कर्म / भाग्य
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पैर मिले हैं ,,, चलने को तो पांव पसारे मत बैठ,,, आगे आगे चलना है तो हिम्मत हारे मत बैठ ,,,,
कहा गया है कि जीवन में बिना कर्म के कुछ नहीं मिल सकता ।
लेकिन इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं कि भाग्य कुछ नहीं होता और भाग्यवादी का मानना यह है कि जो कुछ लिखा होगा वही होगा ।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ----- " कठिन करम गति जान विधाता जो शुभ अशुभ शक्ल फल दाता । "
भाग्य को चमकाने के लिए इंसान न जाने कितने तरीके और उपाय करता है ।लेकिन वह वास्तविक रूप में अपना भाग्य चमकाना है तो सबसे पहले अपने आप से अच्छा व्यवहार करें और खुद का सम्मान करें अच्छा पाने के लिए अच्छा करना भी पड़ता है बुरे के साथ कभी अच्छा नहीं होता कहते हैं ना कि --- " बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाए ।"
चाणक्य नीति कहती है कि ---- " मनुष्य अपने कर्मों से महान होता है अपने जन्म से नहीं "
किसी विद्वान ने तो सफलता की परिभाषा को ही बदलते हुए कह दिया है कि --- सफलता जीवन में मिले आपके पास शोहरत और धन दौलत से निश्चित नहीं होती बल्कि आपके जीवन में किए गए आपके संघर्ष अर्थात कर्म से पता चलती है ।
भगवत गीता में भी यह कहा गया है कि--- तुम कर्म करो फल की चिंता मत करो । मैंने भी कई लोगों को कर्म को प्रधान मानते देखा है तो फिर यह भाग्य क्या है बहुत से लोग कहते हैं कि कर्म से अपने भाग्य को बदला जा सकता है लेकिन यह भी मैंने सुना है कि भाग्य तो इंसान के जन्म से पहले ही लिखा जा चुका है तो फिर इंसान कर्म करेगा क्यों ,,,??
सत्य है कि इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है । इंसान को कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है । तो फिर जब दो लोगों ने जब एक साथ लॉटरी का टिकट खरीदा तो लगती एक ही व्यक्ति की है दो लोगों के कर्म तो एक जैसे थे । मगर भाग्य नहीं,,, कर्म जब एक सा किया था तो भाग्य अलग अलग कैसे हुआ ,,,??
ऐसे बहुत से उदाहरण है जो बिना किसी परिश्रम के सिर्फ अपने भाग्य के कारण आज यश व प्रसिद्धि के मुकाम पर हैं और कई ऐसे उदाहरण भी है जो मेहनत का फल नहीं प्राप्त कर पाते । कई बार किसी व्यक्ति को बिना मेहनत किए ही सब कुछ यह बहुत कुछ मिल जाता है । अपने अच्छे भाग्य के कारण और दूसरी तरफ वह व्यक्ति जो हार्ड तोड़ परिश्रम के बाद भी अपनी मेहनत या कर्म का फल प्राप्त नहीं कर पाता । कभी-कभी कभी-कभी हमें यह भी देखने में आता है कि अच्छा कर्म करने वाला व्यक्ति भी बहुत से कष्ट पाता है तब हम सभी यही सोचते हैं कि कर्म की गति विधाता ही जानता है ।
सत्य यही है कि कर्म से पृथक भाग्य होता ही नहीं है रामचरितमानस में इसी प्रसंग पर प्रकाश डाला गया है -- -
"काहु न कोउ सुख दुख कर दाता निज कृत करम भोग सब भ्राता "
इस तरह हमारा भाग्य भी कर्म से बनता है भाग्य के मूल में भी कर्म ही प्रधान होता है और भाग्य का मूल सृष्टि के सभी प्राणियों में देखा जा सकता है । नहीं तो क्यों एक कुत्ता धनवान के घर रहे और एक साधारण घर में रहे एक शेर चिड़ियाघर में रहे और एक जंगल में रहे ।
अंत में यही कहा जा सकता है कि भाग्य भी उन्हीं लोगों का साथ देता है जो कर्म करने में विश्वास रखते हैं किसी खुरदुरा पत्थर को यदि चिकना बनाना हो तो उसे रोज घिसना पड़ेगा ऐसे ही जिंदगी के क्षेत्र में भी समझा जाना चाहिए मनुष्य कर्म करके भाग्य को बदल सकता है या नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन कर्म ना करके वह अपने भाग्य में लिखे हुए को चाह कर भी नहीं बदल सकता ।
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पैर मिले हैं ,,, चलने को तो पांव पसारे मत बैठ,,, आगे आगे चलना है तो हिम्मत हारे मत बैठ ,,,,
कहा गया है कि जीवन में बिना कर्म के कुछ नहीं मिल सकता ।
लेकिन इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं कि भाग्य कुछ नहीं होता और भाग्यवादी का मानना यह है कि जो कुछ लिखा होगा वही होगा ।
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ----- " कठिन करम गति जान विधाता जो शुभ अशुभ शक्ल फल दाता । "
भाग्य को चमकाने के लिए इंसान न जाने कितने तरीके और उपाय करता है ।लेकिन वह वास्तविक रूप में अपना भाग्य चमकाना है तो सबसे पहले अपने आप से अच्छा व्यवहार करें और खुद का सम्मान करें अच्छा पाने के लिए अच्छा करना भी पड़ता है बुरे के साथ कभी अच्छा नहीं होता कहते हैं ना कि --- " बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाए ।"
चाणक्य नीति कहती है कि ---- " मनुष्य अपने कर्मों से महान होता है अपने जन्म से नहीं "
किसी विद्वान ने तो सफलता की परिभाषा को ही बदलते हुए कह दिया है कि --- सफलता जीवन में मिले आपके पास शोहरत और धन दौलत से निश्चित नहीं होती बल्कि आपके जीवन में किए गए आपके संघर्ष अर्थात कर्म से पता चलती है ।
भगवत गीता में भी यह कहा गया है कि--- तुम कर्म करो फल की चिंता मत करो । मैंने भी कई लोगों को कर्म को प्रधान मानते देखा है तो फिर यह भाग्य क्या है बहुत से लोग कहते हैं कि कर्म से अपने भाग्य को बदला जा सकता है लेकिन यह भी मैंने सुना है कि भाग्य तो इंसान के जन्म से पहले ही लिखा जा चुका है तो फिर इंसान कर्म करेगा क्यों ,,,??
सत्य है कि इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है । इंसान को कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है । तो फिर जब दो लोगों ने जब एक साथ लॉटरी का टिकट खरीदा तो लगती एक ही व्यक्ति की है दो लोगों के कर्म तो एक जैसे थे । मगर भाग्य नहीं,,, कर्म जब एक सा किया था तो भाग्य अलग अलग कैसे हुआ ,,,??
ऐसे बहुत से उदाहरण है जो बिना किसी परिश्रम के सिर्फ अपने भाग्य के कारण आज यश व प्रसिद्धि के मुकाम पर हैं और कई ऐसे उदाहरण भी है जो मेहनत का फल नहीं प्राप्त कर पाते । कई बार किसी व्यक्ति को बिना मेहनत किए ही सब कुछ यह बहुत कुछ मिल जाता है । अपने अच्छे भाग्य के कारण और दूसरी तरफ वह व्यक्ति जो हार्ड तोड़ परिश्रम के बाद भी अपनी मेहनत या कर्म का फल प्राप्त नहीं कर पाता । कभी-कभी कभी-कभी हमें यह भी देखने में आता है कि अच्छा कर्म करने वाला व्यक्ति भी बहुत से कष्ट पाता है तब हम सभी यही सोचते हैं कि कर्म की गति विधाता ही जानता है ।
सत्य यही है कि कर्म से पृथक भाग्य होता ही नहीं है रामचरितमानस में इसी प्रसंग पर प्रकाश डाला गया है -- -
"काहु न कोउ सुख दुख कर दाता निज कृत करम भोग सब भ्राता "
इस तरह हमारा भाग्य भी कर्म से बनता है भाग्य के मूल में भी कर्म ही प्रधान होता है और भाग्य का मूल सृष्टि के सभी प्राणियों में देखा जा सकता है । नहीं तो क्यों एक कुत्ता धनवान के घर रहे और एक साधारण घर में रहे एक शेर चिड़ियाघर में रहे और एक जंगल में रहे ।
अंत में यही कहा जा सकता है कि भाग्य भी उन्हीं लोगों का साथ देता है जो कर्म करने में विश्वास रखते हैं किसी खुरदुरा पत्थर को यदि चिकना बनाना हो तो उसे रोज घिसना पड़ेगा ऐसे ही जिंदगी के क्षेत्र में भी समझा जाना चाहिए मनुष्य कर्म करके भाग्य को बदल सकता है या नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन कर्म ना करके वह अपने भाग्य में लिखे हुए को चाह कर भी नहीं बदल सकता ।
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ReplyDeleteRight
ReplyDeleteYes its true....bina mhenat kuch bhi nahi milta ......bhagya bhagwan likh ke bhejta hei Lekin vo likha gya bhagya bha jab sath hogs jab hum kudh ki mhenat karege. Har kisi ki life mei tarkki unnati hone ke liye bhagya or karam dono hone jaruri hei.
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