Posts

Showing posts from July, 2018

स्त्री प्रश्न : आज भी जिंदा हैं

Image
------------- ------------ स्त्री मुक्ती कि जब भी चर्चा होती है तो पूरी बहस आकर मध्यम वर्गीय स्त्री पर केंद्रित हो जाती है  ।  जहां उसका संघर्ष दैहिक स्वतंत्रता से लेकर आर्थिक स्वतंत्रता तक ही सिमटा हुआ पाते हैं ।  वास्तविकता यही है कि आज का समाज स्त्रीत्व को लेकर उसके चारों तरफ  परंपरागत ढंग से  उसको महिमामंडित कर उसके आसपास ऐसा जाल बुनता है कि स्त्री विमर्श के प्रश्न हाशिए पर ही रह जाते हैं  ।  स्त्री ने अपने अनेक अधिकारों को भी प्राप्त किया है किंतु इसके अतिरिक्त अनेक क्षेत्र आज भी ऐसे हैं जहां स्त्री अस्मिता  , अस्तित्व ,  मुक्ति आज भी गायब है ।  पारिवारिक छोटे-छोटे दकियानूसी मसलों व संकुचित संकीर्ण विचारों में पिसती  स्त्री स्वयं की प्राथमिकताएं भूल जाती है ।  आज भी जिंदा है वे सभी प्रश्न जो स्त्री मुक्ति से जुड़े हुए हैं ।  स्त्री को उन सभी निरर्थक परंपराओं व मान्यताओं से मुक्ति चाहिए जिसने उसके अधिकारों व स्वतंत्रता को रोके रखा है ।  जन्म से लेकर मृत्यु तक पिता पति और पुत्र के साथ  पैबंद जुड़े होते हैं ।  स्त्री को स्वयं के स्वतंत्र अस्तित्व की तलाश परिवार संस्

परिवार : एक पवित्र संस्था ।

Image
" आनंद पाने से अधिक बांटने में मिलता है । "  वर्तमान समय में मध्यम वर्गीय समाज के जीवन को परिचालित व प्रेरित करने वाली  नयी प्रवृतियों विचारधाराओं व शक्तियों का उद्घाटन हुआ है ।  पुराने बंधन अब जीवन का आधार नहीं रहे विकासशील शक्तियां और प्रतिक्रियावादी ताकतों सच और झूठ एवं नए-पुराने का भीषण निर्दय संघर्ष वर्तमान समय में देखा जा सकता है ।  परिवार एक पवित्र तथा उपयोगी संस्था है ।  लेकिन वर्तमान समय में इस दृष्टिकोण में परिवर्तन होता जा रहा है ।  परिवार के सभी सदस्य भी अपनी अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति में लगे रहते हैं ।  वस्तुतः पारिवारिक जीवन में कलह असंतोष  ,  खिन्नता और उदासी की परिस्थितियां बन जाती है कहीं-कहीं तो यह विकराल रूप भी ले लेती है ।  स्त्री के बिना परिवार की कल्पना भी असंभव है । लेकिन वर्तमान समय में स्त्री की भूमिका भी बदल रही है ।  वह ना तो पहले की तरह त्याग और संतोष जैसे गुणों को  अपनाना चाहती है  और ना ही अपने परिवार के सुख और दुख को अपना  बनाना चाहती है ।  परिवार की प्रतिष्ठा हमारी प्रतिष्ठा ,  परिवार की उन्नति हमारी उन्नति  ,,,,  उसकी लाभ हानि

पुरुष को मनुष्य बना सकने के लिए स्त्री को ओर कितना सहन पड़ेगा ,,,,,,??

Image
--------------------------------------- सामंतवादी पुरुष के हमको मेरा लेखन नागवार लग सकता है ।  लेकिन मेरा आक्रोश समाज कि उस व्यवस्था के प्रति है जो अपनी छद्म नीतियों और मोह से मुक्त नहीं होना चाहता ।  सामंतवादी नीतियों पर आधारित सत्ता के   चक्के में स्त्री हमेशा से ही पिसती आई है ।  ईश्वर संबंधी धारणा पर फैले अंधविश्वास और पुरातन रूढ़ियों से क्षुब्ध हो स्त्री भी आज मुक्त होना चाहती है ।  इन आडम्बरों ने स्त्री जाति को बहकाकर रखा है । अपने स्वार्थ पूर्ति में अंधी स्वार्थपरता अवसरवादी चालें चलकर अपने अदम्य लालसा पूर्ति करती है ।  यह हमारे समाज की सबसे ज्वलंत सच्चाई भी है । धार्मिक एवं सामाजिक अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों से ग्रस्त जीवन में परिवर्तन होना अनिवार्य है ।  समाज में निरीह स्त्री का अपमान एवं तिरस्कार करने वाले जघन्य एवं कुत्सित घटनाओं का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ।  स्त्री जाति पर होने वाले पाशविक ओर अमानवीय कुकृत्यों को देख कर तो लगता है कि स्त्री मुक्ति के किसी स्वप्न को साकार करने की कल्पना निरर्थक बेमानी है ।  पुरुषों की परस्पर अंधी घृणा मानवीय शोष

टूटते ,,, बिखरते परिवार

Image
------------------------------------/--------    पाश्चात्य प्रभाव वश नारी स्वतंत्र आंदोलन  से जुड़े इस युग में असामयिक सा लगे परंतु यह एक विचारणीय तथ्य है कि क्या पुरुषों से आगे निकल जाने की प्रवृत्ति विखंडित होते हुए परिवार ईर्ष्या वश पति से संबंध विच्छेद कर लेने की आतुरता हमारे समाज व देश को  रुग्ण नहीं बना रही है ,,,,, ???  हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी कहा गया है कि -----       "  वृद्ध वाक्येवीना नून नेवोतरम कथचनं । "  अथार्थ वृद्ध लोगों के वाक्यों के बिना किसी प्रकार का निस्तार नहीं है ।  संयुक्त परिवार में वृद्ध परिवार के मुखिया होते थे और उनकी बातों को भी महत्व दिया जाता था  ।  टूटते परिवार और बिखरता समाज के इस दौर में आज इन संस्कारों का कोई अर्थ नहीं रह गया है ।  इसमें कोई संदेह नहीं कि वृद्ध व्यक्ति में उत्साह एवं शक्ति की कमी होती है क्योंकि वह स्वजनों के द्वारा ही तिरस्कृत होते हैं ।  आज की युवा पीढ़ी बूढ़ों को स्वीकार नहीं कर पा रही है ।  इसका प्रमुख कारण यह भी है कि भौतिकतावादी इस युग में धन ही सबसे बड़ी जरूरत बन गई है ।  आज जरूरत

नारी : एक रत्न है ।।

Image
------------------------------------   वेद काल में स्त्री एक रत्न थी l  इस युग की गार्गी ,  घोषा ,  गोधा  ,  अपाला  , जुहू  , अदिति , उषा ,  इंद्राणी  , इला  , सरस्वती ,  लोपामुद्रा  , उर्वशी  , यामी श्रद्धा  , सावित्री  , सची ,,,,,, जैसी अनेक मंत्र दृष्टा एवं ब्रह्मवादिनी सन्ननारियों के उल्लेख वेदों में मिलते हैं ।  सम्माननीय होने के कारण नारी को वेदों में  ' सेना '  के नाम से अभिहित किया है ।  नाम के अनुरूप असूया भाव से रहित अनुसूया ने सिद्ध कर दिया कि नारी पुरुष से किसी भी दृष्टि से हैय नहीं है  । अपने तप से सूर्य का भी अवरुधन करने वाली अरुंधति आज भी आकाश में सप्तर्षियों के मध्य वशिष्ठ के समीप अपनी ज्योति में लीन हो टिमटिमा रही है स्थाई वैवाहिक संबंध का प्रतीक है देवी अरुंधति ।  ऋषि का घोषा और अपाला का जीवन शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए आदर्श उपस्थित करता है । इन्होंने घातक रोग से आक्रांत होने पर भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और देवों के शरणागत ही परम सिद्धि प्राप्त की थी ।   वैदिक युग में नारियों की अवस्था समुन्नत थी  और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार भी प्राप

स्त्री - पुरुष के लिए अलग अलग विधान क्यों ,,,??

Image
--------------------------- जब कभी मैं नारी विमर्श से जुड़े हुए आलेख पढ़ती हूं तो वह मेरे मन की पीड़ाओं को अत्यधिक बढ़ा देता है । सिर्फ कहानी उपन्यासों वह कविता तथा स्त्री पक्ष को झकझोर कर देने वाली आत्मकथाएं भी मेरे समक्ष कई सवाल खड़े कर देती है  ।  1975 में अंग्रेजी की मशहूर कवियत्रि   ' कमला दास ' की आत्मकथा  ' माय स्टोरी '  नाम से छपी ।   यह एक ऐसी लड़की की कहानी है जो वैवाहिक जीवन के नाकाम हो जाने पर किसी बाहरी प्रेम की तलाश करती है ।  लेकिन उस पर भी कई लेखक व विद्वान  सवाल खड़े कर देते हैं  । यद्यपि हमारा जीवन सिर्फ हमारा जीवन नही है  हमारे साथ कई और जिंदगी अभी जुड़ी हुई है ।  जब हम बेबाक होकर अपनी दास्तान कहते हैं तो अपने साथ तमाम लोगों को भी बेपर्दा कर देते हैं । हर कोई ऐसे अनावृत होकर जीना पसंद नहीं करता ।  इतिहास साक्षी है कि महिलाओं की स्थिति सभी देशों में दयनीय ही रही है उन्हें हर जगह दोयम दर्जे का ही माना गया है ।  पति-पत्नी के झगड़े तो आम बनते जा रहे हैं ।  दोनों के बीच सामान्य से नोकझोंक से तो प्रेम बढ़ता है ।  लेकिन कहीं-कहीं यह झगड़े

न जीती है ,,, न जीने देती है ,,,

Image
---------------------------- यही है देवी  , माता भी यही है ,  बांधा है जिसमे प्यार से सबको  असल में वह नाता भी यही है  बिन नारी न सृष्टि चलेगी  इस बात का तुम सब ज्ञान करो   "ना खुद जीती है ना हमें जीने देती है |"  वह अपने टोडी कुत्ते के समान विचारों वाले संवादों से नित्य प्रतिदिन स्त्री के अस्तित्व को ठेस पहुंचाने के नए-नए जाल बुनते रहते हैं । जीवन के सारे हौसले पस्त हो जाते होंगे उस समय ।  आपने कभी सांप को देखा है सुना तो अक्सर होगा कि वह समय समय पर अपने केचुली उतार फेंकता है ।  अथार्थ अपनी पुरानी खाल को उतार फेंक नई खाल का नया आवरण  धारण कर लेता है ।  तो फिर हमारे समाज के साथ ऐसा  संभव क्यों नहीं ,,??  क्यों हम उन पुरातन मान्यताओं को सीने से लगाए बैठे हैं जिसमें हमारा स्वयं का दम घुट रहा हो  ,,,??  क्या उन पुरानी व्यर्थ की मान्यताओं अथवा रूढ़ियों को  आवश्यकतानुसार बदल देना या समाप्त कर देना उचित नहीं है ,,??  आज भी हमारे समाज में उस स्त्री को सम्मान नहीं दिया जाता या सम्मान की अधिकारिणी नहीं जिसने कन्याओं को जन्म दिया हो ।।  इतना ही नहीं हर

गृहणी

Image
----------------  संस्कृत में कहा गया है कि ---          " न गृह॑  गृह मित्याहो        गृहणी गृह मुच्ययाते ।।  अर्थात घर को घर नहीं कहते अपितु गृहणी को ही घर कहते हैं ।  कहा भी जाता है कि गृहणी के बिना घर में भूत का डेरा होता है ।  परंतु आज की परिस्थितियां कुछ भिन्न है ,,  आज की कुछ स्त्रियां या यूं कहा जाए की बहुएं बिना कर्तव्य किए अधिकार की बात करती है । कहीं-कहीं अपनी सत्ता मनवाने के लिए स्त्रियों पर पुरुष द्वारा अत्याचार किया जाता है ।  तो कुछ स्त्रियां अपने सदियों पुरानी समाज के पितृसत्तात्मक पद्धति को चुनौती देती है तथा अपने अहंकार के कारण पति का महत्व भी भूल जाती है ।  एक समय था जब व्यक्ति संयुक्त परिवार में रहना पसंद करता था । परिवार में मेल-मिलाप होता था ।  लेकिन बदलते हुए आज आपाधापी के इस दौर में सारी व्यवस्था को उलट-पुलट कर रख दिया है ।  जीवन में संघर्ष करता हुआ मनुष्य सभी रिश्तो को भूल गया है ।  परिवार की स्त्री  ( बहू ) को भी स्वयं के बच्चों या पति के अलावा किसी और का सुख-दुख नजर नहीं आता है।  आज की अधिकांश स्त्रियां स्वयं की जिंदगी जीने की

स्त्री शक्ति

Image
समाज में नारी का स्थान पण्य से अधिक कुछ नहीं रहा ।  सामाजिक असंगति तो देखिए -------   मन की अपवित्रता क्षमा हो सकती है  परन्तु शरीर कि नहीं ,,,,।।  मन की पवित्रता को झुठला कर तन की पवित्रता को ही मुख्यता देना जिन सामाजिक आचार धारणाओं का वास्तविक रुप शेष रह गया हो ,  ऐसी धारणाओं औरआचरणों को त्याग देना ही बेहतर है ।  समाज में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के विचार से पूर्ण स्वतंत्रता तो मिलनी चाहिए परंतु उच्छ्रंखलता और गड़बड़ियां भूख को पैशा बना लेने तथा इसके साथ अपनी वासना पूर्ति के लिए समाज की जीवन व्यवस्था  मैं अड़चन डालना ही भयंकर अपराध है ।।  वर्तमान समय में नारी शिक्षा के प्रचार से नारी में आज आने वाली जागृति के परिणाम स्वरुप स्त्री ने न सिर्फ स्वयं के व्यक्तित्व को निखारा है बल्कि स्वयं के अस्तित्व को अनुभव करना प्रारंभ कर दिया है ।  ऐसा लगता है कि उसी का नुकीला काटा पुरुष समाज के मन मस्तिष्क के मर्मस्थल पर चुभ गया है कांटा यदि निकाल भी दिया जाए तो भी उसकी जुबान पुरुष समाज अनुभव करता रहता है ।   स्त्री के समान अधिकारों को सैद्धांतिक रूप में मानकर हमारे ग्रुप में लाते

फालतू की चर्बी हटाओ ,,,, अपने दिमाग से ।।

Image
---------------------------------------- मेरे लेख लिखने का उद्देश्य समस्या को समझना , समझाना  ,,, ओर सबसे बड़ी बात कि अपने दिल का गुबार निकालना है । कुछ समय पहले किसी ने बोला कि ये नारी विमर्श तो ढोंग है ढकोसला है । शायद पुरूष अहम  मेरे लेख को स्वीकार नहीं कर पाएं । मैं अपनी बात को तोड़ मरोड़कर नही रखती । मैंने अपनी बातों को निर्भय होकर रखा है । बहादुर ओर ईमानदार लेखक  /  लेखिका अपनी बातें लुंक - छिप कर या सजा - बचाकर नही रखता / रखती  । सौंदर्य बोध भी अपना युग ओर प्रभाव रखता होगा । लेकिन आज का समाज देश जीतने की बात नहीं सोचता , रोटी का टुकड़ा पाने की बात सोचता है । मौजूदा परिस्थितियों ओर प्राचीन नैतिक और आचार सम्बंधित धरणाओं में कदम - कदम पर विरोध खटकता है , इससे इनकार नहीं किया जा सकता । प्रश्न  यह है कि अनुभव होने वाले विरोधों ओर उसके कारणों की उपेक्षा कर इस प्रवर्ति का दमन कर दिया जाए । या पुरातन धारणा को सुरक्षित रखने के लिए परिस्थितियों में आ गए परिवर्तनों को मिटा कर  ,  हम फिर से प्राचीन युग में लौट जाये ,, या फिर समाज के आचार ओर नैतिक धारणा में नई परिस्थित

* मुक्तकेशी *

Image
--------------------------------- महाभारत को पंचम वेद कहा गया है यह ग्रंथ हमारे देश के मन प्राण में बसा हुआ है ।  यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है ।  इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत आर्यावर्त का समग्र इतिहास वर्णित है अपने आदर्श स्त्री पुरुषों के चरित्रों से हमारे देश के जन जीवन को यह प्रभावित करता रहा है ।  इस में सैकड़ों पात्रों स्थानों घटनाओं तथा विचित्रताओं का व विडंबनाओं का वर्णन है ।        * द्रोपदी *  ज्योतिषाचार्य रश्मि शर्मा बताती हैं कि इस संदर्भ में एक श्लोक है.....   "  अहिल्या द्रौपदी कुंती तारा मंदोदरी तथा  पंचकन्या स्वरा नित्यं महापताका नाशका ।। "  इन पांच अक्षर कुमारियों अहिल्या ,  द्रौपदी ,  कुंती ,  तारा और मंदोदरी के संदर्भ में कहा जाता है कि उनका स्मरण भी महा पापों को नष्ट करने में सक्षम है इस श्लोक में इन पात्रों के लिए कन्या शब्द का प्रयोग किया गया है नारी शब्द का नहीं ।      * काली का अवतार  दक्षिण भारत में ऐसा माना जाता है कि द्रोपदी काली का एक अवतार थी जिसका जन्म सभी अभिमानी राजाओं के विनाश हेतु भगवान कृष्ण  ( जो भगवान विष्णु