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Showing posts from January, 2023

सच तो है,,,,

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आज मेरी माहवारी का  दूसरा दिन है।  पैरों में चलने की ताक़त नहीं है, जांघों में जैसे पत्थर की सिल भरी है।  पेट की अंतड़ियां दर्द से खिंची हुई हैं।  इस दर्द से उठती रूलाई जबड़ों की सख़्ती में भिंची हुई है।  कल जब मैं उस दुकान में  ‘व्हीस्पर’ पैड का नाम ले फुसफुसाई थी, सारे लोगों की जमी हुई नजरों के बीच, दुकानदार ने काली थैली में लपेट मुझे ‘वो’ चीज लगभग छिपाते हुए पकड़ाई थी।  आज तो पूरा बदन ही  दर्द से ऐंठा जाता है।  ऑफिस में कुर्सी पर देर तलक भी  बैठा नहीं जाता है।  क्या करूं कि हर महीने के  इस पांच दिवसीय झंझट में, छुट्टी ले के भी तो  लेटा नहीं जाता है।  मेरा सहयोगी कनखियों से मुझे देख, बार-बार मुस्कुराता है,  बात करता है दूसरों से,  पर घुमा-फिरा के मुझे ही  निशाना बनाता है।  मैं अपने काम में दक्ष हूं।  पर कल से दर्द की वजह से पस्त हूं।  अचानक मेरा बॉस मुझे केबिन में बुलवाता हैै, कल के अधूरे काम पर डांट पिलाता है।  काम में चुस्ती बरतने का  देते हुए सुझाव,  मेरे पच्चीस दिनों का लगातार ओवरटाइम भूल जाता है।  अचानक उसकी निगाह, मेरे चेहरे के पीलेपन, थकान और शरीर की सुस्ती-कमजोरी

एक चिंतन ,,,,

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औरत..... औरत क्या है? हॉट है, चोट है, या सड़क पर गिरा नोट है? अकेली दिखती है तो, ललचाती है, बहलाती है, बड़े-बड़े योगियों को भरमाती है अपनी कोख से जनती है, पीर पैगम्बर फिर भी पाप का द्वार कहलाती है चुप रहना ही स्वीकार्य है, बस बोले तो मार दी जाती है। प्रेम और विश्वास है गुण उसका उन से ही ठग ली जाती है। जिस को पाला निज वत्सल से जिस छाती से जीवन सींचा उस छाती के कारण ही वो उन की नजरों में आती है। मेरा तन मेरा है, कह दे तो मर्यादा का उल्लंघन है। और ये औरत ही विवाह समय बस दान में दे दी जाती है। साहस भी है, अहसास भी है ईश्वर की रचना खास भी है अपमानित हो कर क्यों फिर वो गाली में उतारी जाती है??

विवाहेत्तर सम्बन्ध : ...??

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पुरुष कभी कभी एक निष्ठ नहीं होता । थोड़ी-बहुत रंगरलिया तो वह मनाता ही है । ओर यदि स्त्रियों की बात की जाए तो कुछ स्त्रियां पुरुष को नीचा दिखाने की कोशिश में प्रेम संबंध बना बैठती है  तो कुछ अपने शक्की स्वभाव के कारण दूसरी स्त्रियों से अपने पति को बचाने की कोशिश में ,,,  इस कदर लग जाती है कि उनका विवाहित जीवन ही खतरे में पड़ जाता है । बलात्कार क्या सिर्फ पुरुष द्वारा वस्त्र हरण कर उसकी अस्मिता को भंग करना मात्र है नहीं ,,,,   बलात्कार सिर्फ शारीरिक ही नहीं होता । वह मानसिक भी हो सकता है । हैरानी की बात यह है कि मानसिक बलात्कार सिर्फ पुरुष ही नहीं कर सकते अपितु स्त्री भी स्त्री को पीड़ा देकर उसका मानसिक हरण कर देती है । नैतिक रूप से पतन मानसिकता वाली स्त्री अपनी इच्छा पूर्ति के लिए कोई भी दांव खेल जाती है ,,,  चाहे घर परिवार हो या समाज । छिछले स्तर पर सोचने वाली स्त्री स्वयं के स्वार्थ से वशीभूत होकर अपने अलावा किसी और के बारे में सोचना नहीं चाहती । उसकी सोचने समझने की क्षमता बस स्वयं तक ही सीमित रहती है । उसी में खुद का बड़प्पन भी समझती है । उसको बड़ों को छोटा बनाना या

स्त्री

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प्रत्येक सभ्यता के कुछ मूलभूत मूल्य और विश्वास होते हैं । जिनकी भित्ति पर सामाजिक संरचना निर्मित होती है । स्त्री और पुरुष के संबंधों की नैतिक मर्यादा और संस्थानात्मक परिणति या उन मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है और उस समाज की व्यवस्था का परिचय भी देती है । स्त्री और पुरुष के संबंध सर्वकालिक और सर्वदेशिक होते हुए भी प्रत्येक समाज में प्रत्येक युग में अलग-अलग मूल्यों का रस व्याप्त रहता है । उन संबंधों की आकृतियां अनेक है उनके कलेवर और उनकी साज-सज्जा में आंचलिक विचित्रताये भी है उनकी शैली और शब्दावली भी भिन्न है । समाज व्यवस्था का आधार सभ्यता के कुछ मूल्य और विश्वास है । जो स्त्री-पुरुष संबंधों की मर्यादाओं और संस्थानात्मक परिणीतियो प्रतिबिंबित होते हैं । यह स्त्री पुरुष संबंध सर्व देशिक और सार्वकालिक होते हुए भी युग और समाज के अनुरूप कुछ भिन्नता रखते हैं । इसलिए और पुरुष के संबंधों की नैतिक मर्यादाऐ उनके मूल्यों प्रतिबिंब है जो कि समाज व्यवस्था का परिचय प्रदान करती है । स्त्री और पुरुष के प्रकृति प्रदत भेद को भी स्पष्ट किया जा सकता है कि पुरुष के रसास्वादन उसकी वेशभूषा स

हिंदी हमारी भाषा है

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संतान को दोष न दें. बालक को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाया  अंग्रेजी बोलना सिखाया, 'बर्थ डे' और 'मैरेज एनिवर्सरी' जैसे जीवन के शुभ प्रसंगों को  अंग्रेजी संस्कृति के अनुसार  जीने को ही श्रेष्ठ मानकर... माता पिता को 'मम्मा' और 'डैड' कहना सिखाया... जब अंग्रेजी संस्कृति से परिपूर्ण  बालक बड़ा हो कर  आपको समय नहीं देता,  आपकी भावनाओं को नहीं समझता,  आप को तुच्छ मान कर  जुबान लडाता है और  आप को बच्चों में  कोई संस्कार नजर नहीं आता है,   तब घर के वातावरण को  गमगीन किए बिना या  संतान को दोष दिए बिना  कहीं एकान्त में जाकर रो लें... क्यों कि... पुत्र की पहली वर्षगांठ से ही भारतीय संस्कारों के बजाय  केक कैसे काटा जाता है  सिखाने वाले आप ही हैं...... हवन कुंड में आहुति कैसे डाली जाए,...  मंदिर,मंत्र, पूजा पाठ आदर सत्कार के  संस्कार देने के बदले, केवल फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने को ही  अपनी शान समझने वाले आप.. बच्चा जब पहली बार घर से  बाहर निकला तो उसे,, 'प्रणाम आशीर्वाद' के बदले 'बाय बाय' कहना सिखाने वाले आप.. परीक्षा देने जाते समय इष्ट देव /बड़

स्त्री

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आसान नहीं होता  प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना, क्योंकि  उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी, झुकती नहीं वो कभी  जबतक न हो   रिश्तों में प्रेम की भावना। तुम्हारी हर हाँ में हाँ  और  ना में ना कहना वो नहीं जानती,  क्योंकि  उसने सीखा ही नहीं झूठ की डोर में रिश्तों को बाँधना, वो नहीं जानती  स्वांग की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना, वो तो जानती है  बेबाक़ी से सच बोल जाना।   फ़िज़ूल की बहस में पड़ना  उसकी आदतों में शुमार नहीं, लेकिन  वो जानती है, तर्क के साथ अपनी बात रखना। वो  क्षण-क्षण गहने- कपड़ों की माँग नहीं किया करती,  वो तो सँवारती है  स्वयं को अपने आत्मविश्वास से,  निखारती है  अपना व्यक्तित्व मासूमियत भरी मुस्कान से। तुम्हारी गलतियों पर  तुम्हें टोकती है, तो तकलीफ़ में तुम्हें  सँभालती भी है। उसे  घर सँभालना बख़ूबी आता है, तो  अपने सपनों को पूरा करना भी। अगर नहीं आता  तो  किसी की अनर्गल बातों को मान लेना। पौरुष के आगे  वो नतमस्तक नहीं होती, झुकती है  तो तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे। और  इस प्रेम की ख़ातिर  वह अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। हौसला हो निभाने का  तभी ऐसी स्त्री स