नारी विमर्श
आधुनिक युग मे मुनाफाखोरों ने तरह – तरह के उतपादो को बेचने के लिए औरत के शरीर पर मालिकाना हक जमा रखा है । इतना ही नहीं उसे नारीवाद की ,, स्त्री मुक्ति की संज्ञा देकर औरत से जोड़ दिया है — औरतों तुम बस एक शरीर और देह भर हो। पहले तुम सिर्फ घर के पुरुषों की देह थीं और अब तुम एक सार्वजनिक देह हो। तुम चाहो भी तो हम तुम्हें इससे बाहर नहीं निकलने देंगे। तुम्हारी अस्मिता और तुम्हारी पसंद — कौन-सा शैंपू ,, कौन-सी कार ,,, कौन-सा मोबाइल ,,, कौन-सा घर ,,,कौन-सा कपड़ा, कौन-सी घड़ी पहनो कि आज की औरत कहलाओ और आज के नारीवाद को हासिल करो ।आज की आजाद औरत की छवि इस तरह की बना दी गई है कि वही औरतें आजाद हैं जो अपने शरीर पर लदे हजारों-लाखों किस्म के उत्पादों से रात-दिन लबरेज हैं। उनकी आजादी की असली पहचान यह है कि वे कितनी आकर्षक दिखती हैं। वे कितने पुरुषों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती है । मुनाफाखोरों ने सिर से पांव तक उसे उसी खाई में धकेला है जिससे निकलने के लिए वह सदियों से छटपटा रही है । मगर अफसोस और उससे भी ज्यादा अचरज की बात यही है कि स्त्रियों पर आकर्षक दिखने का जो ठप्पा लगाया जा रहा है उसे ही स्त्री मुक्ति कहा जा रहा । इसके अलावा वे ही खरीदार भी हैं। जितने घंटे मीडिया दुष्कर्म की खबरें दिखाता है उससे यही प्रतीत होता है कि इस देश में हर औरत दुष्कर्म का शिकार हो चुकी है और हर पुरुष दुष्कर्मी हैं। उससे जुड़ी खबर को लोग टूटकर देखते हैं। अब वह खबर चाहे एक छोटी बच्ची को सताए जाने की हो या किसी अस्सी साल की बुढ़िया की।
क्या एक अरबपति की पत्नी और एक मजदूर की पत्नी में समानता कही जा सकती है ।
एक गरीब औरत तभी खबर बनती है जब उसके साथ कोई हादसा हो गया हो।
आजकल कपड़े उतारू मुनाफाखोर विमर्श को असली स्त्री विमर्श कहा जा रहा है उसमें बहुसंख्यक गरीब औरतें कहीं नहीं हैं, क्योंकि वे चैनलों की दिखती तथाकथित उज्ज्वल छवि को नहीं बेच सकती । आधुनिक लबादे में लिपटी इस आज़ादी के मकड़जाल में औरत की छवि को इसप्रकार बना दिया गया है कि— औरतों यह तुम्हारा शरीर है। तुम इसका जो चाहे सो करो।
क्या एक अरबपति की पत्नी और एक मजदूर की पत्नी में समानता कही जा सकती है ।
एक गरीब औरत तभी खबर बनती है जब उसके साथ कोई हादसा हो गया हो।
आजकल कपड़े उतारू मुनाफाखोर विमर्श को असली स्त्री विमर्श कहा जा रहा है उसमें बहुसंख्यक गरीब औरतें कहीं नहीं हैं, क्योंकि वे चैनलों की दिखती तथाकथित उज्ज्वल छवि को नहीं बेच सकती । आधुनिक लबादे में लिपटी इस आज़ादी के मकड़जाल में औरत की छवि को इसप्रकार बना दिया गया है कि— औरतों यह तुम्हारा शरीर है। तुम इसका जो चाहे सो करो।
नारी सशक्त थी और है, मर्दों को भय है कि कहीं हमारा नुकसान न हो जाय इसलिए नारी को बंधन में बाँध कर रखने के प्रयास होते रहे हैं ।
दूसरा यह भी है कि नारी मृदु और शर्माई हुई ही समाज को विरासत में मिली है जिसे वो बदलने को तैयार नहीं हैं ।
तीसरी बात यह है कि इंद्रियों को सुखद अहसास तभी संभव है जब एक सख़्त हो और दूसरा नरम । प्रकृति को ही देख लो जिसने स्र्त्री और पुरुष की शारिरिक रचना भी इसी प्रकार से की है।
मशवरा यह है कि माँगने से कुछ नहीं मिलता , अपने अधिकारों को स्वयं ढूढ़ना होगा और प्राप्त करना होगा । किसी की ओर निहारना नही है ।
Wawwwww Uttam.
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