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Showing posts from May, 2018

नारी विमर्श

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आधुनिक युग मे मुनाफाखोरों ने तरह – तरह के उतपादो को बेचने के लिए औरत के शरीर पर मालिकाना हक जमा रखा है । इतना ही नहीं उसे नारीवाद की ,, स्त्री मुक्ति की संज्ञा देकर औरत से जोड़ दिया है — औरतों तुम बस एक शरीर और देह भर हो। पहले तुम सिर्फ घर के पुरुषों की देह थीं और अब तुम एक सार्वजनिक देह हो। तुम चाहो भी तो हम तुम्हें इससे बाहर नहीं निकलने देंगे। तुम्हारी अस्मिता और तुम्हारी पसंद — कौन-सा शैंपू ,, कौन-सी कार ,,, कौन-सा मोबाइल ,,, कौन-सा घर ,,,कौन-सा कपड़ा, कौन-सी घड़ी पहनो कि आज की औरत कहलाओ और आज के नारीवाद को हासिल करो ।आज की आजाद औरत की छवि इस तरह की बना दी गई है कि वही औरतें आजाद हैं जो अपने शरीर पर लदे हजारों-लाखों किस्म के उत्पादों से रात-दिन लबरेज हैं। उनकी आजादी की असली पहचान यह है कि वे कितनी आकर्षक दिखती हैं। वे कितने पुरुषों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकती है । मुनाफाखोरों ने सिर से पांव तक उसे उसी खाई में धकेला है जिससे निकलने के लिए वह सदियों से छटपटा रही है । मगर अफसोस और उससे भी ज्यादा अचरज की बात यही है कि स्त्रियों पर आकर्षक दिखने का जो ठप्पा लगाया जा रहा है उसे ही स्त्री मु

नारी विमर्श ,, नारी मुक्ति का मकसद क्या है ,,,??

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” अवलम्ब है सबको मगर     नारी बहुत असहाय है । ” स्त्रियाँ समाज की नैतिक प्रतीक होती हैं । स्त्री का अस्तित्व सामाजिक व्यवस्था की रियायतों पर टिका है । वर्तमान समय में नारी होकर पुरूषों के समकक्ष होना तो सामान्य बात है । वह अनेकांश में पुरूषों से श्रेष्ठ सिद्ध हुई है । एक स्त्री बल , विद्या , बुद्धि , सयंम लोककल्याण की भावना , वात्सल्य आदि गुणों के कारण नर से आगे बढ़कर इस धरा को स्वर्ग बनाने की क्षमता रखती है । एक स्त्री अशांत वातावरण में शांति का बीजारोपण करने में समर्थ है जब स्त्री स्वयं अपनी काबलियत से आगे आ रही है तो यह बैसाखियां क्यों ,,,,?? नारी के पास ईश्वर के बाद वह शक्ति है जो मर्द के पास नहीं है वह मर्द को जन्म देती है और गोद की गर्मी से उसे जीवन – दान देती है । उसके हाथों में परिवार की बागडोर रहती है । एक औरत जो घर चलाती है , बच्चों को साफ – सुथरे कपड़े ओर संतुलित आहार देती है — लेकिन कोई सवाल नही पूछती है । नारी ,नर की सहचरी है । आवश्यता पड़ने पर वह संरक्षिका भी बन जाती है । आज किसी भी मंत्रालय में , प्राइवेट सेक्टर में , दुकानों में , आपको औरतें – लड़कियां काम करती

द्रोपदी सशक्त नारी का स्वरूप

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“कोई भी सामाजिक व्यवस्था जो समय के साथ न बदले तो वह स्वयं तो डूबती ही है , उसे भी ले डूबती है जिसके लिए वह बनी है ।” ” हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ” पौराणिक कथाओं में बहुत से स्त्री पात्र है । सभी का अपना अपना स्थान है और सभी श्रेष्ठ है । जहाँ एक और ” सीता जी ” जिन्होंने ना सिर्फ अग्नि परीक्षा दी बल्कि परिस्थितियों के आगे विवश हो जीवन भर वनवास झेलती है । दूसरी तरफ ” द्रोपदी ” जिसने अपने ही पतियो द्वारा जुए में हार जाने के पश्चात तिरस्कार ओर अपमान को सहकर भी स्त्री के मान ओर सम्मान की रक्षा के लिए न सिर्फ लड़ती है बल्कि एक स्त्री के सम्मान को उच्चतम स्थान भी दिलाती है । ” द्रोपदी “एक ऐसा सशक्त पौराणिक पात्र है । द्रोपदी महाराज द्रुपद की अनियोजित कन्या थी उनका शरीर कृष्ण वर्ण के कमल के जैसा कोमल और सुंदर था , अतः इन्हें कृष्णा भी कहा जाता था । सम्भवतः द्रोपदी भारत की प्रथम महिला है जिनके पांच पति थे । द्रोपदी की कथा – व्यथा से बहुत कम ही लोग परिचित होंगे जिन्होंने बहुपत्नी वाली व्यवस्था वाले इस समाज में बहुपतित्व का अपवाद रखा है । पांच पतियों के होते हुए भी उसे अपमानित किया गया । म

स्त्री पुरूष की संपत्ति नहीं

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“करूक्षेत्र ढह गया आह में , स्वर्ग द्वारिका डूबी । है नारी के अश्रु बिंदु में , पारावार प्रलय का ।। ( द्रोपदी , श्री नरेन्द्र शर्मा ) कहने का तात्पर्य यह है कि,,, स्त्री कोई वस्तु नही न ही वो किसी की संपत्ति होती है । नारी के अपमान किये जाने के कारण ही उन्ही अश्रु बिंदु में न सिर्फ स्वर्ग के समान द्वारिका का अपितु समूचे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया । महाभारत काल में पात्र   द्रोपदी   बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है । द्रोपदी  चरित्र का तमाम तरह की छोटी मोटी गणना करने के पश्चात बहुत सारी बाते मेरे मन – मस्तिष्क को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर देती है ।। एक स्त्री का इतना अपमान व तिरस्कार ,,, किसी सम्पत्ति की तरह उसको जुए में उसी के पतियों द्वारा हार जाना ।। स्त्री तो सृजन की शक्ति है ,,, उसके केश पकड़ कर घसीटते हुए ,,, अपमानित करना । एक स्त्री जो स्वयं भगवान को भी अपने गर्भ में रखने की ताकत रखती है ,,, उसके साथ इसप्रकार का अमानवीय व्यवहार ,,, ।। स्त्री कोई वस्तु नही , संपत्ति नही है ,,,, न पिता की , न पति की , न ही पुत्र की । वह भी एक मनुष्य है एक चेतन प्राणी है । रही बात भेद की तो

स्त्री , पुरूष से किसी भी दृष्टि से हेय नही है ।

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स्त्री – पुरूष तो एक दूसरे के पूरक है । पुरुषों को भी स्त्री को देह रूप में स्वीकार करना छोड कर स्त्री रूप में समझने का प्रयास करना होगा । ” दो – दो कोर अन्न पा लेंगी , ओर धोतियां चार ।   नारी तेरा मूल्य यही तो रख , रखता है संसार ।" पंचवटी , मैथेलीशरण गुप्त आधुनिक युग में अर्थवादी रुझान के कारण स्त्री स्वाभाविक रूप से आत्मनिर्भर हो कर धनोपार्जन के लिए विवश हैं । उसके लिए स्त्री का चारदीवारी से बाहर निकलना भी अनिवार्य है । हाड़ मांस की बनी हुई ये स्त्रियाँ — चाहे दफ्तरों की फाइलों में दबी हुई हो , चाहे खेतो में काम करते हुए हो , सड़क पर झाड़ू लगाते हुए हो ,, या फिर सभी ऐश्वर्य में भी बावजूद पलंग पर अकेली रात भर करवटें बदलते हुई हो । ये सभी अपने – अपने तरीकों से जीवन जीने की कोशिश में छटपटाती रहती है । आज के पुरूष में सामन्तवादी पुरुष कही न कही मौजूद है । वो यह चाहता है कि पत्नी नोकरी करे , लेकिन साथ ही घर की देखभाल करें , चूल्हा – चौका भी करे , ओर फिर पति के पैर भी दबाए । इतने पर भी कोई न कोई कमी दिखाई दे ही जाती है । नासिरा शर्मा का कहना गलत नहीं है — ” न जाने पुरुषो

स्त्री के प्रश्न हाशिये हाशिये के नही बल्कि जीवन के केंद्रीय प्रश्न है ।

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“तुम देवी आह , कितनी उदार ।    यह मातृभूमि निर्विकार "। कामायनी , दर्शन सर्ग जयशंकर प्रसाद ईश्वर ने इंसान बनाया और इंसान को निरन्तर रचना के क्रम में बांधने हेतू बनाया स्त्री को । यह संसार , इसमे रहने वाले विभिन्न समाज , साहित्य कला , विज्ञान सभी कुछ स्त्री के बल पर है ।इसलिए स्त्री इस सृष्टि से जुड़ कर विश्व को देखती है । उसका रिश्ता जमीन से आसमान तक बंधता है । यही वजह है कि स्त्री के प्रश्न हाशिये के नही बल्कि जीवन के केंद्रीय प्रश्न है । आदर्श नारी   ,   आदर्श बहु   ये तो ऐसा खंज़र है जो स्त्री जाति पर चलता रहता है । लेकिन हमारे समाज में जो स्त्री के प्रति दरिंदगी का सिलसिला चल रहा है ,,, यही वजह है कि स्त्री उनके हाथों से निकल रही है । स्त्री अपना हक मांगेगी या खुले आसमान के नीचे निकलेगी तो पुरुष रोकेगा उसका शिकार करेगा ,,, अपनी ताकत दिखायेगा । ओर यदि स्त्री ने पराजित कर दिया तो निश्च्य अगली बार झुंड बना कर उसे धराशाही कर दिया जाएगा । रूढ़ियों का ये मार्ग सड़ाँध से भरा कीचड़ भरा मार्ग है जो स्त्री के विकास के साथ समाज के विकास को भी रोक देता है । इन सड़ी गली पुरातनपंथियो के

नारी विमर्श

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हमारे भारतीय समाज मे प्राचीनकाल से ही नारी को ” शक्ति रूप ” माना है । उसके शक्ति रूप की पूजा अर्चना करते आये हैं । या देवी सर्वभूतेषु मंत्रो से सुसज्जित कर उसके आदर और सम्मान को बढ़ाया है । लेकिन वास्तविक रूप यदि नारी के मान सम्मान की बात आये तो पुरूषों का व्यवहार बदलता दिखाई दे जाता है ।     ” नरी त्रैलोक्य जननी , नारी त्रैलोक्य रूपिणी        नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी”        नारी त्रिभुवनधारा , नारी देहस्वरूपिणी” मनु स्मृति , 13 /44 पुरुषों के इस दोहरेपन का श्रेय बहुत कुछ हमारे ,, मनु स्मृति  व अन्य उन शास्त्रों को भी दिया जा सकता है जिनमे नारी निंदा के पर्याप्त उदाहरण परिलक्षित होते है । जहाँ पर नारी को मनबहलाव का साधन मात्र माना गया । यदि ऐसा नहीं होता तो ,,,, क्या पांचाली दाव पर लगा दी जाती ,,,?? राम द्वारा सीता की अग्नि परीक्षा ली जाती ,,, ?? या फिर सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र स्वयं के दान – दक्षिणा चुकाने के लिए अपनी ही पत्नी को बेच देते ,,, ?? इन पीड़ाओ से आज की आधुनिक नारी भी मुक्त नहीं हो पाई है । आज हमारे समाज में सभी आधुनिकता का दावा करते नज़र आते है