** तुलसी के राम **
**तुलसी के राम** तुलसीदास के राम उस जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं । जो अपने आत्म बल के बूते पर आंतरिक स्थितियों से सामंजस्य बैठाती हुई अन्याय और असत्य के संघर्ष को न्याय और सत्य से झेलती है । इनका एक ही लक्ष्य है - सत्य और एक ही अस्त्र है - विवेक । तुलसीदास के राम केवल अन्याय के प्रतिरोदार्थ अस्त्र उठाते हैं । इनके लिए युद्ध वह स्थिति है जो सत्य और न्याय के सारे द्वार बंद कर देती है । वह स्थिति थोप दी जाती है और जिसे राग द्वेष रहित होकर हटाने के सिवा और कोई दूसरा चारा नहीं है । यह साधन हीन का साधन संपन्न से संघर्ष है । इसकी चरम परिणति तब दिखाई देती है जब रावण रथारूढ़ होकर युद्ध भूमि में आता हे । और साधन हीन राम रथ की कौन कहे तन - पद - प्राण तक के बिना उसका सामना करने के लिए सन्नद्ध होते हैं । युग - संशय के रूप में विभीषण इस संघर्ष की प्रकृति और परिणाम के प्रति आशंकित होकर धीरज खो बैठते है । राम के इस कार्य के संघर्ष के क्या मायने हैं । वह समझ नहीं पाते । तुलसीदास के राम भरत सीता...