने तो हमेशा ही सारे रिश्तो को
                          संभाला है ।।


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