स्त्री

स्त्री तो अनादि काल से ही मानव ह्रदय की राग आत्मक व्रतियों की प्रेरणा स्त्रोत रही है । द्विवेदी जी ने स्त्री पक्ष का समर्थन करते हुए कहा है कि --- "पति को देवतुल्य हम माने , बच्चों की भी दासी है , सेवा सदा करे नहीं सोचे , भूखी हो या प्यासी हे भगवान हाय तिस पर भी उपमा कैसे आती है ढोल - तुल्य ताड़न अधिकारी हम बनाई जाती हैं ।" इस प्रकार स्त्री की उच्च भावना का विकास इन पंक्तियों में देखा जा सकता है । आधुनिक स्त्री ने स्वयं के महत्व को प्रतिष्ठित किया है । स्त्री में स्वाभिमान और आत्म समर्पण की भावना अत्यधिक होती है उसे आप अपने अधिकारों की चिंता है क्योंकि वह अब शिक्षित है स्त्रियों ने आज विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक प्रवेश किया है शिक्षक , डॉक्टर , वकील और प्रशासक के रूप में स्त्री ने अपनी प्रभावी भूमिका भी निभाई है । यह सिद्ध सत्य है कि यदि माता शिक्षित नहीं होगी तो देश की संतानों का कदापि कल्याण नहीं हो सकता बालक का प्रारंभिक ज्ञान ही पत्थर पर बनी अमित लकीर के समान होता है जो एक माता अपनी संतान को देती है । लेकिन वर्तमान समय में कुछ असामाजिक तत्वों ने मां बहनों का रिश्ता भी तार-तार कर दिया है । वर्तमान समय में स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों की घटनाओं में मानव उफान सा आ गया है । ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब हमारे देश के किसी ना किसी कोने से स्त्री पर हो रहे अत्याचार की खबर ना आती हो । दरिंदगी और अत्याचार की हदों को पार करते हुए अत्याचार। विशेष रूप से बलात्कार की घटनाएं जिनमें छ साल की , आठ साल की या ग्यारह साल की बच्ची के साथ अमानुषिक आत्याचर किया गया हो । पुरुष जाति का यह कहना है कि युवतियां और स्त्रियां जिनकी आकर्षक पोशाक या चाल ढाल आदि से उनकी कामवासना भड़कती है और पुरुष कामा दूर होकर अत्याचार करते हैं लेकिन जरा सोचिए इन छोटी बच्चियों के संबंध में क्या यह तर्क लागू होता है बिल्कुल नहीं । मुझे तो यह समझ नहीं आता कि इन मासूम बच्चियों में भला इन नर पिशाच ओं को कौन सा आकर्षण दिखाई देता है । वर्तमान समय में सामाजिक बदलाव की बातें सभी कर रहे हैं श्री और उसके समर्थन में पुरुष भी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं । खैर,, पुरुष और पुरुषों के समर्थक तो स्वयं को निर्दोष साबित करते हुए यह बचने के लिए कई प्रकार की बातें करते रहेंगे । इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को न्याय मिलना अत्यधिक कठिन है क्योंकि पुरुष तमाम नियमों को अपने अनुकूल ही बनाए रखेंगे ताकि उनके भोग विलास में बाधा न्यून हो । स्त्री को स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए मानसिक रूप से समर्थ होना पड़ेगा तभी स्त्री सशक्त मानी जा शक्ति है ।

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