"पीड़ा"
******** " मेरी पीड़ा ने मुझे सौ बार रुलाया है ,,,, लेकिन सच भी है इनको मैंने ही तो बुलाया है ,,,, वास्तविक रूप तो यही है कि सच्चाई पर सुंदर सा कफ़न डाल कर उस पर शाल चढ़ा देते है । कोन समझता है किसी की पीड़ा को,,, दूसरे के दर्द को ,,,, ।। "इतना आसा नही है इस दौर में मिलना जुलना ,,, सोचना पड़ता है कैसी लगु कैसी ना लगु ,,,,," मनुष्य को हमेशा सामाजिक होने की सलाह दी जाती है क्योंकि वह कभी मुसीबतों में फंसता है तो लोगों के तथा परिवार जनों के सांत्वना भरे शब्द उसे हताश होने और निराशा के गर्त में जाने से रोक सके । सौ बात की एक बात यदि परिवार जन हाल-चाल जानने तक के लिए अगर बातचीत नहीं करते तो परस्पर प्यार कम हो जाता है तथा हीन भावना बढ़ जाती है । वर्तमान समय में परिवार इतने सीमित हो गए हैं कि हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में लगा हुआ है दूसरे की भलाई की कोई चिंता नहीं । आज के समय बहुत कम ऐसा होता है कि लोग एक दूसरे से मिलकर बातचीत करते हो । वर्तमान समय में परिस्थितियां इतनी बदल गई है कि आज बहुत कम ऐसा होता है कि एक दूसरे से मिल कर