स्त्री
जीवन में सब कुछ इतनी सुगमता और सरलता से चलता रहे । यह हमेशा नहीं होता है क्योंकि जिस प्रकार हर दिन के बाद काली रात अवश्य आती है । ठीक उसी प्रकार सुख के बाद दुख भी आता है और प्रत्येक व्यक्ति को सुख और दुख का सामना जीवन में करना ही पड़ता है ।
The earth is a stage man is actor and god is director .
यानी यह पृथ्वी रंगमंच है मानव अभिनय करता है और प्रभु कहे ईश्वर कहें या अल्लाह कहें वही सब को निर्देशित करने वाला है समाज की गतिविधियों को देखते हुए मशहूर लेखक व नाटककार विलियम शेक्सपियर की सदियों पहले की गई यह टिप्पणी आज के आधुनिक समाज में भी एकदम सटीक बैठती है ।
आधुनिक समाज में शिक्षा का स्तर होने के कारण स्त्रियों में काफी जागरूकता आई है । उन्होंने अपनी खुद की पहचान और मनोबल शिक्षा से ही प्राप्त किया है । जिससे एक बहुत बड़ा बदलाव हमें देखने को मिलता है । इस बात को आधुनिक पुरूष भी समझ रहा है और आधुनिक स्त्रियों को समाज में सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही कड़ी भूमिका निभानी पड़ रही है । क्योंकि वर्तमान समय में भी पुरुष को आजादी स्त्री को देने के लिए तैयार नहीं है । जो स्वयं पुरुष अपने जीवन में अनुभव करता है । आज के समाज में स्त्रियों के प्रति हो रहे अपराध को समझने की आवश्यकता है तथा व्यक्ति को भी अपने अंदर बदलाव लाने की आवश्यकता है ।
कुछ ऐसी बातें हैं जिनको प्राय हम अपने आसपास घटित होते हुए देखते हैं या कहें कि लड़कियों को बचपन से ही शोषित होते हुए देखते हैं । और जिन पर अंकुश लगना निहायत जरूरी है जैसे कि किसी भी परिवार में लड़की जन्म लेती है तो वहां मातम सा छा जाता है । जैसे उस घर की प्रसन्नता को ग्रहण ही लग गया हो । घर के बड़े बूढ़े तो उसे स्वीकार ही नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें वंश बढ़ाने के लिए पुत्र की आवश्यकता होती है । ऐसे में सर्वप्रथम जन्म देने वाली माता ही जिम्मेदार बनती है कि उसे सहर्ष प्रेम पूर्वक स्वीकार है क्योंकि उस लड़की को जन्म देने वाली मां भी तो एक स्त्री ही है । लड़कियों की परवरिश को लेकर भी समाज में कई सारे भेदभाव व्याप्त हैं ।
स्त्री तो बचपन से ही अपने त्याग से पीछे नहीं हटी है जो मानवता के हिसाब से बिल्कुल भी ठीक नहीं है । जब सभी स्त्री और पुरुष इस बात पर गौर करें कि बचपन में किए जाने वाले त्याग से नारी को मुक्त किया जा सकता है और इस तरह एक माँ ही अपनी बेटी को संवार कर उसके बचपन को खुशहाल बना अपनी बेटी को वर्षों से निरंतर चली आ रही परंपराओं से मुक्त कराकर उसके बचपन को त्याग मुक्त कर सकती है ।
हमारा आज का समाज स्त्री और पुरुष दोनों के को समानता की नजर से देखने की बात करता है । लेकिन स्थिति ठीक इसके विपरीत है क्योंकि जिस तरह से आज स्त्रियों की संख्या का अनुपात पुरुषों की तुलना में कम होता जा रहा है । उससे तो ऐसा प्रतीत नहीं होता । हमारे समाज में आज भी कन्या के जन्म पर खुशी नहीं दर्शाई जाती है । कन्याओं की तो हत्या तक कर दी जाती है --- जन्म लेने से पहले । इसका कारण हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियां और कुप्रथा ए भी हैं जो स्त्री और पुरुष के बीच भेदभाव फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं ।
समाज के ठेकेदारों ने ऐसे ऐसे धर्म और नियमों में स्त्री को बांध रखा है कि जो वह आज तक स्वयं को स्वतंत्रता नहीं दिला पा रही । सदियों से पहले आरंभ हुई सती प्रथा जिसमें स्त्री को उसके पति की मृत्यु के पश्चात ही जिंदा ही उसकी चिता के साथ जल जाना पड़ता था । उसे जीते जी मृत्यु की गोद में धकेल दिया जाता था । वैसे ही उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं । चाहे वह जीना चाहे या ना चाहे । उसके स्वयं के फैसले की कोई अहमियत ही नहीं । धीरे-धीरे समय के साथ यह प्रथा समाप्ति के कगार पर पहुंच गई है। परंतु दूसरी तरफ प्रथा पर्दा यह प्रथा आज भी विद्यमान है । आज भी स्त्रियों को पैदा करने अपना चेहरा ढकने की को ही उचित माना जाता है । स्त्रियों का चेहरा ढक ना उनके बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान को दर्शाता है अर्थात यदि वे पर्दा नहीं करेंगी तो उनके बुजुर्ग का अपमान माना जाएगा । इस प्रकार समाज में यहां भी रीति रिवाजों और नियमों को ढोने के लिए स्त्री को ही निशाना बनाया और स्वयं को आजाद पंछी की तरह उड़ने के लिए छोड़ दिया ।
आज के आधुनिक समय में समाज की सारी स्थितियां बदल गई है चाहे वह सुरक्षा प्रबंधन शिक्षा जागरूकता या एकल परिवार के चलन का ही रूप क्यों न हो किंतु यह सच है कि आज के आधुनिक समाज में स्त्री अपने जीवनसाथी को प्रतिदिन के काम हो तथा आने वाले समय की सफलताओं को हासिल करने के लिए भी प्रेरित करती रही है यह एक पति तक ही सीमित नहीं है बल्कि नजदीकी रिश्तो में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है ।
एक स्त्री कुछ हद तक त्याग कर सकती है जो कि पारिवारिक जीवन को सुरक्षित और संतुलित रख सकें । परंतु रोजाना की जिंदगी में बदलाव आने के कारण समस्याएं बढ़ती ही जा रही है जिससे स्त्री के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है स्त्री के प्रति होने वाले अपराधों को कम करना होगा तथा इस त्याग की मूर्ति को त्याग मुक्त कर समाज में बराबर का सम्मान दें तभी देश विकास की ओर अग्रसर हो सकता है ।
बच्चा जब जन्म लेता है तो वह सर्वप्रथम अपनी मां के संपर्क में आता है । मां द्वारा ही उसकी सभी जरूरतें पूरी होती है । बच्चों को कब भूख लगती है कब प्यास लगती है आदि सभी जरूरतों का ध्यान मा ही रखती है मां बनने के पश्चात दिन रात कैसे व्यतीत होते हैं इसका पता भी नहीं लगता । बच्चे के सोने जागने के समय साथ ही मां के दिन रात तय होते हैं । एक माँ ही है जो उसका साथ देती है इस प्रकार मां चाहे कितनी भी थकी हो पर वह संतान पर अपनी पूरी ममता लुटा देती है । स्त्री का ऐसा रूप सचमुच महान है जो हमेशा अपनों के लिए त्याग करती रहती है ।
वर्तमान समय में बहुत सी ऐसी स्त्रियां है जो अपना व्यापार तथा सरकारी नौकरी में उच्च पद पर आसीन है तथा राजनीतिक स्तर पर पूर्ण रूप से क्षमता के साथ भाग ले रही हैं । आज इसका अनुपात कम है । लेकिन आने वाले दिनों में इसका अनुपात बढ़ता ही रहेगा । क्योंकि आज की महिला पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहती और हमेशा से ही अगली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए तत्पर रहती है । इस कार्य को करने के लिए कुछ स्त्रियों ने अवश्य किसी न किसी रूप में दुख झेला है लेकिन स्त्रियों को आगे बढ़ने से अब कोई नहीं रोक सकता । लेकिन आगे बढ़ने के लिए स्त्रियों को ही कदम आगे बढ़ाना होगा तभी दूसरी और अगली सीढ़ी चढ़ी जा सकती है इसलिए यह नहीं जानती कि वह क्या-क्या कर सकती है लेकिन मैं यह कहती हूं कि वह सब कुछ कर सकती हैं । पुरुष कुछ अलग नहीं है वह भी मनुष्य ही है और इस समाज का एक हिस्सा है । और उसके ऊपर सफल होने के लिए जब दबाव डाला जाता है तब हर सफल पुरुष बनता है । अतः कुछ नया करने के लिए स्त्री को भी स्वयं पर दबाव डालना होगा और तभी स्त्री स्वयं अपने अंदर की छुपी कला को समझ पाएगी और उसका स्वयं का जीवन भी मूल्यवान हो जाएगा । नकारात्मक बदलाव बुरी तरंगों को उत्पन्न करता है जो स्वयं और स्वयं के परिवार की खुशियों को भी प्रभावित कर देता है लेकिन सकारात्मक सोच से किया गया संघर्ष और कोशिश अवश्य ही स्त्री को एक शक्ति प्रदान करता है ।
The earth is a stage man is actor and god is director .
यानी यह पृथ्वी रंगमंच है मानव अभिनय करता है और प्रभु कहे ईश्वर कहें या अल्लाह कहें वही सब को निर्देशित करने वाला है समाज की गतिविधियों को देखते हुए मशहूर लेखक व नाटककार विलियम शेक्सपियर की सदियों पहले की गई यह टिप्पणी आज के आधुनिक समाज में भी एकदम सटीक बैठती है ।
आधुनिक समाज में शिक्षा का स्तर होने के कारण स्त्रियों में काफी जागरूकता आई है । उन्होंने अपनी खुद की पहचान और मनोबल शिक्षा से ही प्राप्त किया है । जिससे एक बहुत बड़ा बदलाव हमें देखने को मिलता है । इस बात को आधुनिक पुरूष भी समझ रहा है और आधुनिक स्त्रियों को समाज में सुरक्षित रखने के लिए बहुत ही कड़ी भूमिका निभानी पड़ रही है । क्योंकि वर्तमान समय में भी पुरुष को आजादी स्त्री को देने के लिए तैयार नहीं है । जो स्वयं पुरुष अपने जीवन में अनुभव करता है । आज के समाज में स्त्रियों के प्रति हो रहे अपराध को समझने की आवश्यकता है तथा व्यक्ति को भी अपने अंदर बदलाव लाने की आवश्यकता है ।
कुछ ऐसी बातें हैं जिनको प्राय हम अपने आसपास घटित होते हुए देखते हैं या कहें कि लड़कियों को बचपन से ही शोषित होते हुए देखते हैं । और जिन पर अंकुश लगना निहायत जरूरी है जैसे कि किसी भी परिवार में लड़की जन्म लेती है तो वहां मातम सा छा जाता है । जैसे उस घर की प्रसन्नता को ग्रहण ही लग गया हो । घर के बड़े बूढ़े तो उसे स्वीकार ही नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें वंश बढ़ाने के लिए पुत्र की आवश्यकता होती है । ऐसे में सर्वप्रथम जन्म देने वाली माता ही जिम्मेदार बनती है कि उसे सहर्ष प्रेम पूर्वक स्वीकार है क्योंकि उस लड़की को जन्म देने वाली मां भी तो एक स्त्री ही है । लड़कियों की परवरिश को लेकर भी समाज में कई सारे भेदभाव व्याप्त हैं ।
स्त्री तो बचपन से ही अपने त्याग से पीछे नहीं हटी है जो मानवता के हिसाब से बिल्कुल भी ठीक नहीं है । जब सभी स्त्री और पुरुष इस बात पर गौर करें कि बचपन में किए जाने वाले त्याग से नारी को मुक्त किया जा सकता है और इस तरह एक माँ ही अपनी बेटी को संवार कर उसके बचपन को खुशहाल बना अपनी बेटी को वर्षों से निरंतर चली आ रही परंपराओं से मुक्त कराकर उसके बचपन को त्याग मुक्त कर सकती है ।
हमारा आज का समाज स्त्री और पुरुष दोनों के को समानता की नजर से देखने की बात करता है । लेकिन स्थिति ठीक इसके विपरीत है क्योंकि जिस तरह से आज स्त्रियों की संख्या का अनुपात पुरुषों की तुलना में कम होता जा रहा है । उससे तो ऐसा प्रतीत नहीं होता । हमारे समाज में आज भी कन्या के जन्म पर खुशी नहीं दर्शाई जाती है । कन्याओं की तो हत्या तक कर दी जाती है --- जन्म लेने से पहले । इसका कारण हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियां और कुप्रथा ए भी हैं जो स्त्री और पुरुष के बीच भेदभाव फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं ।
समाज के ठेकेदारों ने ऐसे ऐसे धर्म और नियमों में स्त्री को बांध रखा है कि जो वह आज तक स्वयं को स्वतंत्रता नहीं दिला पा रही । सदियों से पहले आरंभ हुई सती प्रथा जिसमें स्त्री को उसके पति की मृत्यु के पश्चात ही जिंदा ही उसकी चिता के साथ जल जाना पड़ता था । उसे जीते जी मृत्यु की गोद में धकेल दिया जाता था । वैसे ही उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं । चाहे वह जीना चाहे या ना चाहे । उसके स्वयं के फैसले की कोई अहमियत ही नहीं । धीरे-धीरे समय के साथ यह प्रथा समाप्ति के कगार पर पहुंच गई है। परंतु दूसरी तरफ प्रथा पर्दा यह प्रथा आज भी विद्यमान है । आज भी स्त्रियों को पैदा करने अपना चेहरा ढकने की को ही उचित माना जाता है । स्त्रियों का चेहरा ढक ना उनके बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान को दर्शाता है अर्थात यदि वे पर्दा नहीं करेंगी तो उनके बुजुर्ग का अपमान माना जाएगा । इस प्रकार समाज में यहां भी रीति रिवाजों और नियमों को ढोने के लिए स्त्री को ही निशाना बनाया और स्वयं को आजाद पंछी की तरह उड़ने के लिए छोड़ दिया ।
आज के आधुनिक समय में समाज की सारी स्थितियां बदल गई है चाहे वह सुरक्षा प्रबंधन शिक्षा जागरूकता या एकल परिवार के चलन का ही रूप क्यों न हो किंतु यह सच है कि आज के आधुनिक समाज में स्त्री अपने जीवनसाथी को प्रतिदिन के काम हो तथा आने वाले समय की सफलताओं को हासिल करने के लिए भी प्रेरित करती रही है यह एक पति तक ही सीमित नहीं है बल्कि नजदीकी रिश्तो में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है ।
एक स्त्री कुछ हद तक त्याग कर सकती है जो कि पारिवारिक जीवन को सुरक्षित और संतुलित रख सकें । परंतु रोजाना की जिंदगी में बदलाव आने के कारण समस्याएं बढ़ती ही जा रही है जिससे स्त्री के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है स्त्री के प्रति होने वाले अपराधों को कम करना होगा तथा इस त्याग की मूर्ति को त्याग मुक्त कर समाज में बराबर का सम्मान दें तभी देश विकास की ओर अग्रसर हो सकता है ।
बच्चा जब जन्म लेता है तो वह सर्वप्रथम अपनी मां के संपर्क में आता है । मां द्वारा ही उसकी सभी जरूरतें पूरी होती है । बच्चों को कब भूख लगती है कब प्यास लगती है आदि सभी जरूरतों का ध्यान मा ही रखती है मां बनने के पश्चात दिन रात कैसे व्यतीत होते हैं इसका पता भी नहीं लगता । बच्चे के सोने जागने के समय साथ ही मां के दिन रात तय होते हैं । एक माँ ही है जो उसका साथ देती है इस प्रकार मां चाहे कितनी भी थकी हो पर वह संतान पर अपनी पूरी ममता लुटा देती है । स्त्री का ऐसा रूप सचमुच महान है जो हमेशा अपनों के लिए त्याग करती रहती है ।
वर्तमान समय में बहुत सी ऐसी स्त्रियां है जो अपना व्यापार तथा सरकारी नौकरी में उच्च पद पर आसीन है तथा राजनीतिक स्तर पर पूर्ण रूप से क्षमता के साथ भाग ले रही हैं । आज इसका अनुपात कम है । लेकिन आने वाले दिनों में इसका अनुपात बढ़ता ही रहेगा । क्योंकि आज की महिला पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहती और हमेशा से ही अगली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए तत्पर रहती है । इस कार्य को करने के लिए कुछ स्त्रियों ने अवश्य किसी न किसी रूप में दुख झेला है लेकिन स्त्रियों को आगे बढ़ने से अब कोई नहीं रोक सकता । लेकिन आगे बढ़ने के लिए स्त्रियों को ही कदम आगे बढ़ाना होगा तभी दूसरी और अगली सीढ़ी चढ़ी जा सकती है इसलिए यह नहीं जानती कि वह क्या-क्या कर सकती है लेकिन मैं यह कहती हूं कि वह सब कुछ कर सकती हैं । पुरुष कुछ अलग नहीं है वह भी मनुष्य ही है और इस समाज का एक हिस्सा है । और उसके ऊपर सफल होने के लिए जब दबाव डाला जाता है तब हर सफल पुरुष बनता है । अतः कुछ नया करने के लिए स्त्री को भी स्वयं पर दबाव डालना होगा और तभी स्त्री स्वयं अपने अंदर की छुपी कला को समझ पाएगी और उसका स्वयं का जीवन भी मूल्यवान हो जाएगा । नकारात्मक बदलाव बुरी तरंगों को उत्पन्न करता है जो स्वयं और स्वयं के परिवार की खुशियों को भी प्रभावित कर देता है लेकिन सकारात्मक सोच से किया गया संघर्ष और कोशिश अवश्य ही स्त्री को एक शक्ति प्रदान करता है ।
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