प्रेम

ओशो कहते हैं कि पुरुष जितना प्रेम शब्दों में प्रकट करेगा उससे कई गुना ज्यादा स्त्री मोन में प्रकट कर देगी   ।। वह यह भी कहते हैं कि प्रेम में आप दूसरे को महत्व देते हैं जबकि वासना में सिर्फ आप स्वयं  को ।


प्रेम तो जीवन को गतिशील बनाता है वर्तमान समय में प्रेम मर्यादा और संयम और नैतिकता को तोड़ सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करता दिखाई देता है ।  मनुष्य के समक्ष मूल समस्या जीने की है और कोरा आदर्शवाद जीवन को विकृत बना दिया करता है ।

वर्तमान समय में प्रेम को सेक्स से जोड़ा जाता है जो कदापि सही नहीं है । सैक्स आपके जीवन का अहम हिस्सा हो सकता है ।  लेकिन प्रेम का स्थान उससे कहीं अधिक ऊंचा है । मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया था किसी गलत वजह से नहीं । पवित्र प्रेम के सोचने वाले सही है । प्यार और विश्वास किसी भी दंपति के जीवन का आधार है दांपत्य जीवन में प्रेम का मतलब सिर्फ सेक्स से नहीं होता । एक दूसरे के प्रति आत्मीय हो जाना ही प्रेम है ।  एक दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकार करना प्रेम है। तब विवाह एक बंधन ही नही प्यारा सा बंधन बन जाता है और अजीब बात यह है कि वह बंधन भी प्यारा सा लगने लगता है । प्रेम स्वतंत्रता देता है परंतु उच्श्रृंखलता और गड़बड़ भोग को पैसा बना लेना या अपनी वासना पूर्ति के लिए सामाजिक जीवन व्यवस्था में अड़चन डालना आपसी रिश्तों के साथ खिलवाड़ करना नहीं सिखाता ।

वह प्रेम नहीं आचरण का खोखलापन है प्रेम तो स्वता और स्वतंत्र होने में है । भय या मजबूरी से शरीर दिया जा सकता है परंतु प्रेम नहीं । यदि प्रेम बिलकुल छिछला या थीथला  रहे तो वह असंयत वासना मात्र बन जाता है ।


प्रेम कोई सदियों में घटने वाली घटना नहीं है । यह तो क्षणभर का चमत्कार है। हम जिसे जीवन भर पकड़ कर रखते हैं वह बंधन है और जो जरूरत है वह रिश्ते हैं । लेकिन वह प्रेम नहीं ।
प्रेम का मतलब तो देना है और देने में प्रेम का आनंद मिलता है ।  लेने में नहीं इसमें आत्मसम्मान जैसे मुश्किल शब्द भी सामने आते हैं ।


 मैं जिस प्रेम की बात कर रही हूं । वह कभी असफल होता ही नहीं है ।  और यदि कोई जल जाए तो भी वह राख न बनकर कुंदन बन जाता है ।


 लेकिन वर्तमान परिस्थितियों बदल रही है । स्वतंत्र प्रेम के मार्ग में अग्रसर होता युगल जोड़ा अपनी जिद पूरी करने के लिए अनेक सामाजिक समस्याओं को उत्पन्न कर दिया करते हैं । स्त्री पुरुष आकर्षण स्वभाविक है । लेकिन यह आचार और नैतिकता के मार्ग में बाधक बन जाते हैं । और आपसी रिश्तो और समाज में अंतर विरोध का कारण भी बन जाते हैं ।


पाश्चात्य देशों की भांति ही भारत में भी लोग अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही प्राथमिकता देते हैं । सामाजिक बंधनों की परवाह नहीं करते हुए बिना किसी बंधन के स्वतंत्र प्रेम को स्वीकार कर लेते हैं ।

 हमारे संविधान ने तलाक को हमारे हित में ध्यान रखकर ही बनाया गया है । लेकिन इसका दुरुपयोग ही धड़ल्ले से अधिक हो रहा है । कोई दूसरा यदि पसंद आ गया है तो छोटी-छोटी बातों को।  तूल देकर मानसिक या शारीरिक प्रताड़ित होने से अच्छा है कि तलाक ले लिया जाए या जीवन भर घुट घुट कर अपने साथी को नीचा दिखा कर जीवन गुजारना ही क्या प्रेम है  ,,,,???पति पत्नी के प्रेम में उतार-चढ़ाव , बनना ओर बिगड़ना चलता रहता है । और यह बात नहीं है कि प्रेम विवाह के बाद प्रेम में खटास आने लगती है बल्कि अरेंज्ड विवाह में भी ऐसा होना अपवाद स्वरूप मौजूद है ।




आधुनिक स्त्री पढ़ लिख कर या आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गई है कि वह आसहनशील होने के साथ-साथ अभिमानी भी होती जा रही है वह किसी भी प्रकार का समझौता करने से भी कतराती है । पश्चिमी देशों की सभ्यता का अनुसरण करते वह सिर्फ और सिर्फ स्वयं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही महत्व देती है जो कि कभी कभी सफल वैवाहिक जीवन के लिए घातक हो जाता है और अंत में उसी रफ्तार से तलाक भी हो जाता है जहां पर ---" तू "नहीं "और "सही वाली सोच या विवाहेतर संबंध में प्रेम ढूंढने की लालसा स्त्री पुरुष का जीवन शैली और प्रेम के स्वरूप को ही बदल देती है। या खाक कर देती है । अन्त में सवाल यह उठता है कि क्या प्रेम या विवाह बंधन है ,,,??
यदि प्रेम नहीं है तो फिर वह मात्र बंधन ही कहलाएगा । क्योंकि आपस में प्रेम होना यानी स्वतंत्रता और आनंद का होना जरूरी है । यदि प्रेम झूठा है तो वह मात्र दिखावे का प्रेम है जिसमें महज आकर्षण या फिर समझौता ही हो सकता है । प्रेम तो स्वतंत्रता का पक्षधर है। इसका तात्पर्य यह नहीं कि बस थोड़ा सा प्रेम हुआ कि नहीं अपने साथी पर अधिकार जताने लग जाते हैं । कहां जाता है कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है । तब फिर मिलन का क्या अर्थ है ,,,शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से मिलन,,, में क्या फर्क है ,,,?? प्रेम शास्त्री कहते हैं कि देह की सुंदरता के जाल में फंसने वाले कभी सच्चा प्रेम नहीं कर सकते । तब फिर सच्चा प्रेम किसे कहें ,,,,???फिल्मों में तो सच्चे प्रेम की बहुत दस्ताने बताई जाती है लेकिन हकीकत में ऐसा कम ही देखने में मिलता है  ।


ऐसे कई शोध आते हैं फिर उनका खंडन करने के लिए नए शोध आ जाते हैं ।

लेकिन सवाल यह है कि क्या सच्चा प्रेम करना या होना सचमुच ही मुश्किल है ,,,,,????

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