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Showing posts from April, 2019

आधुनिक स्त्री

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पुरुष ने स्त्री को एक ऐसे ढांचे में डाल रखा है,,, जो सिर्फ उसके स्वभाव अनुसार कार्य कर सकें। वह मात्र कठपुतली बनकर परंपराओं मिथ्या धारणाओं और मान्यताओं का निर्वहन करती रहे। उसे यही सिखाया जाता है कि जो उसे मिलता है या मिलेगा उसी में संतोष कर लेना होगा । स्त्री ने प्रत्येक रूप में अपने कर्तव्यों को बड़ी ही खूबसूरती के साथ निभाया है और जीवन पर्यंत परिवार की सेवा में जुटी रहती है। यहां तक की वह यह भी भूल जाती है की उसकी भी कोई इच्छा है अथवा उसका भी अपना कोई वजूद है ।  यह आवश्यक नहीं कि कम शिक्षित होने के कारण स्त्री को कष्ट सहना पड़ रहा हो बल्कि यदि स्त्री ज्यादा पढ़ी-लिखी हो तो उसे भी अनेक कष्टों को सहन करने के सिवा कोई चारा नहीं बचता और यदि स्त्री किसी असहनीय कष्ट का विरोध भी कर दे तो मायके की मान मर्यादा को क्षति पहुंचाई जाती है । कहीं-कहीं तो समाज में स्त्री को एक सैंडविच या कुशन के समान समझा जाता है जो समय पर पति बच्चों या परिवार के काम आ सके ।   अधिकांशत है विवाह के पश्चात स्त्री का निजी अस्तित्व तो लगभग समाप्त ही हो जाता है वह सिर्फ पत्नी होने मां होने तक ही सिमट कर

स्त्री *

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कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नजर नहीं आती क्यों ना चींखू  कि याद करते हैं मेरी आवाज गर नहीं आती   ( मिर्ज़ा ग़ालिब) इस संसार पर स्त्री का भी उतना ही हक है जितना की किसी पुरुष का ।  लोगों की ओछी मानसिकता बदलने की जरूरत है जो बदलाव हुए हैं वह नाकाफी है अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है। बरसों से ही स्त्री के महत्व को इस कदर नकारा गया है कि वर्तमान समय में भी उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए निरंतर प्रयास जारी है।  स्त्रियों को महत्व देने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है कि उनके महत्व को दुनिया के सामने स्वीकार किया जाना ।  आज के समय में सोशल मीडिया इसके लिए बेहतरीन मंच हो सकता है ।  जब आप में कोई सकारात्मक बदलाव आते हैं और उसे सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करते हैं तो दूसरे भी उनसे प्रेरणा लेते हैं ।  इसके बाद आती है जमीनी स्तर पर स्त्री को उसका हक देने की ।  सिर्फ बात करने से बात नहीं बनेगी । इसके लिए स्त्री को उनके सामाजिक आर्थिक अधिकार और चुनाव की पूर्ण स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए । स्त्री की अहमियत को बरसों से इस कदर नकारा जाता आया है कि उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने वाले आंदोलन

नोकरी छोड़ना : इच्छा या मजबूरी

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नौकरी छोड़ना इच्छा या फिर मजबूरी आज की स्त्री हर क्षेत्र में अपनी योग्यता का परचम लहरा चुकी है । भारतीय स्त्री अपने कार्य क्षेत्र तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों की चुनौतियों का कुशलता पूर्वक निर्वहन कर रही है । लेकिन फिर भी उसके आर्थिक विस्तार पर एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है ,,,,,!! समाज व परिवार को संवारने के लिए कटिबद्ध स्त्री को स्वयं के स्वाभिमान और सपनों के पंख करने पड़े हैं । परिवार के दायित्वों को संभालने के लिए तथा बच्चों की परवरिश के लिए आज की अधिकतर स्त्री नौकरी छोड़ रही है । यदि स्त्री घर पर रहकर बच्चों और परिवार को संभालना चाहती है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वह कमजोर है बल्कि उसे चुनने का अधिकार मिलना चाहिए । बड़ी-बड़ी परीक्षाओं में सफल होने वाली आज की स्त्री जब भी अपना करियर बनाने के लिए आगे बढ़ती है तो सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां उसे पीछे खींचने लगती है तथा कई बार भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हुए परिवार ही उसे घर पर बैठने को मजबूर कर दिया करता है । आज की स्त्री अपनी नई भूमिकाओं के साथ बखूबी तालमेल बिठाने को तत्पर है पर समाज और परिवार उसकी सोच में केवल अड़चन ह

प्रेम

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ओशो कहते हैं कि पुरुष जितना प्रेम शब्दों में प्रकट करेगा उससे कई गुना ज्यादा स्त्री मोन में प्रकट कर देगी   ।। वह यह भी कहते हैं कि प्रेम में आप दूसरे को महत्व देते हैं जबकि वासना में सिर्फ आप स्वयं  को । प्रेम तो जीवन को गतिशील बनाता है वर्तमान समय में प्रेम मर्यादा और संयम और नैतिकता को तोड़ सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करता दिखाई देता है ।  मनुष्य के समक्ष मूल समस्या जीने की है और कोरा आदर्शवाद जीवन को विकृत बना दिया करता है । वर्तमान समय में प्रेम को सेक्स से जोड़ा जाता है जो कदापि सही नहीं है । सैक्स आपके जीवन का अहम हिस्सा हो सकता है ।  लेकिन प्रेम का स्थान उससे कहीं अधिक ऊंचा है । मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया था किसी गलत वजह से नहीं । पवित्र प्रेम के सोचने वाले सही है । प्यार और विश्वास किसी भी दंपति के जीवन का आधार है दांपत्य जीवन में प्रेम का मतलब सिर्फ सेक्स से नहीं होता । एक दूसरे के प्रति आत्मीय हो जाना ही प्रेम है ।  एक दूसरे को उसी रूप और स्वभाव में स्वीकार करना प्रेम है। तब विवाह एक बंधन ही नही प्यारा सा बंधन बन जाता है और अजीब बात यह है कि वह बंधन भी प्यारा सा लगने