नैतिकता

शिक्षा एवं सामाजिक जागरूकता की भावना ने छुआछूत जातिगत भेदभाव का समाज में खुलकर विरोध किया है ।  विज्ञान एवं यांत्रिकता का प्रसार ने तथा  भौतिकवाद ने स्त्री-पुरुष संबंधों में बदलाव एवं तनाव भी उपस्थित कर दिए हैं । इन तनाव समस्याओं को खत्म करने तथा इनको भरने के लिए नवीन मानवीय मूल्यों की खोज की जा रही है ।  इस खोज में परंपरागत आदर्शों एवं नैतिक मान्यताओं का विरोध होना स्वभाविक है ।   नवीन मानवीय संबंधों की खोज को और आधुनिक युग में व्यक्ति को प्रेरित किया है । इसके अतिरिक्त नए मूल्यों की स्थापना के प्रयास में प्राचीन संबंध भी विघटित होने लगे हैं ।


 यांत्रिक सुविधाओं ने नैतिक मान्यताओं में परिवर्तन उपस्थित कर दिए हैं । संबंधों में स्वच्छंदता भी आने लगी है । इसी उन्मुक्त और स्वच्छंदता का परिचय देती हुई दादा कॉमरेड की शेल कहती है --- "क्या संसार भर की अच्छाई एक ही व्यक्ति में समा सकती है । "


 प्राचीन परंपराएं मान्यताएं एवं आदर्शों का विरोध हो रहा है।  किंतु स्वस्थ नए मूल्यों का भी अभाव है । यह  विरोधी जीवन मूल्यों का निर्माण कर रहा है ।  स्वयं को आधुनिक कहलाने की आकांक्षा में पश्चिमी आदर्शों को व्यक्ति ग्रहण तो कर लेता है । किंतु यह अस्थाई आदर्श उसे कुंठित कर देते हैं और वर्तमान में संपूर्ण समाज इस अंतर्विरोध स्थिति से त्रस्त है । आधुनिक शिक्षा व्यक्ति को बौद्धिक अधिक और व्यवहारिक कम बनाती है ।  भारतीय नारी का आदर्श पतिव्रता धर्म है । इसकी रक्षा के लिए वैवाहिक पतिव्रत पवित्रता के कठोर नियम बनाए गए हैं । किंतु पाश्चात्य प्रभाव से विवाह संबंधी नियमों में भी शिथिलता आती जा रही है ।  पति के प्रति भी एक नारी निष्ठ नहीं है।  पति के रहते हुए वह दूसरे को चाहती है और अवसर मिलने पर पति को भी छोड़ देती है ।  किंतु अपने परंपरागत संस्कारों एवं सामाजिक मान्य आदर्शों के कारण अपने से वह समाज से सामंजस्य नहीं कर पाती । यहीं से पाश्चात्य व भारतीय आदर्शों में संघर्ष उत्पन्न हो जाता है ।


पाश्चात्य आदर्शों से प्रभावित आज का मनुष्य  वैवाहिक जीवन में स्वतंत्रता चाहता है । किंतु दूसरी ओर भारतीय समाज अभी विवाह पूर्व पवित्रता को मान्यता देता है । यह दोनों भिन्न विचार संघर्ष उत्पन्न कर रहे हैं ।  आज व्यक्ति दोहरे व्यक्तित्व को वहन कर रहा है । विगत मूल्य टूट रहे हैं नवीन मूल्य उस रिक्त स्थान को भरने नही पा रहे हैं अतः संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो रही है । आधुनिकता ने अनेक विचित्र रूपों में जीवन और समाज में प्रवेश कर पतन की स्थिति को उत्पन्न कर दिया है ।


पाश्चात्य प्रभाव से नैतिकता की परिभाषा ही बदल गई है । शील और अश्लील जैसी मान्यताओं को नैतिकता के घर से बाहर कर दिया गया है । यथार्थ के नाम पर सिर्फ नग्नता को उभारा जाने लगा है । प्रेम में भी स्वछंदता को प्रश्रय दिया जा रहा है । जीवन में के प्रत्येक क्षण क्षेत्र और प्रत्येक संबंधों में परिवर्तन आ रहा है । अब यह आवश्यक नहीं कि जिस से प्रेम हो उससे विवाह भी हो विवाह के पश्चात भी  किसी अन्य पुरुष से प्रेम करना आज अपराध नहीं माना जाता । पति पत्नी के स्थापित मूल्यों में परिवर्तन आ जाने से पवित्रता के बंधन ढीले पड़ते जा रहे हैं । लोगों ने एक साथ अनेक रूपों में जीना सीख लिया है बाहरी और आंतरिक जीवन के बीच आज जितना फासला है उतना ही शायद उससे पूर्व कभी रहा हो ।




 प्रत्येक समाज का आचरण कतिपय नैतिक मूल्यों द्वारा ही निर्धारित होता है । उच्च शील अश्लील आदि मापदंडों के द्वारा ही नैतिकता की यथा समय परख होती रहती है । परंतु वर्तमान समय में मानसिकता के संदर्भ में नैतिकता के मानदंड ही परिवर्तित हो गए हैं । परंपरागत नैतिक मान्यताओं को अस्वीकार किया जा रहा है ।  नैतिक मान्यताओं के परिवर्तन में तो परिस्थितियों की विशेष भूमिका रही है ।  परिणाम स्वरूप प्रेम ,  करुणा ,  दया जैसे सहज भावो में भी दिखावा और बनावट आ गया है । यह मूल्य  नैतिकता मात्र विकृति ही है । आधुनिक युग में नैतिकता मात्र दिखावा है । नैतिकता ,,,, समझ लो यही चौकी है जो एक कोने में पड़ी है । सभा सोसाइटी के वक्त उस पर एक सुंदर सी चादर बिछा दी जाती है तो वह बढ़िया दिखती है ।


नवीन मूल्यों पर आधारित इन सामाजिक परिवर्तनों ने मनुष्य की इस आधारभूत संस्था को सर्वाधिक प्रभावित किया है । भावकात्मक के स्थान पर बौद्धिकता के समावेश ने नवीन पारिवारिक प्रतिमानो को भी उजागर किया है । आज की स्त्री फिर सामाजिक समस्या और वर्तमान दशा के प्रति विद्रोह के भाव जगाती है । आधुनिकीकरण और पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण के कारण समाज और व्यक्ति की दूरी को बढ़ावा दिया है । नारी स्वतंत्र की भावना धर्म में अनास्था,  आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें संयुक्त परिवारों की परंपरा को भी ध्वस्त कर दिया है । स्त्री-पुरुष संबंधों को व्यापक मानवीय आधार पर ग्रहण किया जाने लगा है । इसके परिणाम स्वरूप सतीत्व व पतिव्रता की भावना निष्प्राण सी होने लगी है । वैवाहिक संबंधों में भावकात्मकता के स्थान पर बौद्धिकता का समावेश हो जाने पर व्यक्तिगत जीवन में छटपटाहट और अधिक बढ़ गई है ।



समाज में प्रचलित परंपराएं पीढ़ी दर पीढ़ी बदल रही है । एक युग का सत्य दूसरे युग में अपनी सार्थकता खो रहा है । प्राचीन एवं नवीन मान्यताओं में संघर्ष हो रहा है ।


 स्वतंत्र चिंतन ने व्यक्ति को नई दिशाएं दी है । उसके समक्ष पूर्व निर्धारित विधि निषेधओं की श्रृंखलाएं टूटने लगी है । वैज्ञानिक चिंतन ने व्यक्तिवाद को बढ़ावा  दिया है ।  इसी कारणवश परंपरागत समाज व्यवस्था के मूल्य व्यक्ति की नवीन जीवन दृष्टि से निरर्थक सिद्ध होने लगे हैं । जहां कहीं व्यक्ति के लक्ष्य की पूर्ति में समाज बाधक बना है वहां व्यक्ति समाज का विरोध करने लग जाता है । वैज्ञानिक तर्क ने व्यक्ति को धार्मिक रूढ़ियों से ऊपर उठकर सोचने विचारने के लिए बाध्य कर दिया है । शिक्षा के प्रसार से व्यक्ति के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है । आर्थिक स्वावलंबन की भावना स्त्री वर्ग में भी फैलती जा रही है । स्त्री और पुरुष दोनों ही मानसिक स्थिति में परिवर्तन आया है ।  विवाह सतीत्व नैतिकता सदाचार एक निष्ठ। ,  प्रेम आदि मध्ययुगीन पूंजीवाद तथा सामंतवादी व समाज के सांस्कृतिक मूल्य रहे हैं ।  किंतु आज के जीवन में और उसी के अनुरूप समाज में भी विवाह का विरोध  , स्वच्छंद प्रेम अवैध काम संबंधों को मान्यता मिलने लगी है । पश्चिमी के अंधानुकरण एवं आधुनिकता के प्रवेश ने समाज में अनेक समस्याएं उत्पन्न कर दी है ।  वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने प्रेम और पवित्रता को नैतिक धारा से मुक्ति दिला दी है  । नैतिक मूल्य भी तेजी से बदल रहे हैं । इसी कारणवश सर्वत्र भारतीय समाज मे  संदेह , सन्त्रास और निराशा का कुहासा छाया हुआ है । चारों ओर अविचार और अव्यवस्था का बोलबाला हो रहा है । सब कुछ उलट-पुलट हो रहा है । कोई भी मूल्य स्पष्ट और स्थिर नहीं हो पा रहा है कभी नया ही पुराना लगने लगता है और कभी पुराना ही नया ।

Comments

Popular posts from this blog

एक कदम --- *मैं * की ओर

स्त्री पुरूष की संपत्ति नहीं

स्त्री विमर्श