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Showing posts from April, 2023

कलियुग ,,,,,,,

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          ****** पंडित जी तो महिलाओं को तिलक भी स्वयं नहीं लगाते। पर शादी में अब साड़ी ब्लाउज इत्यादि पहनाने वालों को बुलाया जाने लगा है या इन स्त्रियों को ही सेंटरों पर बुलाया जाने लगा है ! अब किसी भी अवसर पर महिलाओं को साड़ी पहनाने से लेकर, मेहंदी, सैलून, टेलर, टैटू सब काम पुरुष कर रहे हैं, वे भी गैर हिन्दू। ये कथित आधुनिकता हिन्दू समाज को कहाँ तक ले जाएगी……? मेहंदी के बाद अब महिलाओं को साड़ी पहनना भी सेंटरों पर पुरुष सिखा रहे हैं! एक गैर पुरूष द्वारा साड़ी खींचने पर जिस देश में महाभारत हो गई थी उस भारत में स्त्री खुद साड़ी उतारने खड़ी है। हां आज स्त्री स्वयं ही पुरुष से न केवल जिम में अपने निजी अंगों का स्पर्श सुख भोग रही है बल्कि साड़ी भी उतार पहन रही हैं।।  ये प्रगति नहीं है संस्कारों का पतन ही हमारी मृत्यु है ?? आधुनिकता के नाम पर हमारी संस्कृति को मिट्टी मैं मिलाया जा रहा है आज कल की लड़कियों को , अगर उनको साड़ी ना पहन ना आता है तो खुद को मॉडर्न समझती है गर्व से कहती है कि हमे साड़ी पहननी नही आती अभी इससे भी बहुत बुरा बाकी है Kalyuga is loading.....

ये कैसी आधुनिकता ,,,

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***** हिंदू धर्म में लड़कियों के सर ढक कर रखने की पुरातन परंपरा है जिसे हिंदू धर्म में घूंघट करना सर पर आंचल या दुपट्टा रखना कहते है । कोई भी स्त्री विवाह के बाद जब अपनी ससुराल जाती है और बहु पत्नी भाभी जैसे कई रिश्तों में बंधती है तो वो सभी के सम्मान में अपने सर पर कपड़ा रखती है कभी मंदिर में प्रवेश करना हो तो सर ढक कर ही प्रवेश करती है ये सनातन धर्म की परंपरा है ।  लेकिन आधुनिकता फैशन खुलापन टूटते संयुक्त परिवार और अपने अधिकार के नाम पर आज हिंदू लड़किया खुद को एक प्रोडक्ट के रूप में दिखा रही है सभी जानते है हम उसी दुकान से सामान खरीदना पसंद करते है जहां पर डिस्प्ले अधिक आकर्षक होता है । आज लड़किया ये तो कहती है कि वो कुछ भी पहने ये उनका मौलिक अधिकार है लेकिन भूल जाती है समाज में किसी की सोच और नजर को नही बदला जा सकता जब हम खुद ही भेड़ियों का शिकार बनने के लिए तैयार है तो क्यों भेड़ियों को दोष दे कि सामने वाला गलत है । एक लड़की जो आधुनिक छोटे छोटे कपड़े पहन कर अपने शरीर प्रदर्शन करके दूसरो की भावनाओ को भड़काने में शर्म महसूस नहीं करती तो फिर को उसके साथ जो गलत करता है उ

नारी विमर्श

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****  नारी विमर्श ने साहित्य को समझने की केवल नई दृष्टि प्रदान नहीं की, बल्कि उसमें नये जीवन आदर्श भी प्रतिस्थापित किए। नारी विमर्श एक ऐसा विमर्श है, जिसने पूरे विश्व में हड़कम्प मचा दिया है। नारी विमर्श नारी की मुक्ति से संबद्ध एक विचारधारा है और नारी चूंकि समाज की धुरी के रूप में समाज की देखभाल सदियां से करती आ रही है, भारत में नारी को देवी, श्रद्धा, अबला जैसे संबोधनों से संबोधित करने की परंपरा बहुत पुराने समय से चली आ रही है। इस तरह के संबोधन अथवा विशेषण जोड़कर हमने उसे एक ओर पूजा की वस्तु बना दिया है तो दूसरी ओर अबला के रुप में उसे भोग्या एवं चल-संपत्ति बना दिया। हम यह भूल जाते हैं कि नारी मातृ – सत्ता का नाम है, जो हमें जन्म देती है, पालती है तथा योग्य बनाती है। यह कार्य नारी का मातृरूप ही करता है। आज विश्व के हर कोने में नारी के सुदृढ़ पगों की चाप सुनाई दे रही है। आज जीवन के सभी क्षेत्रों में नारी ने अपना स्थान बनाया है। शिक्षा के क्षेत्र में सभी परीक्षाओं में लड़कियाँ अधिक आगे रहती हैं। आज सभी क्षेत्रों में नारी पुरुषों से आगे हैं। नारी का नौकरी में होना आज एक आम बात है।

मुस्कुराहट से ,,,,,

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           ******* एक असफल शादी में फँसी हुई स्त्रियां अक्सर झूठ बोल जाती हैं.... बड़ी सफ़ाई से। रिश्ते को न तोड़ने के लिए बनाती हैं कभी बच्चों का बहाना, कभी बाबूजी के कमज़ोर दिल का, कभी माँ की ख़राब तबियत का। कभी पति के भविष्य में सुधर जाने की उम्मीद का। बहानों के इस आवरण के पीछे छुपकर बड़ी सफ़ाई से रिश्ते के सूखे पौधे पर उड़ेल आती हैं एक लोटा पानी.... तब भी जब वो जानती हैं कि जड़ से सूख चुके पौधे फिर हरे नहीं हुआ करते। घर से मकान बन चुकी चारदीवारी को अपने कमज़ोर कंधों पर पूरे जतन से टिकाकर रखती हैं, अपनी अधूरी इच्छाओं को मायके से आए बक्से में छुपाकर किसी अंधेरे कोने में रख देती हैं और उस पर डाल देती हैं झूठी मुस्कुराहट का मेज़पोश! बड़े क़रीने से सँवारती हैं वो बच्चों के सपने उनकी फ़रमाइशें, उनकी पसंद के खाने को, अपनी फीकी पड़ चुकी हथेलियों से लपेटती हैं चमकीली सिल्वर फ़ॉइल में और बस्ते में भरकर भेज देती हैं उन्हें भविष्य सँवारने और ख़ुद के वर्तमान को घोल देती हैं अविरल बहते आँसुओं में! माँ का फ़ोन आने पर वो दे देती हैं सफलतम अदाकारा को भी मात हँसते-हँसते माँ से पूछ लेती ह

बोलती हुई स्त्री ,,,

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बोलती हुई स्त्री ,   कितनी खटकती हैं ना.. सवालों के तीखे जवाब देती बदले में नुकीले सवाल पूछती कितनी चुभती है ना... अब,  जब पूजे जाना नकार कर वो तलाश रही हैं अपना वजूद तो न जाने क्यों हमें  खटक रहा है उनका आत्मविश्वास खोजने लगे हैं हम तरीके उसे ध्वस्त करने के... बोलती हुई स्त्रियों !! अब जब सीख ही रही हो बोलना तो रुकना नहीं कभी.. पड़े जरुरत तो चीखना भी लेकिन खामोश न होना.. तुम्हारी चुप्पी ही, सबसे बड़ी दुश्मन रही है तुम्हारी... बोलती हुई स्त्री, बोलती रहना तुम !!!

जब तुम आना ,,,

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****** सुनो,,, जब तुम आओ तो दरवाजे पर घंटी मत बजाना पुकारना मुझे नाम लेकर और हाँ अपना समय साथ लाना फिर दोनो समय को जोड़ बनाएंगे एक झूला अतीत और भविष्य केबीच उस झूले पर बतियाएंगे और जब लौटो तो थोड़ा मुझे ले जाना साथ थोड़ा खुद को छोड़े जाना फिर वापस आने के लिए खुद को एक दूसरे से पाने के लिए ,,,,                     *****

प्रेम ही तो हैं ,,,

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         ***** जानते हो.... मैंने अक्सर देखा है तुम्हे अपनी सिसकियों को  छुपाते हुए, खामोशी से आंसुओ को  सुखाते हुये अपनी उदासी को  अक्सर मौन मुस्कान से  बचाते हुए, पर तुम भी ये जान लो,, मैं सब देख लेती हूं,,, पर कहती नही.... मैं कह दूँ....  तुम्हारे आंसूओ की साक्षी हूं मेरे कहने से तुम  कही कमज़ोर न हो जाओ, जानते हो मैं कुछ कहे बिना ही सब बांट लेना चाहती हूं, तुम्हारे आंसू.., तुम्हारी सिसक खामोशी.., मन मे घुलता वो एकांत... मैं चाहती हूं ... मेरे आँचल से लिपटकर, तुम महसूस करो  केवल सुकून ,,, थपकियों की दुलार तुम लो  और सौंप दो मुझे अपनी सारी पीड़ाएँ,, हे पिया...🌷 बेफिक्र रहो तुम,, मैं हूं सदा तुम्हारे साथ, जिंदगी बनकर,, तेरा ही साया बनकर... *****

फूल खिलते रहे ,,,

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           ********** फूल खिलते रहें  इसके लिए उन्हें जड़ें चाहिए  और जड़ों को चाहिए जमीन। हमारे पास देने के लिए  जमीन नहीं है  और मैं नहीं चाहती  पेड़ से फूल तोड़ कर गमले में सजा लूं।  मैं खुश हूं उन्हें खिलता हुआ देखकर।  मैं नहीं देख पाऊंगी ,,, उनका मुरझा जाना।                   ********

....क्या कहूं ?

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तू जरूरी था  जरुरी है.................. जि़न्दगी के लिए कोई तो चाहिए  हर एक को.............. दुश्मनी के लिए तुझसे तो है मुहब्बत................ हाँ तुझे खोना नहीं है, तू दोस्त बन... कोई औऱ मिल जाएगा आशिकी के लिए,, ~डॉ नीतू शर्मा