नारी विमर्श

क्या एक अरबपति की पत्नी और एक मजदूर की पत्नी में समानता कही जा सकती है ।
एक गरीब औरत तभी खबर बनती है जब उसके साथ कोई हादसा हो गया हो।
आजकल कपड़े उतारू मुनाफाखोर विमर्श को असली स्त्री विमर्श कहा जा रहा है उसमें बहुसंख्यक गरीब औरतें कहीं नहीं हैं, क्योंकि वे चैनलों की दिखती तथाकथित उज्ज्वल छवि को नहीं बेच सकती । आधुनिक लबादे में लिपटी इस आज़ादी के मकड़जाल में औरत की छवि को इसप्रकार बना दिया गया है कि— औरतों यह तुम्हारा शरीर है। तुम इसका जो चाहे सो करो।
नारी सशक्त थी और है, मर्दों को भय है कि कहीं हमारा नुकसान न हो जाय इसलिए नारी को बंधन में बाँध कर रखने के प्रयास होते रहे हैं ।
दूसरा यह भी है कि नारी मृदु और शर्माई हुई ही समाज को विरासत में मिली है जिसे वो बदलने को तैयार नहीं हैं ।
तीसरी बात यह है कि इंद्रियों को सुखद अहसास तभी संभव है जब एक सख़्त हो और दूसरा नरम । प्रकृति को ही देख लो जिसने स्र्त्री और पुरुष की शारिरिक रचना भी इसी प्रकार से की है।
मशवरा यह है कि माँगने से कुछ नहीं मिलता , अपने अधिकारों को स्वयं ढूढ़ना होगा और प्राप्त करना होगा । किसी की ओर निहारना नही है ।
Wawwwww Uttam.
ReplyDelete